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Thursday, July 22, 2021

कहानी- शंख


पहली बार घूस लेने में तपन को इतनी घबराहट हुई कि जब रूपया लेने का वक्त आया तो तपन ने मना कर दिया। उस आदमी ने अवाक् होकर कहा- 'अरे ! क्या हो गया ?"

तपन ने कहा 'नहीं, कुछ नहीं। यूँ ही।'

उसने कहा 'आपने इतना बड़ा काम कर दिया अब मुझे भी तो सेवा करने का मौका दीजिए।'

-नहीं, नहीं रहने दीजिए। मेरा काम था, मैने कर दिया। थैंक्स। मुझसे नहीं होगा।'

'अरे आप फालतू संकोच कर रहे हैं। यह तो 'सेवा शुल्क' है, धरम की कमाई है, हमारे दफ्तर में भी सिस्टम बना हुआ है। आप क्या नये आये हैं?'

'नहीं। पहले 'टाइप सेक्शन में था।'

उस आदमी ने मुस्कराकर कहा 'ओहो! ठीक है जी आप अगर नकद लेने में डर रहे हैं या फिर आपको मुझ पर भरोसा न हो तो नगद न लीजिए, किसी सामान की फरमाइश कीजिए आपके घर पहुँच जाएगा। उसकी बात तपन को जँच गई। तपन ने कहा- मेरी पत्नी को एक शंख चाहिए। आपके कोलकाता में 'कालीघाट काली मन्दिर के पास अच्छा शंख मिल जाएगा। अगली मर्तबा जब आना होगा लेते आइएगा।'

उसने हँसते हुए कहा- 'अजी आपने माँगा भी तो क्या माँगा! चलिए मेरी तक़दीर अच्छी है कम से कम भाभीजी के जरिए हम भी कुछ पुण्य कमा लेंगे। अगले महीने ही मुझे फिर आना है। कलकत्ता आना जाना लगा रहता है। '

थोड़े दिनों के बाद तपन को शंख मिल गया शंख देख तपन की पत्नी माला गद्गद् हो गई। उसने एक कलश खरीदा, साड़ी खरीदी, फिर शुभ मुहुर्त देख कलश स्थापित कर दिया। शंखनाद होते ही वह उल्लसित होकर बोली -'अब से हर बृहस्पति को लक्ष्मीपूजा करूंगी। लक्ष्मीव्रतकथा पढ़ने से धन की वृद्धि होती है, खुशहाली आती है। अब से पूजा के नाम आप प्रतिमाह मुझे दो सौ रूपए देंगे।'

तपन बोला 'उफ्फ दो सौ रूपए महीने? यानी कि सालाना दो हजार चार सौ रुपए खर्च बढ़ गए इस शंख के आने से।'

-' क्या? जिनकी कृपा से आप कमाते हैं उनके लिए भी वैसी बात?.मुझको देते समय एक-एक रूपया गिनते है, वहाँ तक तो ठीक है मगर भगवान के नाम पर भी?' माला ने गुस्सा झाड़ा।

माला ने जब लक्ष्मीपूजा कर शंख फूँका तो वह ऐसा फफा कि तपन का भय, डर, संकोच, ईमान, संस्कार, नैतिकता सब निकलकर भागा।

अगले ही दिन से तपना 'सेवा शुल्क लेने के चक्कर में जुट गया मगर उसकी कुर्सी ऐसी थी कि अधिकतर चाय समोसा मिठाई तक ही रह जाता कभी-कमार कुछ रकम मिल जाती, जबकि तपन के कई दोस्त अच्छा खासा कमाते और उन सबों के जीवन स्तर तपन से ढेर बेहतर थे तपन दरअसल इसी वजह से हीन भावना से ग्रस्त था। वह अपने दोस्तों से कटा-कटा रहता।

एकदिन जब उसके दोस्तों ने दूरी बनाने का कारण पूछा तो तपन ने खुलकर अपनी पीड़ा व्यक्त कर दी।

एक दोस्त ने सलाह दी कि उस कुर्सी पर पैसा नहीं है तो वह साहेब से कहकर कोई 'मलाईदार कुर्सी पर अपनी पोस्टिंग करवा लो इस समय कई सीटें खाली पड़ी हुई हैं। तुम सीनियर हो गए हो, तुम्हारी इमेज भी अच्छी हैं, साहब भरोसा रख पायेंगे, तुम रिक्वेस्ट करोगे तो साहेब मान जायेंगे। सब ठीक हो जाएगा।'

