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Sunday, April 23, 2023

मुन्नीबाई ( यह मेरे कहानी संग्रह ' कहानियां पार्क की ' मे है )

              समाचार पत्र में पढा कि साध्वी राधा देवी उर्फ़ मुन्नी माई चुनाव जीत गयी हैं। उन्होंने सत्तारूढ़ दल के दो दशकों से अविजित अपनी प्रतिद्वंद्वी विजय सिंह की जमानत जब्त करा कर ऐतिहासिक जीत हासिल की। जहां जो भक्त थे सबके सब पार्टी बैनर तले गाजा बाजा लेकर सड़को पर उतर आए। मुन्नी माई ने अकल्पनीय जीत हासिल की है, इस कारण से उनका मंत्री बनना तय । पार्टी की ओर से लड्डू बांटे जा रहे हैं और भक्तों के मन में लड्डू फूट रहे हैं कि माई जरुर उनके परिवार में खुशियां उड़ेल देंगी ।
अख़बार  में फोटो बहुत साफ़ नहीं था फिर भी मैं पहचान गया था कि यह तो अपने पार्क की हिफाज़त करने वाली मुन्नी बाई ही है जो तीन साल काम करने के बाद अचानक फ़रार हो गई थी। 
    तब से क़रीब पांच साल बीत गए ,चेहरे पर ख़ास फ़र्क नहीं आया था, उसकी ऊपरी होंठ पर एक कट और माथे पर बड़ी बिन्दी देख कर मैंने उसे पहचान लिया । 
भोली सी सूरत वाली, दर्जा चार तक पढ़ी, मुन्नी बाई, बाई से माई बन गई थी, माई से बहुत बड़े नेता बन गई , अब शिक्षा, रेल सोचकर मैं हैरान हो रहा था और खुश भी हो रहा था कि वह मेरे पार्क की हिफाज़त करती थी कभी। और मुझे भलिभांति जानती है।
लाजुक स्वभाव वाली मुन्नी बाई कहां से कहां पहुंच गई। 
          इस पार्क के एक कोने में विशाल नीम वृक्ष के नीचे, एक छोटा सा कुटीरनुमा पक्का छत वाला कमरा है । कभी वह कमरा बना था चौकीदार के रहने के लिए  किंतु कोई चौकीदार उसमें रहने के लिए तैयार नहीं हुआ क्योंकि पार्क में कहीं भी टॉयलेट नहीं है और ना ही नहाने की कोई जगह है । किचन भी नहीं है । 
 बहुत दिनों के बाद 'वेलफेयर एसोसिएशन' का एक सदस्य अविनाश बाबू एक प्रौढ़ महिला को साथ लेकर  ' वेलफेयर ' एसोसिएशन के अध्यक्ष से बोले कि यह महिला यहां रहने के लिए तैयार हैं । कमरे के पीछे बाउंड्री वॉल के पास एक बहुत छोटी सी जगह में टाइल्स लगाकर यूरिनल की व्यवस्था की जा सकती । भीतर से पाइप डाल देने पर बाउंड्री के पीछे नाली में पानी गिरेगा। दोनों तरफ़ ऊंची बांउड्री वाल और एक तरफ़ घनी झाड़ियां होने से वह जगह कहीं से दिखाईं भी नहीं देती। लैट्रिन के लिए पार्क से थोडी दूरी पर 'सुलभ' है ही । 
            इनके कमरे में एक कोने कमरे में पानी डालने वाला पाइप, खुरपी, कैंची, गदाला, फावड़ा तथा अन्य सामग्री पड़ी रहेगी । वह अपना खाट डाल लेगी। कमरे के बाहर ईंटे का चूल्हा बनाकर अपना खाना बना लेगी । रात को कमरे में रहेगी, पार्क की चाबी इन्हींके पास रहेगी। शाम को  फाटकों पर ताला डालना और सुबह खोलना इनकी जिम्मेदारी होगी । महीने में पांच हजार रुपए लेगी ।
अध्यक्ष महोदय ने अविनाश से पूछा 'फुल टाइम रहना है, छुट्टियां नहीं मिलेगी सब बता दिया है न ? जब पार्क खुला रहेगा आस पास अपने काम के लिए जा सकती।'
- ' जी। बता दिया सबकुछ।'
अध्यक्ष महोदय ने पूछा -' क्या नाम है तुम्हारा ?
-' मुन्नी सिंह। लोग मुझे मुन्नी बाई के नाम से जानते हैं।'
-' कौन लोग ?'
-' आश्रम के लोग।'
- कौन सा आश्रम ? कहां का आश्रम ?'
