हे सम्राट !
तुम्हारी लाट
साम्राज्य विस्तार के
प्रतीक के रूप में
सदियों खड़ी रहेगी,
याद दिलाती रहेगी
कलिंग नरसंहार की
तुम्हारी क्रूरता की,
फिर भी ध्वस्त नहीं करेगा
कोई भी
क्योंकि उससे नहीं आती बू
साम्प्रदायिकता की,
नहीं आती बू
वर्ग विशेष के प्रतिनिधित्व की,
और तुम
नायक भी तो न थे
कि तुम्हारा गुणगान किया जाए
या गाली दी जाए,
तुम तो
हताशा की चादर
ओढ़ कर
चले गए थे
बुद्ध की शरण में ।
* देहरादून से आगे कालसी एक स्थान है जहां
अशोक की लाट है ।
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
लेखन : 1996
_________________
24/3/1997 'क्रा्तियन्यु ' जनवरी 1998 के अंक में प्रकाशित ।
' तरंग ' में प्रकाशित ।
सुभाष चन्द्र गांगुली
________________
No comments:
Post a Comment