मत छीनो बचपन हमसे
हमें बच्चे रहने दो !
शान हैं हम घर आंगन चौबारे के
आन हैं हम दादा और दादी के
मुस्कान हैं हम बड़े बुढों के
हम ही हैं फूल बाग़ बगीचों के
अरमान हैं हम माता पिता के
फ़रमान हम ही हैं ईश्वर के ।
मत छीनो बचपन हमसे
हमें बच्चे रहने दो ।
दुखती रग के मरहम हैं हम
डूबते जीवन के खेवैया हम
बूढ़े लाचारो की लाठी हैं हम
सुख दुःख हर पल भरते हमही दम
खेलने-कूदने पढ़ने-बढने दो हमें
दूर रहने दो श्रम से हमें ।
मत छीनो बचपन हमसे
हमें बच्चे रहने दो ।
हादसे से बचने भी दो हमें
फुटपाथों को कर दो खाली
न खींचों हमें कुर्सी धरम के झगडे में
न करवाओ नौकरी चाकरी रखवाली
हम उम्मीद हैं जन जन के
हम ही भविष्य हैं भारत देश के
मत छीनो बचपन हमसे
हमें बच्चे रहने दो ।।
सुभाषचंद्र गांगुली
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4/1172004
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