-' हरद्वार के एक आश्रम में पंद्रह साल से ज़्यादा काम किया था। उससे पहले एक मन्दिर में काम किया था।'
-' फिर यहां क्यों चली आई ?'
-' वहां बहुत काम करना पड़ता। अब हमारी उम्र बढ़ रही है, हमसे उतना होता नहीं। '
- ' पति क्या करता है?'
-' साधु है। वह शादी के पांच साल बाद हमें छोड़कर चले गए थे।'
-' साधु है? कहां गए?'
-' पता नहीं। बहुत दिनों के बाद पता चला किसी ने उनको 'प्रयागराज कुंभ मेला' में देखा था। कहां है मालूम नहीं,अब हमने आसरा देखना छोड़ दिया।'
-' घर दुआर कहां है?'
-' पीलीभीत में था,गांव में। अब वहां मेरे सौंतन का बेटा रहता है।"
-' क्या मतलब ?'
-' साहेब ! मैं उनकी दूसरी बीबी हूं। पहली वाली मरने के बाद मुझसे शादी हुई थी। मेरी कोख बंद निकली। बच्चा न होने के कारण मेरी सास मुझे गाली देती, फिर आदमी भी चला गया घर छोड़कर, सास जल्दी मर गई। हमारे सौंतन का बेटा हमें घर से बाहर निकाल दिया........बस इतना ही है मुन्नीबाई की कहानी।'
-' चलो अब रोना धोना बंद करो। इनसे अपना काम समझ लो, सम्भाल लो...... अविनाश जी, इन्हें रख लीजिए काम पर। समझा बूझा दीजिए।'
-' ओ के सर !'
                      मुन्नीबाई ने काम पकड़ लिया और रहने लगी। कुछ दिनों के बाद वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष से मिलकर अपने कमरे के आगे और पीछे पानी तथा धूप और बारिश की बौछारों से बचने के लिए शेड बनवा देने का अनुरोध किया। उसने यह समझाया कि आगे पीछे शेड बनने से उसे तो लाभ मिलेगा ही, अचानक बारिश आंधी आ जाने पर पार्क में उपस्थित रहने वालों को भी सिर छिपाने की जगह मिल जाएगी।
                        अध्यक्ष को मुन्नीबाई की बात अपील कर गयी। उन्होंने एसोसिएशन की मीटिंग बुलाई।
 मीटिंग में उन्होंने कहा कि मुन्नीबाई को जो कमरा दिया गया है वह छः बाईं सात फिट का है,उसकी ऊंचाई भी मात्र सात फिट है। उसमें पांच फिट ऊंचा दो फिट चौड़ा दरवाज़ा है। 
दरवाज़े के ठीक ऊपर और उसी हाइट पर चारों दीवारों पर कारनिस है। अचानक आई बारिश के दौरान कुछ लोग कारनिस के नीचे पनाह लेते हैं किन्तु केवल मात्र सिर ही बचा पाते हैं।
 वह कमरा दरअसल सामान रखने के लिए बना था। 
             पहले पार्क दिनभर खुला रहता था और उस कमरे में ताला पड़ा रहता था। एक ही फाटक खुलता था, उसी फाटक के सामने रहने वाले रिटायर्ड आदमी के पास चाबी रहती थी, रात को फाटक बंद कर दिया करते थे और सुबह खोल देते। हफ़्ते में एक दिन नगर पालिका का माली दिनभर रहकर काम कर जाता।
                            लेकिन जब से वेलफेयर एसोसिएशन बना तीसों दिन काम करने के लिए माली रख लिया। 
देखते-देखते पार्क में फल-फूलों से बहार आ गई। इसकी रखवाली तभी सम्भव जब पार्क में कोई चौबीस घंटे रहे।
 मुन्नीबाई रहने के लिए तैयार हो गई किन्तु उसने जो प्रस्ताव रखा वह मिनिमम सुविधाएं हैं जिन्हें नकारने से बड़ी मुश्किल से मिली मुन्नीबाई हाथ से निकल जाएगी।
                सभा ने आम सहमति से प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। थोड़े समय बाद वह क्रियान्वित भी हो गया। 
कमरे के पीछे दो दीवारें उठाई गयी, उसमें सामान रखने के लिए ताक़ बनाया गया।
कारनिस के ऊपर से ऍसबेस्टस शीट डाल दिया गया ताकि आंधी बारिश में लोग शेल्टर ले सकें। कमरा और उसके बाहर लाइटें लगा दी गई। सोने के लिए एक तख्त़पोश डाल दिया गया। प्लास्टिक की दो बाल्टियां,मग, झाड़ू आदि छोटी मोटी ज़रूरी चीजें दे दी गई।
