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Saturday, February 4, 2017

कविता- वहीं का वहीं

 


मनोहर साहू गुजर गए
बेटा हरिहर मालिक बन गए।
तिलपट्टी दलपट्टी मूँगफलीपट्टी वहीं
बन गए अब चिकी पर है सब वही ।
जूनियर लालू वहीं बैठ गए  
कालू मोची बूढे हो गये। 
दूध में पानी पिताजी टोका करते
धंधे की कसम केवल खा लेते;
पचास साल का बेटा मै अब टोकता
केवल का बेटा धंधे की ही कसम खाता।
कामवाली को मम्मी अक्सर डांटती
देर व नागा फिर भी वह करती;
कामवाली आज भी नागा करती
मेरी पत्नी आये दिन उसे डांटती।
भिखारियों को वे डांट भगाते
उनके बच्चे भी कहते आगे बढो;
बाबू सस्पेंड होते दस रुपए के लिए
बाबू सस्पेंड हुए अभी दस हजार के लिए।
मंत्री धन बटोरता था चुपके चुपके
मंत्री धन बटोरता अब बेशर्मी से।
दहेज वाली सायकिल पिता चलाते
दफ्तर जाते देर जल्द घर लौटते;
 दहेज वाली मोटरसाइकिल बेटा चलाता
जल्दी घर लौट कर टहलने जाता।
पडोसी जोरों से ' बिनाका ' सुनता
पढाई छोड मैं कान लगाता;
पडोसी अब जोरो से स्टीरियो बजाता
पढाई छोड बेटा मेरा डान्स करता।
सत्ता का जंग पर चढा और रंग
पक्ष विपक्ष चलते हैं संग संग।
चुनावी मुद्दे सारे वहीं के वहीं
जनता की उम्मीदें भी वहीँ के वहीँ ;
कहते हैं लोग जमाना बदल गया
कहता है कवि सब वहीं तो रह गया ।।


© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)









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