दोस्तों के कहने के मुताबिक ही तपन ने काम किया और साहब की कृपा से वह मनचाही कुर्सी पर तैनात हो गया।

धीरे-धीरे तपन के दिन फिरते गए। पाँच-छह सालों में उसने काफी कुछ जुटा लिया, पॉश एरिया में उसने एक जमीन भी खरीद ली। उसके दोनों बच्चे इंगलिश स्कूल में पढ़ते कोचिंग इन्स्टिट्यूट जाते तपन खुश था कि वह बीबी बच्चों की जरूरतें तथा साधारण इच्छाएं पूरी कर पाता।

फिर एकदिन एक अप्रत्याशित घटना ने तपन की शांति में खलल डाल दिया। हुआ ये कि तपन बेहद अच्छे मूड में दफ्तर से घर लौटा था। उसदिन अच्छी कमाई हुई थी। तपन ने माला से कहा- 'मैं फ्रेश हो लेता हूँ, तुम तैयार हो जाओ। बिटिया के बर्थडे की शॉपिंग करा दूँ फिर 'एलचिको' में डिनर कर लेंगे।'

माला ने बेरुखी से कहा- 'पैर उतना ही फैलाना चाहिए जितनी लम्बी चादर हो।'

--'अरे अभाव तो लगा ही रहता है, कभी-कमार मौज-मस्ती भी कर लेनी चाहिए। एक दिन होटल में खाना खाने से गरीबी थोड़े न आ जाएगी! तपन ने स्वाभाविक ढंग से उत्तर दिया।

अचानक माला चीख उठी मौज-मस्ती, ऐश करना सबको अच्छा लगता है, मगर इस तरह ऐश नहीं करना चाहिए कि किसी की बददुआ लगे और सर्वनाश हो जाए। मैं नहीं समझ पा रही थी कि मेरी गृहस्थी पर किसकी कुदृष्टि पड़ी है, इतनी विपदायें कहाँ से आने लगी.. का
 ...आपही के कारण।'

-'मेरे कारण ? अमंगल, बद्दुआ, सर्वनाश ये सब क्या बक रही हो? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है?" तपन ने आश्चर्य व्यक्त किया।

-'जी, मेरा दिमाग बिल्कुल ठीक हैं' कहकर माला घर के भीतर गई फिर दो मिनट बाद एक मिठाई का पैकेट और एक लिफ़ाफे के भीतर से पाँच-पाँच सौ के कई नोट निकाल कर मेज पर रखकर बोली- लीजिए ये रहा आपका ईमान जिस आदमी का काम आपने रोक रखा है वह अपनी अँगूठी बेचकर इसे दे गया है, बोला बाकी रकम काम हो जाने के बाद देगा... शर्म नहीं आती आपको ये पाप करते हुए? बिना दहेज लिए आपने शादी की हमारे सारे रिश्तेदार मोहल्ले वाले जिस किसी ने सुना था, भूरि-भूरि प्रशंसा की थी, मुझे गर्व था कि मेरा पति ईमानदार व्यक्ति हैं, संस्कारी हैं, मगर आप इस हद तक आप गिर सकते हैं मैंने कभी सोचा न था।'

तपन खिन्न होकर बोला- ' क्या बकवास कर रही हो ? मैं क्या अपने सुख की खातिर कमाता हूँ? तुम्ही लोगों के लिए.....'

बात काटकर माला बोली- 'नहीं चाहिए ऐसा सुख। कोई अपनी शादी की अंगूठी बेचे, कोई खून बेचे और उन पैसों से आप अपनी औकात बढ़ाये | उन लोगों की आह लगती है नहीं चाहिए मुझे ऐसा सुख।'

रोती-बिलखती माला घर के भीतर चली गई तपन पीछे-पीछे गया। उसे समझा बुझाकर शांत करने की कोशिश करने लगा। माला बोली- मैं स्वतंत्रता सेनानी की पोति हूँ, मेरे पिता स्कूल टीचर थे। वे गरीब थे मगर इज्ज़त थी। आज भी लोग इज्जत देते हैं हमारे पूरे परिवार को... मगर आपने तो..... मैं सोच नहीं पा रही हूँ कि मैं जिसे देवता मानती हूँ | माला सुबकती रही।

