एक अरब एक
( दिनांक 11/5/2000 को दिल्ली के सफदरजंग में एक अरबवां बच्ची जन्मी जिसका नाम रखा गया था "आस्था " । तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने कहा था --आज हम एक अरब हो गये हैं । वह पैगाम लेकर आयी है । बच्ची की सारी जिम्मेदारी सरकार ने ले ली थी । उसी को केंद्र में रखकर यह रचना दिनांक 15/5/2000 को लिखी गई थी )
आस्था के जन्म के थोड़ी ही देर बाद
आस्था की एक बहन ने जन्म लिया था
सम्भव है कि उसका नम्बर एक अरब एक रहा,
मुट्ठी बंद हाथों में उसके क्या था लिखा
अभी तक किसी ने खोलकर नहीं देखा ।
क्या उसने जनसंख्या वृद्धि की याद दिलायी ?
क्या वह बच्ची भी कोई पैगाम लेकर आयी ?
आस्था की बहन गर्मी की झुलसती धुप में
जीटी रोड को जोड़ने वाले पुल के बगल में ,
विशाल स्पन पाइप के भीतर चीख रही है,
उसकी मां पक्के मकान का सपना देख रही है,
उसकी मां लोरी गाकर सुलाना चाहती
वो चंदा मामा दूर के गुनगुनाना चाहती
मगर उसकी आंखें पाइप के बाहर नहीं जाती
घुप अंधेरे में आंखें नम हो जाती ।
बच्ची की नानी बेटी की सौरी से बेहद परेशान हैं
एक कुतिया से नवजात शिशु को बचाने में लगी हुई हैं,/और कुतिया अपने बच्चों को जन्म देने के लिए /पाइप में घुसने के लिए परेशान है ।
आस्था की बहन अपने साथ पैगाम नही ले आई
तभी वो किसी के चेहरे पर मुस्कान नहीं ला सकी,
आस्था के भाई बहन जीर्ण पृथ्वी में व्यर्थ
आते रहेंगे जाते रहेंगे .....
कब तलक हम आंखें बंद रखेंगे ?
किस किस के पैगाम का इंतजार करेंगे ?
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
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2000 में ' युद्धरत आम आदमी ' में प्रकाशित
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