मेरे मन के अन्त:पुर में
कौन आया है आज
कल- कल, कल-कल अविरल धुन में
बज उठता मन साज !
हलचल हलचल प्रतिपल करता
मन्द समीकरण आंचल भरता
मेरे सुने मन आंगन में
देता है आवाज !
भाव विहग को टेर रहा है
सरगम की धुन छेड़ रहा है
तन मन बेसुध किए दे रहा है
आए न इसको लाज !
प्रीत निगोडी व्यथा बनी
हर जुबान की कथा बनी
नगर ढिंढोरा चर्चा घर घर
खोल गया सब राज !
सुभाष चन्द्र गांगुली
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* गीत संकलन : "वक्त की परछाइयां " सम्पादक गीतकार सतीश गुप्ता , अप्रेल 1998 में प्रकाशित
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