भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
बाढ से बेघर होते हैं
बेघर उनको होने दो,
बांध ढहने से वे दबते हैं
दबते हैं तो दबने दो ,
धर्म से समाज टूटते हैं
टूटते हैं तो टूटने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
देखो बच्चे ईंटा ढोते
चुप्पी साधे बैठे रहो,
आतंकी गर बढ़ते हैं
नादानो को मरने दो ,
चिंताओं में वोट सेंको
भारत मां को रोने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
गाड़ी ज्यों ज्यों रुकती है
अपाहिज अंधे आते हैं
रोटी दो पैसे दो
सुर लय में कहते हैं,
मुंह फेरो शीशे खींचो
उन्हें सुर में रोने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
सज धज के तुम आ जाओ
बुफे में रंग और लाओ,
दारु पीकर झोरके खाओ
भूखे बच्चे डांट भगाओ ,
उनको जूठन खाने दो
कुत्ते जैसे जीने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
अर्थ व्यवस्था बिगड़ती है
आंकड़ों में उलझा दो,
पेट्रोल डीजल बढ़ता है
तेल विदेशी कहते रहो,
मुद्रास्फीति बढ़ती है
काला धन निकालते रहो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
घूसखोरी बढ़ती है
दूध का धोया कौन कह दो,
दंगे फसाद बढ़ते हैं
जनता पर दोष मढ दो,
आपस में लोग टकराते हैं
चूर चूर हो जाने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।
दर दर कौरव खड़ हैं
उनको कपड़े उतारने दो
पांडू भोले बनते हैं
बनते हैं तो बनने दो
जात पात से घर बंटते हैं
बंट भी तो जाने दो ।
भारत माता रोती है
रोती है तो रोने दो ।।
* सुभाष चंद्र गांगुली *
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Written in 1998
' काव्य कलश ' 'नये तेवर ' में प्रकाशित ।
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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