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Wednesday, July 28, 2021

कहानी- नौकर



कल रात से तपन दास लापता हैं। तपन दास की ढुँढ़वाई हो रही है। लोगों ने पूरा शहर छान मारा, सारे परिचितों से पूछताछ की, मगर जब सारा प्रयास व्यर्थ हो गया तो आशा के बेटों ने स्थानीय नेता को खबर दी जिनके प्रभाव से पुलिस इस समय बेहद मुस्तैदी दिखा रही है। कोतवाली से जिले की सभी चौकियों को वायरलेस द्वारा सूचित कर दिया गया है, लाउडस्पीकर से शहर की गली-गली में एलान किया जा रहा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से विज्ञापन देने की तैयारी की जा रही है। मगर सभी हैरत में हैं कि तपन दास आशा के घर या कारोबार का कोई सामान लेकर क्यों नहीं गए। सबको इस बात पर भी हैरत है कि तपन दास 'आशा स्पन पाइप फैक्ट्री' के कर्णधार थे मगर उनके मूल निवास की जानकारी आशा को और उसकी कंपनी के किसी और को क्यों नहीं है।

आशा सिर्फ इतनी जानकारी दे सकी कि जब उसकी नई-नई शादी हुई थी, वह कल्याणी देवी मंदिर में माँ का दर्शन कर मोटरकार पर बैठी ही थी कि बीस-बाईस साल का एक लड़का हाथ बढ़ाकर भीख माँगने लगा था। जब उसके पति रवि राय गाड़ी का दरवाजा खोलकर मोटरकार पर बैठे तब उस लड़के ने उनके सामने हाथ फैलाया तो रवि राय ने क्रुद्ध होकर कहा था-" 'तुम्हें भीख माँगते शर्म नहीं आती? सेहत से ठीक-ठाक हो, चेहरे से खाते-पीते घर के लगते हो, फिर क्यों हाथ फैलाते हो? इन हाथों से मेहनत-मजूरी करो।'

लड़के ने प्रत्युत्तर में कहा था-"साहब! मैं इंटर पास हूँ। मेरे पिताजी मेघालय में नौकरी करते थे। भूचाल में सब कुछ तहस-नहस हो गया था, परिवार में मेरे सिवा कोई बचा नहीं, अब तो मेरे पास यह भी साबित करने को नहीं है कि मैं पढ़ा-लिखा हूँ, अनजान होने के नाते मुझे चाय तक की दुकानों में काम नहीं मिलता। लेबर चौराहों पर मौजूद सारे मजूरों को वैसे ही रोजाना काम नहीं मिल पाता और चूंकि मैं अजनबी हूँ, सब लोग मुझे धकिया देते हैं।'

उसकी बातों से आशा इतनी मर्माहत हुई थी कि उसने अपने पति से उसके लिए दो रोटी का जुगाड़ कर देने का अनुरोध किया था। रवि राय उसे अपने साथ ले गए थे और गाँव में स्थित 'आशा स्पन पाइप फैक्ट्री' में मजदूर की हैसियत से उसे रख लिया था । फिर आगे चलकर वह टाइम कीपर और कुछ समय बाद अकाउंटेंट बना दिया गया था। धीरे-धीरे उन्होंने तमाम जिम्मेदारियाँ उसे सौंप दी थीं। अपनी कर्तव्य-परायणता और लगन के कारण तपन दास, रवि राय के खास आदमी बन गए थे ।

आज 'आशा शापिंग कांप्लेक्स' का उद्घाटन होना था तपन दास ने मुझे न्यौता दिया था। तपन दास ने मुझे जानकारी दी थी कि भव्य समारोह का आयोजन किया गया है, शहर की जानी-मानी हस्तियों और धन्ना सेठों के आने की बात है। समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम तथा लगभग एक हजार लोगों के डिनर की व्यवस्था की गई है। तपन दास बेहद उत्साहित थे और हों भी क्यों न, आखिर उन्हें बेहद प्रसन्नता जो थी कि रवि राय की अनुपस्थिति में उन्होंने बड़ी भारी जिम्मेदारी बखूबी निभाई है।

करीब दस वर्ष पहले रवि राय की हत्या हो गई थी। उसकी हत्या क्यों की गई थी, किसने की थी, कुछ पता नहीं चल पाया था। मगर आशा को यकीन है कि सारी अशांति की जड़ थी चुनाव में रवि राय का टिकट पाना। जब एक राजनीतिक दल ने रवि राय को टिकट दिया था तब आशा ने कहा था- ' अजी आप जैसन हैं, वैसनइ ठीक हैं। इ चुनाव-उनाव न लड़ें, का फाइदा ? कौनो कमी तो नैना। भगवान तो खूब दिएन हैं।' 

