ऐ लड़की सुन !
अब तू बड़ी हो गई है
मेरी बातें ज़रा ध्यान से सुन ।
तुझे जो शिक्षा दी गई है
उसे तू भूल जा :
वह सब मर्दों ने अपने हित में लिखा है ।
पुरुष प्रधान समाज को तुझे बदलना है :
तुझे वीरांगना बनना है
उसी में तेरी भलाई है
तेरे नस्ल की भलाई है ।
सुन !
तू गांधारी जैसी
आंखों पर पट्टी मत बांधना
पति और परिवार के लिए
हमेशा आंखें खोल कर रखना
और अपनी संतान को दुर्योधन
न बनने देना ।
सुन !
तू सीता जैसी
अग्निकुंड में मत उतर जाना :
उस अंधेर नगरी की प्रजा से पूछना
जो नर पिशाच नारी की लाज उतारता
क्यों नहीं होती उसकी अग्निपरीक्षा ??
सुन !
तू द्रौपदी जैसी पांच-पांच को
पति न मान लेना, और हां
दुर्योधन के पिता के लिए अपशब्द
मत बोलना ।
मेरी बूढ़ी आंखें जो कुछ देख चुकी हैं
वही जुबां पर निर्भिकता से
आ रही है ।
और सुन !
तू अगर अपने पैरों पर
खड़ा होना चाहती है
तो दो-चार रुपए जरुर कमाना
याद रख :
अर्थ अनर्थ को अर्थ में
तब्दील कर सकता है
अर्थ अर्थों को शब्दों से अक्षर
बना सकता है :
तुझे तेरी अहमीयत का अहसास
करा सकती है ।
सुन !
तूने ही महिषासुर का वध किया था
तूने ही नरमुंड माला पहनी थी
तूने ही लुटेरे अंग्रेजों को ललकारा था
तेरी ही खातिर ट्राय का जहाज़ डूबा था
तेरी ही खातिर जाने कितनी लड़ाईयां
लडी गयी थी ।
सुन !
तू ठान ले तो
स्वाभिमान से जी सकती है।
सुभाषचंद्र गांगुली
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*जनप्रिय ज्योति 1998
*जगमग दीपज्योति 1999
*आर्यकन्या डिग्री कालेज गोल्डन जुबली समारोहके अवसर पर पाठ । भूतपूर्व राज्यपाल श्री केशरी नाथ त्रिपाठी कवि के रूप में मंच पर आसीन थे।
बेहतरीन अंकल जी
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत शानदार अंकल जी 👍
Waah.........bahut sundar 🙏🙏
ReplyDeleteबेहतरीन, नारी आन्दोलन की आवाज और सीख।
ReplyDeleteNice lines
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