घड़ी
घड़ी में देखता घड़ी,
थोड़ी दूर है नाव खड़ी,
कविता बनकर नाच रही जिंदगी,
हर मोड़ कविता देख
रहा हूँ ।
कल तक छोटी लगने वाली दुनिया,
आज लगने लगी अचानक बड़ी ।
बादल अभी घिरे नहीं,
बिन बादल बरसात देख रहा हूँ ।
ख़त्म हो रहा है सफर
बस अलविदा कहने वाला हूं,
क्षितिज पार करते करते
भारत माँ की ही गोद में
खुद को देख रहा हूँ।
-सुभाष चन्द्र
गाँगुली
30/05/2022
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