पकड़ रखा था पूरे पचास बरस ;
दुःख दिया, कष्ट दिया
दिया दुनियाभर की दुर्भावनाएं, दुश्चिंताएं
तब भी था जीवन मेरे साथ ;
मैं था जीवंत, दुर्दांत, उद्भ्रांत
तेजी से घूमता था दिक्- दिगंत
जीवन मुझे देता था जीवनी- शक्ति
अफुरंत, असीम, अनन्त ;
जाने कब आसक्त हुआ भोग विलास से --
अनायास आसक्ति घूस गयी मेरे मन में
ला दी धन, सम्पदा, सामर्थ्य
दे गयी धन, विपदा, अनर्थ
श्वेत केश होने पर समझा जीवन का अर्थ
समझा जीवन की आसक्ति का अर्थ
अब मैं 'जीवन जीवन ' पुकारता हूं
विषाद लेकर हाथ हिलाकर बुलाता हूं,
आमोद में है कहीं जीवन
मैं बुलाता हूं 'आओ आओ आओ,
लौट आओ रे मेरा जीवन
किसी में तो प्रत्युत्तर दो ना जीवन !
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
(मूल बांग्ला -- सुभाष चन्द्र गांगुली
अनुवाद -- अनिल अनवर, सम्पादक,
मरु गुलशन )
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