तपन ने कहा- 'जरा समझने की कोशिश करो जमाना बहुत आगे निकल चुका है। सम्पन्नता के मामले में होड़ लगी हुई है, एक दूसरे से आगे बढ़ने की। ईमानदार वही बना हुआ है जिसकी कमाई नहीं है। ईमानदार आदमी सिर्फ रोता है, अपने से कम वेतन पाने वालों को आगे बढ़ते देखता रहता, अपने अपनों से ताने उलाहने सुनता, हीन भावना कर शिकार हो जाता है। तुम्हारे बाप-दादे का जमाना बहुत पीछे छूट गया है। बड़े-बड़े नेता, अधिकारी सब धनाढ्य बनते जा रहे हैं, उस जमाने जैसा चरित्रवान नेता शायद ही कहीं मिले। लोग लाखों करोड़ो कमा रहे हैं, अरबों लूट रहे हैं बड़े-बड़े उद्योगपत्ति बैंक से कर्जा लेकर कर्जा नहीं चुकाते, बड़े-बड़े उद्योगपति हजारों करोड़ रूपए कर्जा लेकर देश छोड़कर भाग जाते हैं, सब जनता के रूपए... ईमानदारी हूँ ! कम वेतन पाने वाला कर्मचारी पाँच दस रूपए ले लें तो भ्रष्टाचारी...अरे जरा पास-पड़ोस देश दुनिया की खबर भी रखा करो। तुम तो पुराने जमाने की औरतों की तरह ही बनकर रह गयी हो। खाना पकाना, पूजा करना, मन्दिर मठ जाना, जब देखो तब व्रत रखना - छत्! बोरिंग।'

माला बोली-' मैं जैसी हूँ वैसी ही रहूँगी। धर्म पथ पर रहना चाहिए। धर्म भ्रष्टाचार नहीं सिखाता... आप किसी के सामने हाथ नहीं फैलाइएगा। बस में कह देती हूँ।'

तपन ने फिर समझाने की कोशिश की हाथ नहीं फैलाना पड़ता अपने आप सब हो जाता है। दफ्तर में सिस्टम बना हुआ है। हर काम का रेट फिक्सड है। देने वाले को पहले से मालूम रहता है कि उसे देना है। नीचे से ऊपर तक पैसा जाता है सबका फिक्सड परसेन्टेज रहता हैं... मैं किसी दफ्तर में काम करवाने जाता हूँ तो मुझे भी देना पड़ता है। बिना दिए काम नहीं होता।'

माला क्षुब्ध होकर बोली- 'मैं कुछ नहीं सुनना समझना चाहती। मैं जानती हूँ घूस लेना-देना दोनों पाप है। पाप का घड़ा कभी न कभी फूटता जरूर और जब फूटता है तो लोग अर्श से फर्श पर गिरते हैं। भगवान की मार जब पड़ती है तो सारी अक्ल घुटने पर आ जाती है, नर्क भोगना पड़ता है, तब माथे पर टीका लगाकर जय श्री राम जय माँ काली बोलने वाले भी नहीं बचते। अपनी बात ख़त्म कर माला किचन में चली गई।'

चाय-नाश्ता लेकर जब माला लौटी तब भी उसका चेहरा उदास, गमगीन था। तपन ने कहा- 'चलो अब आँसू बहाना बन्द करो। बच्चे घर लौट रहे होंगें, कोचिंग बन्द होने का टाइम हो गया हैं। फिर तपन ने उसकी कलाई पकड़कर कहा- 'यह गृहस्थी आपकी है मैडम ! आप घर की लक्ष्मी हैं। मैं हमेशा आपको खुश रखना, खुश देखना चाहता हूँ।'

थोड़ी सी मुस्कान भर माला ने कहा- मैं कब खुश न थी ? मैंने तो आपसे कभी कुछ माँगा ही नहीं। मुझे जो माँगना रहता मैं भगवान से माँगती हूँ। भगवान मेरी सुनते भी हैं। मेरे माँगने से आपने अफसरवाला इम्तहान पास कर लिया। जगह खाली होने पर अधिकारी भी बन जायेंगे और क्या चाहिए।

