सुखिया किसान सुखी है
खेत है खलियान है
बैलगाड़ी, ट्रैक्टर भी है
और है एक कुआं
यह है वही कुआं
जो बन गया था
राष्ट्रीय राजनीतिक मुद्दा ।
कुएं से जल खूब मिलता
स्वच्छ जल सदा मिलता ।
पडोसी दुखिया दुःखी है
सबकुछ है तो सही
कुएं में जल प्रर्याप्त नहीं
परिवार के सभी दूर दूर से
लाते हैं जल बड़ी मेहनत से
फसल अक्सर सूख जाता
बच्चे बूढ़े गन्दे रहते
कदाचित नाले में ही नहा लेते ।
दुखिया ने बिनती की,
दुआएं दी,मिन्नतें की,
थोड़े से जल के लिए
बैठे रहे सुखिया ऐंठ के ।
पंचों ने कहा
दुखिया को जल दो !
सुखिया ने कहा
साले को मरने दो।
माना नहीं किसी का कहा।
तब दुखिया की पत्नी
आमरण अनशन बैठी
मौत या पानी !
गांव गांव खबर फैलती गई
धीरे धीरे भीड़ उमड़ती गई
नेता लोग झांकने लगे
अनशन में साथ देने लगें
सरकार से वे गुहार लगाने लगे
दो लोगों की कमेटी बनवा लिए
आदेश हुआ जल देने का
अनशन भंग करने का ।
ड्रामा अभी खत्म हुआ नहीं
सुखिया चुप बैठा नहीं
पैसा फेंक चाहा तमाशा देखना
शुरू हुआ उसका पक्षधर बनना,
फिर सुखिया बैठा अनशन पर
तुल गया वह आदेश रद्द कराने पर,
कमेटी बैठी हल ढूंढने
किसी तरह सुखिया को मनाने ।
सुखिया जिद्द पर अड़े रहे
उनके समर्थक चढ़े रहे ।
जमीन से पाताल तक
और जमीन से आसमान तक,
जो कुछ है, है उसी का,
सुखिया ने कहा ।
स्थगन आदेश हुआ
अनशन खत्म हुआ
पागलपन थम सा गया ।
कमेटी के सुझाव पर
बोरिंग चला महीना भर
बहुत गहरा सुखिया का कुआं
तभी पानी मिलता रहा
कम गहरा दुखिया का
तभी पानी जाता रहा ।
तीन जजों की अदालत ने
दोनों पक्षों को महीनों सुना
फैसला मगर नहीं सुनाया
फैसला अपना रिजर्व रखा ।
रह रह कर दोनों भिड़त रहे
एक दूसरे को तंग करते रहे
खेत खलियान जलाते रहे
नये नये केस बनाते रहे
अदालत में तारीखें लगती रही
वकीलें पैसे ऐंठते रहें
निर्णय रिजर्व रखा रहा
जनहित में रिजर्व रखा रहा
ख़ामोश अदालत चलती रही ।
नेताओं को मौके मिलते रहे
गुंडों के दबदबे बढ़ते रहे
अफसर चिंतित होते रहे ।
अंत फिर कुछ ऐसा हुआ
' निर्भीक ' ने एक सुझाव दिया
पंचों ने जिसे पारित किया
बनवा लें सुखिया दीवार,
जमीन के नीचे पाताल तक
और उपर आसमान तक
जो कुछ मिले वह ले जाए ।
सुखिया को बात समझ में आई
बोले 'क्षमा करो दुखिया भाई
खत्म करें झगड़ा लड़ाई,
बच्चे क्यो नहाते नाले में
आओ मिलकर खाना खाये
एक ही थाली में ।'
जल विवाद खत्म हुआ
दोनों में समझौता हुआ ।
निर्णय फिर भी रिजर्व रहा
जनहित में रिजर्व रखा रहा ।
सुभाष चन्द्र गांगुली
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4/3/1998
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