बूंद-बूंद जल के लिए
तड़पते तरसते देख रहा हूं
इक लोटा पानी के लिए
घंटों में क्यू में देख रहा हूं ;
कुबेरपतियों नेताओं के लिए
खास व्यवस्था देख रहा हूं
नल के स्वच्छ जल को
नाले में गिरते देख रहा हूं ;
नंग धड़ंग बालिगों को
नाले में तैरते देख रहा हूं
बूंद-बूंद जल के लिए
प्रांतों को भिड़ते देख रहा हूं ;
हरेक प्रान्त के प्रांतभक्तो को
द्वेष से जलते देख रहा हूं
निर्भीक हूं सहने के लिए
भिष्मपिता जैसा सह रहा हूं ।
© सुभाष चंद्र गाँगुली
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
___1997___________
' दस्तक ' -- बहादुर गढ़
में प्रकाशित ।
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