एक नवजात शिशु
जिसने रोना भी न सीखा था
कल तक ,
चीख चीखकर रो रहा था
अपने गर्भ गृह में,
अकेला ......
एकदम अकेला
कंठ चीर कर रो रहा था ।
और उधर
घर के बाहर
सरकारी पहरेदार,
मूंछें ऐंठे ,लाठी लिए
स्टूल पर बैठा ऊंघ रहा था ।
कल रात दंगाइयों ने
उसके पूरे परिवार को कूट डाला था
मगर उस नवजात शिशु पर रहम किया था ।
आखिर वह बच्चा
कल का आदमी जो था ।
सुभाष चन्द्र गांगुली
12/2001
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