मुन्नीबाई बहुत खुश हुई । कमरे के पीछे पार्क के सामान यथा रबड़ की पाइपें, खुरपी, फावड़ा आदि रख दिया। 
दीवाल अलमारियों पर तथा खूंटियों पर अपना कुछ सामान रख दिया। दूसरी दीवाल के पास उसने एक छोटा सा देशी चूल्हा बना लिया । कमरे के अंदर बाहर पोताई करवा दी गई। मुन्नी बाई ने दीवार पर कपड़े टांगने के लिए एक हैंगर फिक्स कर दिया। उसके बगल मे कुछ कीलें ठोंकी फिर देवी देवताओं की तस्वीरें टांग दी।
                मुन्नी बाई ने अपना काम सम्भाल लिया और अच्छी तरह से काम करने लगी। 
शरीर से मजबूत, लम्बी-चौड़ी, कपाल पर बड़ी बिन्दी, मांग में सिन्दूर,गले से मोटी आवाज़। कुल मिलाकर एक रोबीला व्यक्तित्व।
अविनाश बाबू ने काम-काज समझाते हुए कहा कि वह सुनिश्चित करें कि पार्क में किसी प्रकार का ग़लत काम न हो, कोई वैसा काम न हो जिससे पेड़ पौधों को तथा मैदान का नुक़सान न हो। किसी प्रकार की समस्या हो तो उन्हें या अध्यक्ष को सूचित करें।
मुन्नी बाई ने बड़े बच्चों का फुटबॉल, क्रिकेट, गुल्ली-डंडा खेलना बंद कर दिया। बहस करने पर वह बोली कि थोड़ी दूरी पर सदर के पास विराट् खेल का मैदान है, वही जाकर खेलें, पार्क में नहीं चलेगा।
        दो-तीन महीने बाद बड़े बूढ़े जो नन्हे-नन्हे बच्चों को ट्रायसिकल और दुपहिया सायकिल के साथ टहलाने आते उन्हें मना करना शुरू किया, न मानने पर एक दिन कड़ाई से मना कर दिया। 
उसके इस काम से जहां कुछ लोग असंतुष्ट हुए और शिकायत लेकर अध्यक्ष, सचिव से मिले, वही अधिकतर लोग खुश हुए। नाखुश होने वालों में वेलफेयर एसोसिएशन के कुछ मेम्बर्स भी थे।
मगर उनलोगों ने शिकायत करने वालों को समझाया कि नियमित रूप से मशीन से घास की छिलाई होती है,उस पर सायकिल चलने से खूबसूरती नष्ट हो जाती है। पार्क के बाहर चार सड़कों में दो लगभग खाली रहती है, वहां टहला सकते हैं।
सभी नाखुश मेम्बर्स कनविन्सड हो गये। 
देखते-देखते सात आठ महीने में पार्क की रौनक लौट आई। चौतरफ़ा हरियाली ही हरियाली। कालीननुमा मैदान में नन्हे मुन्ने बच्चे बूढ़ों की उंगलियां थामे चलना सिखते, कोई-कोई छोटे-छोटे पांओं से दौड़ते, झूला झूलते, सी-सॉ पर चढ़ते, अत्यंत मनोरम पार्क बन गया।
      वेलफेयर एसोसिएशन की तारीफ़ तो होती ही, मुन्नी बाई का नाम भी ज़रूर आता।
    मुन्नी बाई शुरू से ही भक्तिन रही है, सुबह शाम नियमित पूजा पाठ करती।
अब पार्क में सबकुछ व्यवस्थित हो जाने के बाद मुन्नी बाई को भजन-कीर्तन के लिए और अधिक समय मिल गया।
मुन्नी बाई ने तुलसी माला पहनी, रुद्राक्ष का बड़ा सा माला धारण किया। 
मंगलवार और शनिवार गेरुआ वस्त्र धारण करती और बाकी दिनों में श्वेत वस्त्र।
सुबह पांच सात मिनट पूजा करती फिर शाम को दिया बाती जलाती, शंख फूकती, कमरे के भीतर घंटी बजा कर आरती करती।
लोग मुन्नी बाई के पूजा पाठ से आकृष्ट होने लगे। टहलते-टहलते शंख की आवाज़ सुनने पर एकाध मिनट रुक कर दूर से हाथों को जोड़कर नमन करते। 
कमरे के बाहर दोनों दीवारों पर भक्तों ने राम लक्ष्मण और हनुमान जी के फोटो लगा दिया।
अब मुन्नी बाई का कमरा दूर से रहने वाला कमरा के बजाय छोटा मोटा मंदिर प्रतीत होने लगा।
टहलने वाले लगभग हर कोई राम लक्ष्मण, बजरंगी के पास पहुंच कर दोनों हाथों से नमन करते और आये दिन माई के हाथ में कुछ न कुछ रुपए पैसे देते।
            हर मंगलवार और शनिवार को शाम पार्क लगभग खाली हो जाने के बाद पाठ करती 'सुन्दर काण्ड' पाठ करती। 
कोई न कोई सुनने के लिए थोड़ी देर रुक जाता।
फिर देखा पास पड़ोस से तीन चार महिलाएं आकर कमरे के सामने कारनिस के नीचे हाथों में फूल लिए पाठ सुनती।
