' हावड़ा काल्का ' हावड़ा से चली रात दस बजे। बेटी रीमा को उसके ससुराल से ले जाने के लिए मैं कोलकाता आया था। बेटी की गोद में है उसकी छह माह की बिटिया बबली।
ए सी थ्री का डिब्बा । कोच में सब लोगों ने अपनी-अपनी जगह ले ली। गाड़ी छुटने के आधा घंटा-पौन घंटे में लगभग सभी यात्रियों ने बिस्तर सेट कर लिया।
रीमा की गोद में है छह-सात महीने की उसकी बेटी बबली। जब से डिब्बे के भीतर आयी है तब से रोयी जा रही है, कभी धीरे तो कभी तेजी से ।
एक-एक कर लौटते गये और अपने-अपने केबिन का लाइट आफ कर पर्दे खींच देते रहे। धीरे-धीरे कम्पार्टमेन्ट में उजास कम होता गया और फिर उतना ही उजाला रह गया जितना पैसेज और गलियारे की मध्यिम रोशनी से भीतर आता है।
ज्यों-ज्यों रोशनी कम होती गई त्यों-त्यों मेरी नातिन का रुदन बढ़ता गया । गाड़ी धीमी चलती तो आवाज़ सुनाई देती, तेज चलती तो कहीं कोई कितना भी चीत्कार करे नहीं सुनाई देती।
डिस्टर्बेंस तो होता ही है पर क्या किया जाए, आख़िर वह बच्चा है और उसे कोई तकलीफ़ है जरूर। केबिन में कोई न कोई झांक कर चला जाता । सभी कुछ न कुछ कह रहे थे, कभी बिडबिडा रहे थे तो कभी जोर से बक रहे थे।
बेटी रीमा लोअर बर्थ पर थी, उसके ऊपर मिडिल बर्थ में लगभग उसी के उम्र की एक मुस्लिम लेडी विराजमान है।
दोनों में बातचीत शुरू हुई। उसने अपना नाम आयरा बताया। मायके जा रही है। ' गया ' स्टेशन पर उतरेगी, वहां उसका भाई रिसीव करेगा, फिर बाई कार एक घंटे का रास्ता । गांव में है उसका मायका है ।
उसके पूछने पर बेटी ने अपना नाम बताया फिर कहा कि वह एम ए,एम बी ए है, मल्टीनैशनल में जनरल मैनेजर है। आयरा ने बताया कि वह एम एस सी, पीएचडी है, पीजी कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर है।
काफ़ी देर तक उन दोनों में बातचीत हुई । एकदम दो सहेलियां जैसी। अधिकतर बातें ट्रेड एंड कामर्स, रसिया-यूक्रेन युद्ध, अमेरिका की दादागिरी पर हुई । आयरा ने विज्ञान की खोज पर भी जानकारियां दी। उसने बताया इजरायल वालों ने हवा से नमी खींच कर पानी बनाने वाली मशीन का आविष्कार किया है।
मजे की बात यह थी कि बातचीत के दौरान जब-जब बबली रोती आयरा कहती " इसे नज़र लग गई है" । रीमा अनसुनी कर देती।
एक बार जब बबली ने दूध पीते-पीते बोतल फेक दिया तब आयरा बोली " इसे ज़बरदस्त नज़र लगी है। लाइए मैं नज़र उतार देती हूं।"
रीमा बोली " मैं नज़र-वज़र नहीं मानती। बकवास है सब। मां ने कहा था बच्चों के दांत निकलते समय बहुत तकलीफ़ होती है। इसके मसूड़े कड़े हो रहे हैं।"
आयरा बोली " ये दांत वाली तकलीफ़ नहीं है। आपका बच्चा इतना ख़ूबसूरत है इसे यकीनन नज़र ही लगी है।"
--" अरे आप विज्ञान की टीचर हैं और नज़र लगने की बात कर रही हैं !"
