मेरा बीता हुआ कल
बहुत
सारे प्रश्नों को लेकर
मेरे
सामने खड़ा हो गया है,
उसने
अपना पैर
अंगद
जैसा जमा दिया है
वह
माँग रहा है मुझसे
अपना
जन्म सिद्ध अधिकार।
उसे
मैं लाँघ नहीं सकता
उसे
दुत्कार नहीं सकता
उसे
उसका अधिकार
दे
नहीं सकता, फिर भी
वह
अडिग है, अट्ल है
मेरे
लिए अवरोध बना हुआ है
वह
मेरे बर्तमान का
सुख
चैन छीन रहा है
मेरे वर्तमान को अतीत के साथ
जोड़ रहा है
और मेरे आने वाले कल के लिए
प्रश्न पत्र तैयार कर रहा है
जिसका उत्तर मुझे नहीं
आगामी पीढ़ी को देना होगा।
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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11/8/1997
" रैन बसेरा " के अक्टूबर 2000 में प्रकाशित ।
'आनन्द मंजूषा' कोलकाता में
* कार्य संकलन 'नीलाम्बर' जागृति प्रकाशन, मलांड मुम्बई ( सम्पादक -- डाक्टर हीरालाल नन्दा ' प्रभाकर ')
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