चढ़ावा चढ़ने लगा। मिठाई, फूल माला, अगरबत्ती, दियासलाई,धूप, लड्डू,बताशा,फल कुछ न कुछ चढ़ाते। मुन्नी बाई थोड़ा बहुत प्रसाद बांटने के लिए बाकी प्रसाद भक्तों के हाथों में दे देती।
     अब लोग उसे प्रहरी या कामवाली की नज़र से नहीं देखती बल्कि उसमें मां देखने लगें। कोई मुन्नी माई तो कोई कोई माताजी कहके पुकारने लगे।
इस पार्क से एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर घनी आबादी वाली गरीबों की बस्ती है जहां आठ दस छोटे-छोटे पक्के मकान दिख जाएंगे बाकी सब झुग्गियां या खपरैले हैं। यहां किसी घर की बात किसी से छिपी नहीं रहती।
घर में जगह की कमी होने के कारण पहले लोग अपनी कन्याओं को किसी मन्दिर परिसर में ले जाते रहे। पिछले दो-तीन सालों से कोई कोई परिवार गोधूलि बेला में पार्क में कन्या दिखाने ले आते ।
            एक दिन एक वाकया हुआ जिससे मुन्नी बाई के जीवन में एक नया मोड़ आया। 
कन्या दिखलाने आईं माता पिता परिवारजनों को मैदान में बिठा कर मुन्नी बाई के दरवाज़े पहुंच कर बेटी की विवाह के लिए आशीर्वाद मांगा।
फर्श पर बैठी मुन्नी बाई ने माला जपते-जपते दायां हाथ उठाकर आशीर्वाद दे दिया।
लड़की देखने में सामान्य थी और उसके पिता दहेज़ देने में असमर्थ थे, फिर भी लड़की पसंद हो गई और विवाह की तिथि भी तय हो गई। 
ऐसी घटनाएं दो तीन और घटित हुई। इससे इतर भी कुछ घटी।
        किसी ने मुन्नी बाई से कहा कि बच्चे को तेज़ बुखार है तो वह एक फूल मां दुर्गा के चरणों पर स्पर्श कर उसे देते हुए बोली कि फूल को बच्चे की तकिया के नीचे रख दे वह ठीक हो जाएगा।
किसी को कहा कि पति के हाथ एक लौंग  छुआकर ले आए। किसी औरत ने कहा कि उसका पति उसकी बात एकदम नहीं सुनता,उसे खूब डांटता पीटता है, मुन्नी बाई ने एक चम्मच चीनी मंत्र फूंक कर पुड़िया में देकर बोली कि उसे पति की तकिया के नीचे रात को रख दें फिर सुबह चाय में मिला दें ।
मुन्नी बाई अब हर समय गेरुआ वस्त्र ही धारण करने लगी । चलते फिरते दुर्गा स्तुति या हनुमान चालीसा पढ़ती।
भक्तों की संख्या लगातार बढ़ती गई। कमरे के सामने हमेशा जमावड़ा बना रहता। एसोसिएशन के अध्यक्ष को यह पसंद नहीं था किन्तु बात धर्म की होने के कारण खुद कुछ कहना उचित नहीं समझे। उन्होंने इस संबंध में एक मीटिंग बुलाकर अपनी बात रखी।
मीटिंग में अधिकांश लोगों ने अध्यक्ष की बात पर सहमति जताई। एक ने सुझाव दिया कि उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए, पीछे बस्ती से कोई मिल जाएगा। इस पर अध्यक्ष ने कहा कि अब वह सामान्य महिला नहीं रहीं, यहां से निकाल देने पर काफी उत्तेजना फैलेगी, पार्क में आने वाले सभी लोग बहुत नाराज़ होंगे।
तीन सदस्यों ने कहा कि वे मुन्नी माई के भक्त हैं, उनलोगो ने कहा कि मंगलवार और शनिवार पार्क बंद होने के बाद वे अपने घरों में सुंदर काण्ड, हनुमान चालीसा पाठ रखेंगे, जो लोग माई से आशीर्वाद लेना चाहते वे पार्क के बजाए उन्हीके घरों पर मिल सकते हैं। इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से मान लिया गया था।
         पार्क वाली मुन्नी बाई अब बन गई साध्वी मुन्नी बाई । मुन्नी बाई को प्राप्त दैवीय शक्ति की ख़बर पूरे शहर में फ़ैल गई। पढ़ें-लिखे लोग आते, धनी लोग आए, नेता लोग भी आए, मठ और आश्रम से कुछ साधु भी आए। 
सबकुछ ठीक ही चल रहा था फिर बिना किसी से कुछ कहे मुन्नी बाई पार्क छोड़ कर चली गई। यह सुबह तब पर चला जब बूढ़े लोग सुबह-सुबह पार्क पहुंचे।