--" मां के लिए उसकी संतान सबकुछ होती है। संतान की भलाई के लिए विज्ञान और कला क्या देखना। हर वह उपाय जिससे बच्चा स्वस्थ रहे सही होता है। हर मां अपनी संतान का नज़र उतारती है। मेरे बच्चे जब बहुत छोटे-छोटे थे तो मैं भी नियमित नज़र उतारा करती, कभी-कभी मेरी मां-दादी उतार देती।"
रीमा बोली - "इस देश मे लोग इतनी अधिक अंधविश्वासी है, इतना ज़्यादा नज़र मानते हैं कि ' रफाल ' आने पर नीम्बू मिर्चा बांध तो दिया था। दुनिया भर में किरकिरी हुई थी ।"
आयरा ने उत्तर में कहा- " बहन दोनों बातें अलग-अलग है। मैं सिर्फ़ बच्चों को नज़र लगने की बात कर रही हूं। "
बबली दूध पीकर सो चुकी थी । दोनों महिलाएं अपने-अपने बर्थ पर लेट गई थीं।
बमुश्किल आधे घंटे ट्रेन चली थी कि एक जगह रुक गई। रुक गई तो रुक गई। बबली फिर म्याऊं-म्याऊं सुर में रोने लगी। कभी-कभी रुक-रुक कर तो कभी लगातार। सीमा से सम्हाला नहीं जा रहा था। उसे लेकर वह अन्दर-बाहर करती रही। डांटती, बिलबिलाती, गुस्सा झाड़ती फिर पुचकारती। बेचारी बबली !
उधर समझदार लोग जिनकी निद्रा भंग हो गई थी इतनी देर से ट्रेन रुके रहने से अधैर्य हो उठे थे, लगातार बकबक किए जा रहे थे, रेल मंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, ग्रामप्रधान, रेल कर्मचारी, सिस्टम सबको कोस रहे थे।
थक हार कर रीमा गोदी में लेकर टहलाने लगी मगर बच्ची को शांत करने की हर कोशिश व्यर्थ हो गयी। मैंने बबली को गोद में लेकर टहलाने की कोशिश की किंतु वह और ज़्यादा रोने लगी। शायद बच्चों को मुलायम शरीर पसंद होता है।
आयरा अपनी बर्थ से झुक-झुक कर देख रही थी, कुछ न कुछ कह रही थी मगर अब उससे भी नहीं रहा गया, वह बिस्तर छोड़ कर नीचे उतर गई। वह बोली -" लाइए दीदी मुझे, मै देखती हूं।"
रीमा बोली- " अरे आप कैसे सम्हालेंगी ? मेरे ही पास नहीं रह रही है, आपका स्पर्श तो वह पहचानती भी नहीं । आखि़र कितना रोयेगी ? थक हार कर चुप हो ही जाएगी ।"
आयरा बोली -" लाइए मैं कोशिश करके देखूं। मैं भी एक मां हूं। कोशिश करके देखूं। कभी कभार गोद बदलने पर भी काम बन जाता है।"
उसने जैसे ही दोनों हाथों को बबली की कांखों में डाला बबली शांति से उसके पास चली गई।
उसे लेकर आयरा चहलकदमी करने लगी । रोने की थोड़ी बहुत आवाज़ सुनाई दी कुछ देर, फिर लगा कि वह सो गयी होगी है।
इस बीच गाड़ी चलने लगी थी। रीमा की आंखें लग चुकी थी।
मैंने देखा आयरा लौट कर चुपके-चुपके बबली को उसकी बगल में लिटा दिया। रीमा की पलकें खुल गई। कुछ बोलने जा रही थी मगर आयरा ने उसे चुप रहने का संकेत दिया।
अगले दिन सुबह छह बजे गाड़ी ' गया ' स्टेशन पहुंच गई। समय से दो घण्टे लेट चल रही थी।
आयरा के पास एक ही किट बैग था, उसे लेकर नीचे उतरी । उसने अपना हिजाब पहन लिया, चेहरा खुला हुआ था,वह रीमा के क़रीब आयी, रीमा ने उसकी कलाई पकड़ कर बोली -" बहन शुक्रिया। आपने बेटी को शांत करा दिया था। मैं बहुत परेशान थी। जब से आप रख गयी आराम से सो रही है। मैंने दूध पिलाया, डाइपर भी बदला। आपको बहुत परेशान किया होगा ......."
वह बोली - " नहीं नहीं। परेशानी का क्या मैं भी एक मां हूं। मैंने नज़र उतार दिया था। बहुत तेज नज़र लगी थी। बच्चों का नज़र उतारने के लिए किसी मां को विज्ञान की जरूरत नहीं होती। "
रीमा बोली -" भगवान करे मां की इस ममता को कहीं नज़र ना लगे ।"
दोनों की आंखें नम हो आईं।
आयरा ने हिजाब से अपना चेहरा ढक लिया। " ख़ुदा हाफ़िज़ ! " वह निकल गई।
02/12/2022
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© सुभाषचंद्र गांगुली
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