आज वो ज़िन्दगी से रुबरु हो गयी
है
आज ही उसने सोलहवीं वर्षगाँठ मनायी
है
आज ही उसकी आंख खुली है
आज ही उसे वेदना का एहसास हुआ है
आज ही वह ज़िन्दगी से वाकिफ़ हुई
है
आज… मेरी बेटी बड़ी हो गयी है…
मम्मी ने आज सोलह बत्तियाँ जलने
न दी
पापा ने आज दफ़्तर से छुट्टी न ली
मम्मी ने आज गीत नहीं गाया
पापा ने आज डांस नहीं किया
सहेलियों ने आज शोर नहीं मचाया
किसी ने आज गुब्बारा नहीं उड़ाया
आज वह सोलह साल की हो गयी है
आज… मेरी बेटी बड़ी हो गयी है…
दादी ने आज पास नहीं सुलाया
नानी का आज फ़ोन नहीं आया
भाभी का कार्ड भी नहीं आया
सीमा ने विश् न की थी
रीमा तो भूल ही गयी थी
आज… मेरी बेटी बड़ी हो गयी है…
रात को उसने सबकी ख़बर ली
मैं बोला, सो जाओ बेटी, मत रोओ
अब तुम बड़ी हो गयी हो,
जीवन पथ पर अकेली चल पड़ी हो
डगर कठिन है पनघट की
आज मेरी बेटि बड़ी हो गयी है
आज वो ज़िन्दगी से रुबरु हो गयी
है
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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