अविनाश बाबू से पूछे जाने से वे बता नहीं सके थे मुन्नी बाई के घर का पता। यह भी नहीं बता पाए कि किसने उनसे अनुरोध किया था काम पर रखने के लिए। सिवाय अपने कपड़ों के कुछ भी नहीं ले गयी थी।
लगभग तीन हफ़्ते बीत गए कहानी को लिखते हुए, कहानी लेखन समाप्त होते होते पता चला है कि मुन्नी बाई को मंत्री मंडल में शामिल किया गया है।
( 'कहानी कहानियां पार्क की'' के अंतर्गत 18/03/2023 से शुरू 20/04/2023को खत्म हुआ)
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© सुभाषचंद्र गांगुली  31/03/2023

Wednesday, April 12, 2023

नींबू का पेड़

                       
     इस समय मैं अपने प्रिय पार्क में हूं। कभी यहां से बहती रही एक नदी । एक दो पुराने मकानों पर ' रिवर  साइड '( नदी तट पर ) लिखा हुआ मिलता है । धीरे-धीरे नदी ने अपना रास्ता बदल लिया था कभी । कछार बना रहा बहुत दिनों तक । बीसवीं सदी में पचास-साठ के दशक में नगर निगम ने इस जगह पर दो-ढाई सौ वर्ग गज जमीन पर मकान बनवा कर सस्ते में मात्र सात-आठ हजार में बेच कर इस जगह को आबाद किया था । तीन-चार कॉलोनियां बनायी गयी थी। यहां से न्यायालय पास होने के कारण यहां जमीन की कीमतें बढ़ते-बढ़ते कहां से कहां पहुंच गई है । आज कोई मकान बेचता है तो उसे दो-ढाई करोड़ मिल जाता है। ज़्यादातर मकानें गिराकर दुबारा बनाये गये हैं । एक से एक ख़ूबसूरत मकान है इस एरिया में। जिनलोगों ने मकान खरीदा था आज उनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी रह रही हैं जो काफ़ी सम्पन्न हो गये हैं ।  बड़े-बड़े वकिल, जजेस,  रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस,कई बड़े बिजनेसमैन रहते हैं यहां । इस एरिया में छोटे बड़े कुल चार पार्क हैं, उनमें से सबसे बड़ा और सबसे ख़ूबसूरत पार्क है मेरा यह पार्क । बेशुमार पेड़ हैं बाउंड्री वॉल के चारों ओर । जिस किसी ने पेड़ लगाए थे बड़ी प्लैनिंग के साथ लगाये थे।
आम के दो पेड़, लीची के एक, जामुन के एक, एक साइड में तीन देवदार, एक नीम के पेड़, देवदार के दो; एक साइड में एक आंवला , दो गुलमोहर,अमलतास, अमरुद के चार ,नारंगी के दो , दो छोटे-छोटे नींबू के पेड़ और हैं दो बड़े-बड़े नींबू के पेड़ ।
बांउड्री के बाहर चारों ओर रहने वालों ने एक ' रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन' बना रखा है जो पार्क की ख़ूबसूरती , फल-फूलों का हिसाब रखते हैं । 
        पार्क के अंदर-बाहर जगह-जगह लिखा हुआ है " फल-फूल तोड़ना मना है। अवज्ञा करने वालों को दंडित किया जाएगा - वेलफेयर एसोसिएशन " । पार्क के बाहर दो फाटक के पास नोटिस बोर्ड जमीन पर गाढ दिया गया है जिस पर लिखा है " पार्क के पास रहने वाले निवासियों द्वारा पार्क का रखरखाव किया जाता है इसलिए बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है -- वेलफेयर एसोसिएशन "। जब भी इस पर मेरी नज़र पड़ती मुझे तकलीफ़ होती।
         सारे फल-फूल कहां जाते हैं मैंने जानने की कोशिश नहीं की। कभी-कभार सुनने में आता है कि फल-फूलों के हिसाब को लेकर वेलफेयर एसोसिएशन की मीटिंग में तू-तू मैं-मैं हो गई थी।
          किन्तु बडे-बड़े नींबू के दो पेड़ों को देखकर मुझे कौतूहल होता है कि इसके फल पेड़ों पर जस के तस क्यों लगे रहते हैं ? ये फल बच्चों के खेलने वाले छोटा फूटबाल का आकार ले लेता है । हरा रंग पीला होकर गिर जाता है, फिर सूख जाता है किन्तु कभी कोई हाथ नहीं लगाता। 
   मैंने जानने की कोशिश की कि ये कौन सा पेड़ है, किस तरह के फल निकलते हैं ? 