रवि राय ने कहा था--'जनता की सेवा करने का मौका मिलेगा। हम सरकार से पैसा ले पाएँगे, स्कूल खोलेंगे, अस्पताल खोलेंगे।'

आशा सहमत नहीं हो पाई थी। वह रूठकर बोली थी- 'आप कैसे करिहैं, सरकार चाह लेई तो कमवा ऐसनइ होत रही, आपके बिना कमवा होत की नाहीं। उसब पचड़े में आप न पडै , फालूत बवालै होई, दुश्मनी बनी । दस का भला करे के चक्कर मा दस से दुश्मनी होई । रहै दें। मोटर, बंगला, रुपिया-पइसा और का चाही दुई बेटवा खातिर बहुत है, बिटिया का बिया आराम से होय जाई।'

रवि राय ने हँसकर कहा था--' अरे सब कुछ है तो सही पर तुम्हें क्या मिला? देखना, चुनाव जीतकर मैं मंत्री बन जाऊँगा, धीरे-धीरे मुख्यमंत्री बन जाऊँगा फिर मैं दिल्ली की राजनीति में चला जाऊँगा और मुख्यमंत्री वाली कुर्सी पर तुम्हें बिठा दूँगा, तुम रानी बन जाओगी। सचमुच की रानी ।'

आशा की आशंका सही निकली थी। चुनाव के ठीक एक पखवारे पहले जब रवि राय अपने गाँव की फैक्ट्री से लौट रहे थे, बीच रास्ते में अचानक चार-चार मोटरकारों ने उन्हें रोक लिया था और उन्हें गाड़ी से उतारकर गोलियों से भून डाला था। संदेह आधार पर कइयों को गिरफ्तार किया गया था मगर सबूत के अभाव में सभी रिहा हो गए थे। आज तक उनकी मौत रहस्य बनी हुई है मगर आशा को ऐतबार है कि उनके प्रतिद्वंद्वी ने, जिसने बाद में जीत हासिल की थी, हत्या करवाई थी।

रवि राय की मृत्यु बाद आशा के परिवार और कारोबार के मामले में दखलंदाजी करने आशा के ससुराल व मायके के कई लोग कूद पड़े। दोनों पक्ष वास्तविक हितैषी होने का दावा पेश करने और दोनों एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने लगे। आशा की खामोशी की वजह से घर में घोर अशांति छा गई और उधर फैक्ट्री में कामकाज की ढिलाई व प्रबंधकों की मनमानी तथा लूट के चलते फैक्ट्री में लाकआउट की नौबत आ गई।

अंततः आशा ने तपन दास को बुलवा भेजा और फैक्ट्री तथा उसकी गृहस्थी के देख-रेख का जिम्मा उसे सौंप दिया। तपन दास ने अवाक् होकर कहा था- ' बीबीजी! इतनी बड़ी जिम्मेदारी आप हमें क्यों सौंप रही हैं ? फैक्ट्री में जनरल मैनेजर हैं, काफी सीनियर हैं, ढेर पढ़े-लिखे हैं, सरकारी आफिस के बड़े पद से रिटायर हुए हैं, और भी कई काबिल व अनुभवी लोग हैं, आप उन्हें दे सकती हैं, मैं ठहरा सामान्य आदमी, अनुभव भी कम है।'

आशा ने कहा था-'तपन जी ! हमार मनई आपका मानत रहे, हर गोपन काम आपै को देत रहें एही से हम आपै का देना चाहित हैं, आपे पे हमार भरोसा है ।'

तपन दास ने विवश होकर कहा था-'बीबी जी ! मैं वकील बुला देता हूँ. आप उन्हें कागजात दिखा दीजिए। फैक्ट्री, मकान सब कुछ आपके नाम से हो जाना चाहिए, मैं नहीं चाहता कि कोई मुझ पर किसी तरह का इलजाम लगाए। बाकी काम-काज मुझसे जितना संभव है, मैं देख लूँगा ।'

आशा ने राहत की साँस ली और कहा--'जइसा आप उचित समझें, वइसा करें। हमका कुछौ नहीं मालूम। कागज-पत्तिर जौन धरा है ऊ अलमरिया मा है ऊ सब हम आपका दै देब.... उनका मिहनत व्यर्थ न जाए, हमार बच्चन का भविष्यत हम आपैका देईथी, आपुन समझ के देख लैं । '

