आया था कभी
सामने के दरवाजे से
मेरा अतीत
जिसे--
ढकेला था मैंने
भीड़ में पीछे
होने को कालातीत।
न जाने कैसे
पुनः सामने से
नये परिधान में
आया बनके
मेरा वर्तमान
सामने के दरवाजे से
मेरा अतीत
जिसे--
ढकेला था मैंने
भीड़ में पीछे
होने को कालातीत।
न जाने कैसे
पुनः सामने से
नये परिधान में
आया बनके
मेरा वर्तमान
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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