      मैंने जाना कि अधिकतर लोगों को पता ही नहीं क्या है किन्तु काफ़ी लोगों ने कहा था कि ये जंगली पेड़ हैं, इसका फल नहीं खाया जाता, मेरे एक मित्र जो अल्मोड़ा में रहता है ने कहा था कि यह पहाड़ी पेड़ है, खट्टा होता है, पहाड़ पर रहने वालों के लिए ठीक है, वे नमक, धनिया, मिर्चा, मूली के साथ खाया जाता हैं । किन्तु इसका फल यहां वालों को नुक्सान करेगा । फिर किसी ने कहा था यह 'चकोतरा' है बहुत ज्यादा खट्टा होता है,अमूमन लोग खाते नहीं ।
              मेरी जिज्ञासा बनी रही । अच्छे-अच्छे पेड़ों के बीच ये जंगली पहाड़ी अनुपयोगी पेड़ किसी ने क्यों लगाया होगा !
जाड़े में एक दिन मैं धूप लेने पार्क पहुंचा। 
बड़े नींबू के एक पेड़ के पास एक औरत बेंच पर बैठी थी । वो पेड़ों में लदे बड़े-बड़े नींबुओं को बड़े चाव से देख रही थी। मैं वहां रुक गया ।‌‌‌‌‌ मुझे देख वह सकपका गई और फिर नज़रें हटा ली। मैंने पूछा -" ये किस चीज का पेड़ है जानती हो ?"
उसने बांग्ला में उत्तर दिया " दादाजी ये नींबू का पेड़ है ।"
----" नींबू का पेड़ ? खाया जाता है क्या ? कुछ लोग इसे ' चकोतरा ' कहते हैं, यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग इसे ' जंगली ' कहते हैं ।"
----"  ये बंगाल, बिहार में खूब पाया जाता है, इसका नाम है' बाताबी नींबू '। शरत काल में जब दुर्गा पूजा उत्सव का टाइम होता है तब फलता है, दो-ढाई महीना मिलता है । पीलिया रोगी के लिए यह रामबाण है। इसे खाने से कमजोर लिवर वालों का लिवर ठीक रहता है । इसे खाने से ब्लडप्रेशर कन्ट्रोल में रहता ।"
---"अच्छा इतना उपयोगी ?"
--" इससे दवा भी बनता है ।"
--" अच्छा !!"
--"तुम कहां की हो ? बांग्ला तो ठीक बोल लेती मगर बोली बांग्लादेश की है । बांग्लादेश की हो ?"
--"जी नहीं मैं इस देश की हूं । मेरे परदादा चट्टोग्राम से आये थे आजादी से पहले। शरणार्थी बनकर जब ' बंगाल' का विभाजन हुआ था और फिर यहीं के हो गए थे। मैं चौथी पीढ़ी की हूं ।"
-"जो बोली तुम बोल रही हो वह कहां की बोली है ? बंगाल की ?"
-" जी नहीं ये चट्टोग्राम की बोली है । चट्टोग्राम अब बांग्लादेश में है । हमारे घर के बड़े बुड्ढे लोग यही बोली बोलते हैं । हमारा भी इसका अभ्यास है । थोडा-थोडा हिन्दी बोल लेती हूं । " ( उसने सारी बातें चट्टोग्राम और बांग्ला भाषा मिश्रित में की थी )
---"बंगाल में कहां रहती हो ?"
---" नैहाटी में ।"
--" यहां कैसे ?"
  --"पूजा पंडाल बनाने । पति साथ में है । दुर्गा पूजा उत्सव के लिए ढेर सारे लोग आते हैं  ।"
--" हां हां हर साल हम देखते हैं ढेर सारे लोग आ जाते हैं शहर में, पूजा से पहले ।"
---" कहां-कहां से आते हैं सब ? "
---" पंडाल के लिए बांसबेरिया, नबोद्वीप, नैहाटी कृष्णनगर, हुगली से आते हैं । ढाकी वाले वर्धमान में एकत्र हो आते हैं, पूजा से पहले । वहीं पहुंच कर लोग ले आते हैं । लाइटिंग के लिए चन्दननगर मशहूर है। और मिदनापुर से पुरोहित आते हैं । मगर बाबू आप इतना क्यो पूछ रहे हैं? "
--" ऐसे ही अपनी जानकारी के लिए और लोगों को जानकारी देने के लिए। बहुत से लोग जानना चाहते हैं, पूछते हैं । "
--" तुम्हरा क्या नाम है ?"