आशा सुबकने लगी थी तपन दास की आँखें भी नम हो गई थीं। वे कुछ भी न कह सके थे आगे ।

तब से पूरे बारह वर्ष बीत गए, तपन दास ने सब कुछ अपना समझकर संभाला। आशा के बेटे अब अट्टारह, सोलह और बेटी दस साल की हो गई है। तपन दास ने उन सब की पढ़ाई-लिखाई का पूरा ध्यान रखा था सबके लिए प्राइवेट ट्यूटर रखा। बच्चों के रेजल्ट अच्छे हेते गए। तपन दास की प्लैनिंग के मुताबिक एक बेटे के नाम आशा स्पन पाइप फैक्ट्री' और दूसरे के नाम आशा शॉपिंग कांप्लेक्स' होना है। 

स्पन पाइप का काम जोर-शोर से चल रहा है। प्रचुर आमदनी होती है। उसी की कमाई का पैसा जोड़कर तपन दास ने विराट मार्केट तैयार करवाया। मार्केट को तैयार करने में छह करोड़ रुपए खर्च हुए। तीन साल में यह बनकर तैयार हुआ। तपन दास ने मार्केट में बयालिस कमरों का निर्माण करवाया तथा एक छोर पर एक 'आराम गृह' भी तैयार करवायाहै। सारी दुकानें किराए पर उठ गई हैं। बयालीस साइन बोर्ड भी टंग गए हैं। उद्घाटन समारोह के बाद दुकानदारी की शुरुआत होनी है।

'आशा स्पन पाइप फैक्ट्री के कैंपस के एक कमरे में तपन दास का अपना निवास है। अपने लिए वह उतनी ही तनख्वाह लेता है जितनी वह अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत रहने से प्राप्त करता। वही पुराने जनरल मैनेजर आज भी अपने पद पर बने हुए हैं। महीने में एक-दो बार तपन दास आशा से मिलकर हालचाल पूछ लेते और धंधे का हिसाब-किताब समझाते। घूँघट डालकर आशा तखत के एक कोने बैठे उन्हें सुनती, फिर कहती--' का हमका इसब समझावत हैं, हम तो आपै पर सब छोड़ दिए हैं, हमका कुछ समझ मा नहीं आवत है, आपै पे भरोसा है....इ लड़कन बच्चन का आप अपना समझकर खियाल करिहैं। इ उनकर भाग्य है....ऊपरवाला आपका भला करी।'

एक बार, मात्र एक बार आशा ने कुछ हटकर बातकी थी-'तपन जी ! आप शादी-बिया कर लें, कब तलक अकेले रहैं... बुढ़ापे में के देखी?' तपन दास कुछ बोल न सके थे, अत्यंत भावुक होकर कुछ देर तकवहीं बैठे रह गए थे।

थोड़े दिन पहले तपन दासने मुझसे घर का पता लिया था. और उद्घाटन समारोह में हाजिर होने का वादा करवा लिया था। चूँकि व्यस्तता के कारण मेरे लिए जाना संभव नहीं था इस कारण कल रात बधाई देने की मंशा से आराम गृह' में फोन किया। पता चला कि तपन दास आशा के घर गए हुए हैं। मैंने आशा के घर पर फोन मिलाया।

'हैलो! एक लड़के की आवाज । '  मिस्टर तपन दास से बात करनी है।'

'आँ...हाँ....नहीं, आप ऊपर फोन कर बात कर लीजिए, फिर से फोन मिलाइए।' 'ऊपर? ऊपर कहाँ ? किस नंबर पर?' 'मैं फोन रख रहा हूँ, आप
फिर से फोन मिला लीजिए.....ठीक है? मैं रख रहा हूँ, ठीक है?' 'क्या ठीक है, ठीक है, कर रहे हो। आप उनसे कह दो ना ऊपर फोन उठा लें, आप नीचे रख दो।' मैंने गुस्सा झाड़ा।

'जी...वह ऊपर चढ़ रहे हैं, कई सीढ़ी चढ़ चुके हैं, आप फिर से...' उसने चोंगा रख दिया। मैंने दुबारा फोन मिलाया। काफी देर बाद फिर लड़के ने कहा- 'हैलो!'

'मिस्टर तपन दास से बात करनी है।'

'होल्ड कीजिए।'

मैंने बहुत देर होल्ड किया हुआ था फिर उधर से एक लड़के की आवाज आई-"हैलो! आप कौन हैं?'

'मैं...तुम नहीं पहचान पाओगे। मिस्टर तपन दास से बात कराओ।"

। 'कौन तपन दास?' उसने चीत्कार किया।

'तपन दास-वही, जो आशा स्पन पाइप और आशा शॉपिंग कांप्लेक्स के मालिक हैं। मेरे मुख से अनायास मालिक शब्द निकल गया।

'मालिक? मैं रवि राय का बड़ा बेटा छबि राय बोल रहा हूँ....तपन दास अपने यहाँ नौकर हैं नौकर.... आपको क्या उसी ने बताया है कि वह मालिक है? खैर, काम बताइए .....'

