वही है मेरा देश जहां है एक पहाड़
और है एक नदी
चलो ना मेरे संग !
पहाड़ की देह से चढ़ती है
अंधेरी रात और नदी से उतरती है भयंकर भूख ।
चलो ना मेरे संग !
इतने दिनों तक जो सहते आ रहे हैं अत्याचार/ कौन हैं वे ?
मुझे नहीं मालूम लेकिन वे मुझे बुला रहे हैं ।
चलो ना मेरे संग !
मुझे मालूम नहीं किन्तु वे जानते हैं मुझे
मुझे बुलाकर कहते " हम हैं सताए हुए " ।
चलो ना मेरे संग !
मुझसे कहते हैं वे : " पहाड़ और नदी के बीच
भुखमरी और यंत्रणा से त्रस्त है
अभागी तुम्हारी कौम
नहीं चाहते वे अकेले संग्राम करना
मित्र ! तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं वे "।
लाल गेंहू का क्षुद्र एक कण
आह ! कितना प्यार करता हूं मैं तुम्हें
प्रियतमा मेरी !
संग्राम कितना ही कठीन क्यो न हो
जिन्दगी कितना ही कठीन क्यो न हो
तब भी तब भी तुम रहोगी मेरे पास ।
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* मूल पोलिश कविता : पाब्लो नेरुदा
* बांग्ला अनुवाद : असित सरकार
* हिन्दी अनुवाद : सुभाष चन्द्र गांगुली
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