--" अनिता नस्कर । शादी से पहले हम सरकार लिखते थे ।"
--"अच्छा।"
--" बाबू आप फौज में है या पुलिस में ?"
--" कहीं नहीं। मैं अध्यापक था। क्या मैं पुलिस लगता हूं ?"
--" जी । बड़ी-बड़ी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मूंछे जो हैं ।" 
---" हर बड़ी और मोटी मूंछों वाला फ़ौजी या पुलिस में हो यह जरूरी नहीं है। अच्छा हम चलते हैं, बहुत दिनों के बाद बांग्ला बोलने का मौका मिला सो तुमसे बोल लिया, मन खुश हो गया।  इस शहर में पहले अनेक बंगाली रहते थे, धीरे-धीरे नौकरी-चाकरी के चक्कर में महानगरों में या विदेशों में चले गए। अब तो उंगलियों पर है । अच्छा चलता हूं । तुमलोग हमेशा खुश रहो, कुशल रहो ! "
                  थोड़े दिनों के बाद मैं बीमार पड़ा, गम्भीर हालत में अस्पताल पहुंच गया । ग्यारह दिन बाद छुट्टी मिली। ढेर सारी हिदायतें दी गई ।
बेटी कोलकाता से आ गई और देखभाल करने के लिए हमें ले गयी ।
              वहां कामवाली बाई को जब पता चला कि मेरा लिवर काफ़ी डैमेज हो गया है और मैं नियमित दवाइयां ले रहा हूं तो वह एक दिन दो बड़े-बड़े नींबू ले आयी और बोली " काकू ये तुम्हारे लिए ले आयी हूं । इसे रोज एक खाया करो लिवर ठीक हो जाएगा ।"
-" यह क्या है देखे-देखे ! अरे यही फल तो हमारे पार्क में होता है । वहां किसी को मालूम ही नहीं है कि ये खाने की चीज़ है और उपकारी है ।"
वो बोली " यह लिवर ठीक रखने के लिए बहुत लाभकारी है । जो लोग स्वस्थ रहते हैं वे भी खाते हैं, उन्हें जान्डिस नहीं होता । ये फल जाड़े में ही मिलता है लगभग दो महीने । "
--" थैंक यू । आज पहला दिन तुम काटकर खिलाओ देखे कैसे खाया जाता है ।"
एक दिन कामवाली बाई एक अखबार कटिंग लाकर इस फल के बारे में पढ़ने को कहा - " चीनी लोग क्या तोड़कर इकट्ठा कर रहे हैं? ( बाताबी नींबू के पेड़) क्लू- बहुत ही शानदार स्वाद और खुशबू वाला फल है।
 हमारे यहां ये हमेशा बेकद्री का शिकार रहा मगर अब चीन से सुंदर पैकिंग में आकर 200 रुपये का एक बड़े मॉल्स में बिक रहा है,मैं पिछले साल 10 रुपये का एक लाया था । इस साल मिला नहीं। जैसा कि पता चला ये चकोतरा है जो प्रायः लड़कियों के स्कूलों के पास, इमली, बेर,अमरख, कैथा आदि के साथ बिकता देखा जाता रहा है।बेहतरीन खुशबूदार फल है, मीठा होता है । नींबू प्रजाति का सबसे बड़ा फल है।"
              मैं दवाइयां तो लेता ही रहा इस नींबू का भी सेवन किया जब तक मिला ।  महीनों बाद स्वस्थ होकर मैं घर लौट आया ।
हफ्त़ा-दस दिन बाद पार्क जाना हुआ । अभी दुर्गापूजा होने में दो माह बाकी था। पंडाल बनने का काम शुरू हो चुका था । पार्क के अंदर चारों ओर किनारे-किनारे पैदल चलने के लिए पगडंडी बनी हुई है। चार राउंड चलने पर एक किलोमीटर हो जाता है । दो राउंड चलने के बाद तीसरे राउंड में मैं धीरे-धीरे चलते-चलते एक एक पेड़ को निहारने लगा। अचानक मेरी निगाहें थम गईं । अरे ! नींबू के पेड़ कहां गए ? यहीं पर तो थे ! हां इसी बेंच के पीछे । नहीं दोनों नहीं है । अब वहां दो अन्य पेड़ बड़े हो रहे हैं।
   बेंच पर बैठे-बैठे मैं कभी पेड़ों को देखता तो कभी पंडाल बना रहे ऊपर बल्ली पर बैठे मजदूरों को देखता।
            किसी न किसी भाव ('कनसेप्ट ') पर हर साल पंडाल बनाया जाता है। पिछले साल बना था दक्षीणेश्वर, उससे पहले बना था रामकृष्ण परमहंस का गांव ' कामारपुकुर ', इस साल सुना है ' विवेकानंद मेमोरियल' बनेगा । इस साल दुर्गा पूजा का स्वर्ण जयंती समारोह है ।'
              मैं बैठें-बैठे सोच रहा था कि सारे के सारे पेड़ अपने स्थान पर है किन्तु नींबू के पेड़ क्यों उखाड़ दिए गए ?