आगे कुछ भी कहने का मेरा मन नहीं चाहा। मैंने रिसीवर रख दिया। पता चला मुझसे बात करने के बाद छवि राय अपनी माँ पर बरस पड़ा था और जवाब-तलब करने लगा था--'बताइए! आज उसकी यह हिम्मत कि वह खुद को हमारे कारोबार का मालिक कहता है। कार्ड में अपना नाम छपाएगा, नाम के नीचे व्यवस्थापक लिखाएगा तो लोग समझेंगे ही....हम सब क्या मर गए थे? आपके नाम से भी तो कार्ड दिया जा सकता था।"

'तू लोग भी बच्चा हो और हमका के जानत, उन्हेई से सबका चीन्ह पहचान है। एही से आपुन नाम दिए हैं। एमा गलत का भवा?" आशा ने सहज-सरल ढंग से किन्तु अचरज से उत्तर दिया। किन्तु छवि अधिक उत्तेजित हो गया माँ ! अब हम बच्चे नहीं हैं, मैं तो हूँ ही नहीं? मुझे वोट देने का अधिकार मिल चुका है, मैं रवि राय का बेटा हूँ, मुझे हर कोई जानता है....एक सड़क छाप आदमी को आपने जरूरत से ज्यादा चढ़ा रखा है, नौकर के संग नौकर सा सलूक करना चाहिए, आपने उसे पनाह क्या दी, उसने सोने और ऐश करने की व्यवस्था कर ली, आज उसकी यह हिम्मत कि वह हमारे घर के मामले में दखल देता है....आप ही के कारण, आप जिम्मेदार हैं।'

उसकी बातों से आशा स्तंभित हो गई। आहत भी हुई। खुद को संभालकर उसने कहा--'उनकर बारे में भला-बुरा कहै में तोका शरम आए चाही। तोहर बाबू जब हमका छोड़ गइन, तब हम एकदमै बेसहारा होय गइलीं, ऊ हमका सहारा दिएन, तू लोगन का खियाल रखिन उन्हई का खातिर सब ठीक-ठाक चलत है... तू लोगन का खातिर ऊ शादी बिया नहीं किएन और तू आज उल्टा-सीधा जौन मुख पे आवत है वही कह देत....हे भगवान !छवि राय का क्रोध उफान पर उठा-'आपका दरद ऊ मनई खातिर कुछ ज्यादा ही है, कौन लगता है ऊ आपका? क्या संबंध है उससे? क्यों इतनी हमदर्दी है उससे ?"

और फिर आशा अपना सुध-बुध खो बैठी और रोते-रोते बेटे को मारने लगी।

सीढ़ी के बीचो-बीच खड़े तपन दास माँ-बेटे की कहासुनी अवाक होकर सुन चुके थे। अचानक ऊपर कमरे के भीतर घुसकर उन्होंने आशा का हाथ पकड़ लिया और कहा- 'बीबीजी! यह क्या कर रही हैं... आपका बेटा अब बड़ा हो गया है, लायक हो गया है. हमारी ही भूल थी जो हम उसे नादान समझ बैठे थे....अब इस घर को मेरी जरूरत नहीं है।'

फिर धीरे-धीरे वे सीढ़ी से नीचे उतर गए। फाटक से बाहर निकलते-निकलते उन्होंने एकबारगी पीछे मुड़कर ऊपर देखा और कहा- येशू आप सबका भला करें!' बारजे में खड़े-खड़े आशा चीख उठी- तपन जी! तपन जी! रुक जाएँ. रुक जाएँ... कहाँ जैहें? कहाँ रहें ?......

मगर डग बढ़ाते हुए तपन दास बोले-'बीबी जी! मैं येशू से आपके लिए दुआएँ माँगूंगा।'

सुभाष चन्द्र गांगुली
Written in 1993
Revised Rewritten in 1999
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* ' जनसत्ता सबरंग '-- 26/11/2000 मे
प्रकाशित ।
* पत्रिका ' जनप्रिय ज्योति', सम्पदक, उषा अग्रवाल, मोरादाबाद के मार्च- मई 1999 में प्रकाशित ।
* बांग्ला अनुवाद 'चाकर' बांग्ला पत्रिका' पदक्षेप, में तथा बांग्ला संग्रह ' शेषेर लाइन' अक्टूबर 2003 में प्रकाशित ।

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