तपन ने माला के सिर पर हाथ रख विनम्रता से कहा- 'तुम्हारी कसम अब से गलत कमाई बन्द मैं पूजा-पाठ नहीं करता किन्तु धर्म अधर्म तो जानता ही हूँ। भगवान के नाम पर डरता भी हूँ। मैं बहक गया था। तुम्हारे दिल दुखाने का मुझे खेद है। आई एम सॉरी ।'

माला ने उसका हाथ अपने सर से हटा दिया। माला का मुरझाया हुआ चेहरा अचानक खिल उठा। तपन ने उसे बाँहों में लेकर उसके गालों को चूम लिया।

उक्त घटना ने तपन को भीतर से हिलाकर रख दिया था धर्म-परायण पत्नी की बातों ने उसे उसके सामने बौना बना दिया था। कई दिनों तक माला की एक-एक बात उसके कानों में गूंजती रही। जब कभी दफ़र में लेन-देन की बात होती या सुविधा शुल्क लेता माला का वह रोता हुआ चेहरा, पूजा करता हुआ चेहरा सामने आ जाता, उसे अपनी कसम याद आ जाती और वह सिहर उठता जब कभी साँझ होने पर माला दीया बाती जलाकर शंख फूँकती तो वह फूँक उसकी देह के भीतर प्रवेश कर धमनियों में कम्पन पैदा कर देती । आख़रकार वह खुद से ही हार गया और अन्तरात्मा की पुकार के अनुसार 'मलाईदार कुर्सी' का मोह त्याग कर स्वाभिमान से जीने वाली कुर्सी पर पोस्टिंग करवा लिया।

समय के साथ-साथ तपन सहज हो गया। स्वाभाविक शान्तिपूर्ण जीने लगा। अपने स्वभाव और संस्कार के अनुरूप की जिन्दगी जीने लगा। भयमुक्त जिन्दगी जीने का रास्ता दिखाने के लिए माला के प्रति उसका प्रेम और सम्मान बढ़ गया। वह उसका ज़्यादा ख़्याल रखने लगा।

किन्तु वह शंख उसके क्लेश का कारण बना हुआ था। जब-जब माला शंख फूँकती तपन की इच्छा होती कि उसके हाथों से छीनकर फेंक दे कहीं। कई बार उसके मन में आया कि दफ्तर जाते समय चुपके से शंख को झोली में ढाल ले और उसकी सद्गति कर दें किन्तु वह साहस नहीं जुटा पाया। उसके मन में भय था कि पूजा स्थल के शंख का गुम होना माला अपशकुन मानकर कामवाली को जिरह करेगी, कोहराम मचा देगी। उसकी दिमागी हालत भी ख़राब हो सकती है।

तपन उपाय सोचता रहा किन्तु अचानक उसका सारा ध्यान अपनी जमीन पर मकान बनाने पर चला गया। हाउस बिल्डिंग एडवांस की राशि उसके नाम स्वीकृत होकर मुख्यालय से आ चुकी थी, पहली किश्त की राशि पाने के लिए प्राधिकरण द्वारा पास किया हुआ मकान के नक्शे की कापी देना अनिवार्य था। नक्शा पास कराने के लिए बाबू ने जितनी राशि की माँग की थीं तपन देने के लिए राजी नहीं था नतीजन उसका काम भी लटका हुआ था। पास किया हुआ मकान का नक्शा कार्यालय को न दिखा पाने के कारण मुख्यालय द्वारा भेजी गई राशि मुख्यालय को सरेंडर करने की नौबत आ गयी।

नक्शा पास करवाने के लिए तपन घूस माँगनेवाले बाबू से सम्पर्क किया, उसने घूस की राशि कम करने के लिए बहुत गिड़गिड़ाया अपनी कोई ऊपरी कमाई न होने की बात कही, पिता की गम्भीर बीमारी पर लम्बा खर्च होने की बात कही किन्तु बाबू टस से मस नहीं। बाबू ने कहा कि उस रकम में से उसके हिस्से बहुत थोड़ा ही आयेगा, तपन चाहे तो थोड़ा सा कम कर दे। तपन ने अगले हफ़ मिलने की बात कर घर लौट गया। 

