देखो !
नन्हा सा बच्चा
स्कूल जाने की उम्र है जिसकी --
' सैनिक ' की दुकान में बर्तन धो रहा है ।
एक गिलास टूटता इधर
दस तमाचा खाता उधर --
महीने भर की पगार से हरजाना अलग ।
' यूनिसेफ ' के कार्ड उसके नाम
बाल श्रम कार्यशाला उसके नाम
चाचा नेहरू का 'बालदिवस' भी उसीके नाम ।
नहीं मालूम उसे --
मानवाधिकार के हिमायत करने वाले
कितनी बुलन्द आवाज उठाते हैं
उसकी बेहतरी के लिए ;
कितने एनजीओस है उसके लिए
कितनी योजनाएं ऐलान होती हैं
हर बालदिवस पर उसीके नाम
किन्तु हाँ --
चाय की दुकान पर
पूँजी निवेश की चर्चा सुनते सुनते
उसमे भी जग गई
उम्मीद की किरण;
उसे भी यकीन होने लगा है
कि आजादी के पचहत्तर वर्ष पर
उसका अपना मकान होगा,
उसका अपना एक दुकान भी होगा
और वह बन जाएगा
भारत की युवा शक्ति ।
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23/4/1997 Revised in February 2015
' साहित्यसंगम' संकलन 1998-- गुना ( म प्र )
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