किंतु स्वेच्छा से नहीं,
जिस घर में मैं जन्मा था
स्वेच्छा से वहां नहीं जन्मा था ।
ज्ञान होने पर पता चला था
मेरा एक धर्म, एक पंथ है,
वर्ण, गोत्र, जाति, पदवी है,
भूमिष्ट होने से पहले ही तय था,
मेरा धर्म-कर्म भाषा बोली तय था
तय था मेरा ऊंच नीच होना,
कुछ भी नहीं था इच्छा से मेरी
कुछ भी नहीं था वश में मेरे ।
मैंने देखा यहां मनुष्य को
पशुओं से अधम होते हुए,
देखा उन्हें बारुद से खेलते
देखा कोमल कलियों को मसलते,
देखा सौंदर्य बिखारता गुलाब को रौंदते
देखा किडनियों के महल बनते ।
जाना इतिहास का अर्थ है युद्ध
जाना भूगोल बदल देता है युद्ध ।
जो आग मेरे सीने में दहल रही
बहुतों में धधक रही है वही आग,
आग लगाते कईयों को देखा
आग बुझाते किसी को नहीं देखा ।।
© सुभाष चन्द्र गांगुली
( बांग्ला से हिन्दी अनुवाद अनिल अनवर , सम्पादक, ' मरुगुलशन' , जोधपुर )
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* ' मरुगुलशन ' , जोधपुर में प्रकाशित 1998 तथा ' मधुमति' में प्रकाशित ।
*'यरंग' पत्रिका अक्टूबर-दिसंबर 1999
*' नीलाम्बर ' काव्य संग्रह, जागृति प्रकाशन मलांड, मुम्बई - 1997 ( सम्पादक- डा॰ हीरालाल नन्दा 'प्रभाकर' )
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