मेरी कविताएँ
शीशों की अलमारियों में
कैद हो गई, और
कालान्तर में उनमें धूल की परतें जम गई
दीमक लग गई, पर
फर्क क्या पड़ता मुझे
मेरी कविताओं की गफलियत से,
आखिर उन्हीं संग्रहों के सहारे
अपना कद ऊंचा किया मैंने ।
भले ही मेरी भावनाओं को
दीमक ने ठेस पहुंचाई हैं
पर मुझे यकीन है
आज से सौ साल बाद
कोई न कोई काव्य प्रेमी
उन्हीं धूल भरी, दीमक लगी
कविताओं को
उत्सुकता से पड़ेगा
और चीख कर कहेगा
कवि तुम अमर हो
अमर रहोगे ।
© सुभाषचंद्र गांगुली
लेखन : 1995
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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