              अचानक एक मज़दूर आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया फिर चरण स्पर्श किया ।
---" तुम्हें मैंने पहचाना नहीं ।"
----" अनिरुद्ध नस्कर । अनिता नस्कर का पति ।
पिछले साल आपने अनिता से नींबू के पेड़ के बारे में बात की थी । याद आया ?"
---" हां हां याद है। अनिता किधर है ? आज आई नहीं ?"
             वह रो पड़ा । रोते-रोते बोला --" अब वह कभी नहीं आएगी । मार डाला गुंडों ने । "
---" मार डाला ? क्यो ? कब ? कैसे ? क्या हुआ था ?"
---" बाबू यहां जो ' बाताबी नींबू ' के पेड़ थे वह दो दिन एक एक नींबू तोड़कर घर ले गयी थी । मेरे बेटे को कोरोना हो गया था तब से लिवर कमजोर हो गया था........ अनिता के मरने के पांच महीने बाद बेटा भी हमें छोड़कर मां के पास चला गया।"

       वह और भावुक हो गया । बोला -" तब यहां पंडाल बनना शुरू भी नहीं हुआ था । एक दिन  दोपहर को वो अकेली आयी थी । दो नींबू तोड़कर एक छोटी थैली में भर चुकी थी..." कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगा फिर कहा-" बोलो आगे बोलो ।"
उसने कहा-" पता नहीं उसी समय कहां से दस-बारह लड़के उसके पास पहुंच कर बोलें " तुम ससुरी बंग्लादेशी चोरी करती हो ? "
डांट-फटकार कर झोला छीन लिया फिर वह भीड़ हमलावर हो गई । वे अनिता को मारते-मारते बोले-" साली रोहिंग्या बांग्लादेश से आई है, गंदगी फैला रही है । एक मजदूर ने जो बांस बल्ली की रखवाली कर रहा था कई  बार कहा कि वह बंगाली है, बंग्लादेशी नहीं है किंतु किसी ने उसकी बात ही नहीं सुनी । अनिता थर-थर कांप रही थी । किसी तरह भाग निकली । किसी ने पीछे से उसे धक्का मारा, वह आठ सीढ़ी नीचे फुटपाथ पर जा गिरी थी । वे सब लात घुसा मारकर भाग गए थे। घंटों पड़ी थी वह सड़क किनारे । ख़बर पाकर हम जब पहुंचे तो वह मर चुकी थी।"
--" थाने में रिपोर्ट लिखवाई थी ?"
-- " पुलिस ने जन्म प्रमाण-पत्र मागा था ।"
--" मैंने कहा हमलोग काम पर निकलते हैं प्रमाणपत्र साथ नहीं रहता । आप रिपोर्ट लिखिए सर जांच करिए । वो बोला सबूत है तुम्हारे पास ?
मैंने कहा एक मजूर ने देखा था मगर वह कह रहा है कि वह किसी को नहीं पहचान पाएगा सब एक जैसे लग रहे थे, सब लाल लाल गमछा सर पर बांधे हुए थे । पुलिस ने हमें डांट कर भगा दिया। बोला भाग नहीं तो तेरे को अंदर कर दूंगा । तुने ही मारा होगा । "
मैं लगभग सदमे में पहुंच गया । मैंने कहा"ईश्वर अनिता की आत्मा को शांति दे !" 
--"‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ बाबू पहले हम भी ईश्वर को बहुत मानते थे ।" 
वह फूट-फूट कर रोने लगा। उसका रुदन थमने का नाम नहीं ले रहा था । 
थोड़ी देर और मैं रुकता तो शायद मैं भी रो पड़ता।


© सुभाषचंद्र गांगुली 
31/03/2023
( 'कहानी कहानियां पार्क की'' के अंतर्गत 18/03/2023 से शुरू 20/04/2023को खत्म हुआ)
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