रात को सोने से पहले के सपन ने माला को नक्शा पास करवाने के सम्बन्ध में जो बातें बाबू से हुई उसे सुनवाकर खुश किया। फिर मकान कैसा बनेगा आदि बातें कह कर माला को प्रसन्न करके पूजा घर में रखे को उसे देने के लिए कहा। माला एकदम से चौक उठी क्या? शंख ? शंख का क्या काम? क्या करेंगे आप? तपन ने कहा- शंख और उसके साथ जो स्पेशल सिल्क का कुर्ता कलकत्ते से आया था, वह आदमी दुबारा आया नहीं, उसका उधार रह गया है। उधार के शंख की फूँक सुनते ही मुझे उसकी याद आ जाती है बात काटकर माला बोली- मतलब कि पूजा का सामान आपने घूस में लिया था ? छिः छिः ये क्या किया था आपने?'

- 'मैंने कहा न तब से वह आदमी आया नहीं। शंख मैंने मंगवाया था। पैसा दे देता किन्तु तो घर पर तुम्हें दे गया था। मैं क्या करता? अब उसे मुझे दे दो, मैं किसी पुरोहित को दे दूँगा। हम लोग गर्मी में कोलकाता जायेंगे तुम्हें तुम्हारी मनपसंद शंख खरीद दूंगा।'

माला बहुत खिन्न हुई। गिडगिडाती हुई बोली- 'क्या आफत ! पूजास्थल का शंख कैसे दे दूँ। मुश्किल में डाल दिया आपने, अब तो इस शंख से पूजा भी नहीं की जा सकती। छिः छिः घूस के शंख से आपने एक दशक पूजा करवायी, देवी का आह्वान करवाया तभी तो घर में इतना अमंगल है कोई न कोई बीमार रहता।'
 तपन ने झुंझलाहट के साथ कहा-' ठीक है, अब चुप भी रहो, जैसे कि दुनिया में कोई बीमार नहीं पड़ता बहुत ज़्यादा अंधविश्वासी हो तुम चोरी की कमाई से लोग सोने की मुकुट, हार पता नहीं क्या-क्या चढ़ाते हैं, स्वस्थ रहते, मस्त रहते और तुम मैं अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन काम करता हूँ तभी परेशान हूँ मैं ख़ुद आग में जल रहा हूँ और तुम हो कि पानी डालने की जगह घी डाल रही हो।'

माला ने शंख देकर कहा- ' इसे इधर-उधर मत फेकिएगा। गंगाजी में डाल दीजिएगा।'

अगले दिन तपन में शंख को अच्छे से साफ़ कर दफ़्तर के बैग में रखा। शाम को एक पैकेट मिठाई खरीदी और जितने रूपए घूस में देने थे उसका आधा लिफाफे में भरकर उस बाबू के घर पहुँचा जिसे मकान का नक्शा पास करना था। उसने तीनों चीजें उसे दे दिया।

शंख देखकर वह बाबू चकित हुआ। बहुत देर तक शंख को देखता रहा। तपन ने कहा 'कलकत्ता गया था, कल लौटा। आपका ख़्याल आया ले लिया। यह शंख कलकत्ते का स्पेशल शंख है। इसकी कीमत दो हजार रूपए है।'
वह बाबू पुलकित होकर बोला- 'कितने भलेमानुष हैं आप कितने उत्तम आपके। आजकल तो लोगों का ध्यान भजन-पूजन से उचटता जा रहा है। आपने बड़ा पुण्य किया। मेरी पत्नी इसे पाकर खुश हो जाएगी। जबसे उसने पूजा-पाठ शुरू किया एक शंख के लिए कह रही थी मगर बस अपनी ही लापरवाही थी।'

तपन ने पूछा- 'आपकी पत्नी भी बहुत धार्मिक है? बहुत पूजा पाठ करती?'

उसने कहा- ' उम्र का तकाजा है। दादी बन गई, नानी बन गई बूढी हो चली, जितना सजना-धजना था सब कर चुकी अब दो चार घंटे वही बैठी रहे तो बेहतर वर्ना आप तो जानते ही हैं बुढ़ापे में पति-पत्नी की खिटिर-पिटिर बढ़ जाती है।'

तपन ने पूछा- 'आप भी पूजा-पाठ करते होंगे?'

