21- 11- 2016 आधी रात तीन बजे देश के ज्यादातर लोग सो रहे थे पटना इन्दौर एक्सप्रेस के चौदह डिब्बे पटरी से उतर गए ।
सुबह सुबह नींद टूटते ही इस खबर को सुनना एक सदमे से कम नहीं । पहले बीस मौतों की खबर फिर चालीस पचास नब्बे बढते बढते डेढसौ घायलों की संख्या दो सौ या और ज्यादा ।पूरा देश दहल गया । ट्रेन यात्रा सभी करते हैं इसलिए सब स्थिति को अनुभव कर रहे थे ।
टीवी पर वह दृश्य अत्यंत हृदय विदारक था, तकलीफ सही नहीं जा रही थी ।अभी भी मन भा है सोच सोच कर सिहर उठता हूँ ।
शायद इस वर्ष का यह सबसे मार्मान्तिक घटना है ।रेल हादसे पूर्व में हुए, होते रहते हैं,कभी रे पटरी के कारण,कभी धुन्ध तो कभी किसी की लापरवाही के कारण । हादसे होते हैं, अफरा तफरी, नेता लोग दुख व्यक्त करते, मुआवजा दिया जाता, कौन नेता अस्पताल गया कौन नहीं गया या बाद में गया ,राजनीति होती फिर सब भूला दिया जाता ।
वक्त की मांग है कि हम इस हादसे को विगत वर्षों में हुए तमाम हादसों से जोडे और कारणों का विश्लेषण करे, समाधान ढूंढे ,बल्कि उस पर काम करे । लगभग चालीस हजार किलोमीटर रेल पटरियां अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, बढती भीड और कोच की संख्या में बढोतरी के कारण वे भार सहन नहीं कर पाती । उन्हें बदलने की जरूरत है । चौदह पंद्रह हजार मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग है जिस पर फाटक लगाना अनिवार्य है । फाटक न रहने कारण हर साल सैकडों हादसे होते हैं । सारे सिग्नल नये आधुनिक तकनीक के सिग्नल से रिप्लेस होने की जरूरत है ।
आंकडे कम ज्यादा हो सकते हैं मगर कारण यही है । इस पर युद्ध स्तर पर काम होने की सख्त होने की जरूरत है । हमें आधारभूत बातों पर ध्यान देना चाहिए न कि वाई फाई, हाई फाई पर ।
सुबह सुबह नींद टूटते ही इस खबर को सुनना एक सदमे से कम नहीं । पहले बीस मौतों की खबर फिर चालीस पचास नब्बे बढते बढते डेढसौ घायलों की संख्या दो सौ या और ज्यादा ।पूरा देश दहल गया । ट्रेन यात्रा सभी करते हैं इसलिए सब स्थिति को अनुभव कर रहे थे ।
टीवी पर वह दृश्य अत्यंत हृदय विदारक था, तकलीफ सही नहीं जा रही थी ।अभी भी मन भा है सोच सोच कर सिहर उठता हूँ ।
शायद इस वर्ष का यह सबसे मार्मान्तिक घटना है ।रेल हादसे पूर्व में हुए, होते रहते हैं,कभी रे पटरी के कारण,कभी धुन्ध तो कभी किसी की लापरवाही के कारण । हादसे होते हैं, अफरा तफरी, नेता लोग दुख व्यक्त करते, मुआवजा दिया जाता, कौन नेता अस्पताल गया कौन नहीं गया या बाद में गया ,राजनीति होती फिर सब भूला दिया जाता ।
वक्त की मांग है कि हम इस हादसे को विगत वर्षों में हुए तमाम हादसों से जोडे और कारणों का विश्लेषण करे, समाधान ढूंढे ,बल्कि उस पर काम करे । लगभग चालीस हजार किलोमीटर रेल पटरियां अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, बढती भीड और कोच की संख्या में बढोतरी के कारण वे भार सहन नहीं कर पाती । उन्हें बदलने की जरूरत है । चौदह पंद्रह हजार मानवरहित रेलवे क्रॉसिंग है जिस पर फाटक लगाना अनिवार्य है । फाटक न रहने कारण हर साल सैकडों हादसे होते हैं । सारे सिग्नल नये आधुनिक तकनीक के सिग्नल से रिप्लेस होने की जरूरत है ।
आंकडे कम ज्यादा हो सकते हैं मगर कारण यही है । इस पर युद्ध स्तर पर काम होने की सख्त होने की जरूरत है । हमें आधारभूत बातों पर ध्यान देना चाहिए न कि वाई फाई, हाई फाई पर ।