उसने हँसकर कहा 'हम मर्दो को तो रिटायरमेंट के बाद ही यह सब सोचना चाहिए। पत्नियों इतना धर्म-कर्म करती उसका फल मिलता है कि नहीं?... पंद्रह दिन बाद मिलिएगा।'

काफी दिनों के बाद पूस की एक रात तपन के घर के सामने किसी ने चीत्कार किया ' तपन, मिस्टर तपन ! तपन दादा! दादा जी!'

दरवाजा खोलते ही तपन भौंचक उसके सामने वहीं मकान का नक्शा पास कराने वाला बाबू खड़ा था और उसके हाथ में था वही शंख तपन को देखते ही उसने कहा- 'यह शंख वाकई में स्पेशल शंख है। इसे वापस करने आया हूँ।'

- 'क्यों? क्या हुआ?' तपन ने आश्चर्य व्यक्त किया।

- 'बड़ी लंबी कहानी है. फिर कभी बताऊंगा, फिलहाल इसे आप ले लीजिए। मैं पूजा का शंख है इस कारण इसे में फेंक नहीं पा रहा हूँ और आपने भेंट किया था इसलिए किसी को दे भी नहीं सका आपका सामान आप ही को मुबारक। सम्भालिए।'

तपन ने कहा-' सॉरी इसे मैं वापस नहीं ले सकता। आप अंदर आइए। संक्षेप में अपनी कहानी सुनाइए। दोनों मिलकर कोई निर्णय लेंगे।'

उसने कहा- 'लगता है इसमें काला जादू है। इस शंख ने मेरे घर की शांति भंग कर दिया। जब जब मेरी पत्नी इसे फूँकती है, मेरा शरीर कॉप उठता है। मेरे दिमाग में तनाव हो जाता है। दिल की धड़कनें बढ़ जाती हैं। एकदिन घर में कथा हो रही थी, पुरोहित जब-जब शंख बजा रहे थे मेरी धुकधुकी बढ़ रही थी। मैंने सोचा घूस में लिए गए शंख की आवाज़ भगवान नहीं सुन रहे होंगे। रात को मेरी तबियत अचानक खराब हो गयी थी। पत्नी ने कहा इस शंख में कोई तंत्र-मंत्र है।'

तपन ने उहाका मारकर कहा- 'अरे पंडित जी धूस के पैसों से आप पहले भी पूजा करवाते थे, कथा भी सुनते थे तब कुछ नहीं हुआ ? ये आपका दिमागी फितुर है अंधविश्वास हैं '।
उस आदमी ने कहा-' नहीं। मेरे दिमाग का कपाट खोल दिया इस शंख ने, मैं चलता हूँ। '

• उसकी बात समाप्त होते ही तपन ने कहा- 'पूजा का सामान दान करना नेकी है, मगर दान में दिया गया सामान वापस लेना पाप है। आपके घर में इस्तेमाल किया हुआ सामान में वापस नहीं ले सकता।'

उस आदमी ने खिसियाकर कहा- 'आपने जानबूझ कर बदमाशी की है। इसमें बंगाल का जादू है। आप ही इसे रखिए।'

तपन ने उत्तर दिया-'अजी जादू तो जादू होता है चाहे कहीं का हो । लगता है इसने अपना काम कर दिया है, अब आपको इसकी जरूरत नहीं है। आप सही रास्ते पर आ गए हैं। अब कृपया इसे मेरे घर ट्रांसफर न करें। इसे आप पार्सल द्वारा किसी ऐसे व्यक्ति को भेज दीजिए जिसने कोई घोटाला किया हो या बैंक से कर्जा लेकर विदेश भाग रहा हो या फिर अपने बेटे की शादी में लंबा दहेज लेना चाहता हो... हाँ, अपनी और आपकी पीड़ा को उजागर करते हुए मैं एक कहानी अवश्य लिखूँगा।'

- सुभाष चन्द्र गाँगुली
4/8/1998
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*" जनप्रिय ज्योति " सितंबर 1998 में प्रकाशित  * सीएजी कार्यालय की पत्रिका "लेखापरीक्षा प्रकाश " 42 वां अंक 1997 में प्रकाशित ।
* " दैनिक जागरण " समाचार पत्र 1/8/1999 को प्रकाशित ।
* शंख का बांग्ला अनुवाद 'शेषेर लाइन ' संकलन October 2003 published by Vishwa--Jann
* ' इन्द्रप्रस्थ भारती ' सितंबर 2021के अंक में      प्रकाशित ।

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