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Monday, September 13, 2021

कहानी--- मार्केट में सिर्फ हिन्दी



महानगर कलकत्ता मई 1995 । विकट गर्मी किंतु अजीब किस्म की। इलाहाबाद से एकदम भिन्न ।लू नहीं, सूरज की तपिस में चुभन नहीं, न आम का पना जरूरी, न ही कूलर एसी जरूरी। फिर भी सही नहीं जाती गर्मी । उमस, उमस और उमस । ड्रेस पहनने की देर नहीं कि पसीना आने लगता ट्राम या बस में थोड़ा सा सफर किया और बनियान गीली हो गई। उस नगर के निवासियों की तो आदत थी पर मैं तो झेल नहीं पा रहा था।

मैंने गौर किया कि ज़्यादातर लोग अपने साथ एक छाता लेकर चलते हैं । मेरे चाचाजी ने बताया कि गर्मी से बचने के लिए लोग छाता तो रखते ही हैं, बारिश का भी भरोसा नहीं है, गर्मी के चलते-चलते हठात् बारिश भी आ सकती है इसलिए छाता रख लेना अपने पास । मैंने छाता खरीदने का मन बना लिया।

बड़ी तारीफ सुन रखी थी कलकत्ते की छाते की, एक से एक छाता मिलता है । आमतौर पर के सी पाल का छाता लोग खूब पसंद करते हैं। कुछ तो ऐसे भी है कि मुट्ठी या जेब में रखा जा सकता । शायद ख़ास अंदाज़ से ही उन्हें बनाया जाता है ताकि खचाखच भरी बस या ट्राम में किसी को तकलीफ़ न हो । एक बेहतरीन यादगार छाता खरीदना चाहता था मैं । मेरे चाचाजी ने ' श्याम बाजार ' के एक ख़ास मार्केट से ख़ास दुकान से छाता खरीदने के लिए कहा ।

श्याम बाजार पहुँचा । विशाल मार्केट । घूमते-घूमते थक गया । चाचाजी ने पूछा था - " ढूँढ पाआगे ? कहो तो मैं चलूँ मैंने कहा था कितना बड़ा बाजार होगा ? आप कहाँ परेशान होंगे, मैं पक्का इलाहाबादी हूँ , हम इलाहाबादी तो भूलभूलैया से बाहर निकल आते हैं, यह तो कलकत्ता है । लेकिन सचमुच मैं ढूँढते-ढूँढ़ते इतना परेशान हो चुका था कि हार मानकर वापस लौटने का मन बना लिया । उसी समय अचानक मेरी नज़र एक बहुत छोटी दुकान पर पड़ी । यह वही दुकान थी जिसका नाम चाचा ने कहा था । मैने सोचा इतनी छोटी सी दुकान में बढ़िया छाता कैसे मिल सकता ? 
 खैर, मैं दुकान के क़रीब पहुँचा । एक बूढ़ा आदमी आँखों के ऊपर मोटे-मोटे शीशे का चश्मा, काली- सफेद बेतरतीब दाढ़ी, गर्दन झुकी हुई बड़ी तन्मयता से किताब पढ़ रहा था । किताब का कवर चमक रहा था । पावलो नेरूदा की कविताएं, पोलिश कविताओं का बांग्ला अनुवाद । छाता और कविता ? दोनों में क्या संबंध है ? मैं जवाब ढूँढने लगा । दरअसल मैं साहित्य प्रेमी , मेरे लिए एक अद्भुत, अनोखा दृश्य था यह । 

वह जिस एकाग्रता से किताब पढ़ रहे थे उसे देखकर में इतना मंत्रमुग्ध हो गया कि उन्हें डिस्टर्व करना उचित नहीं समझा, लेकिन छाता भी उसी दुकान से लेना था इस कारण से उस दुकान के ठीक सामने पान की दुकान पर खड़ा हो गया। पान खाया, पान बँधवाया , फिर देखा ग्राहकों ने उनका ध्यान भंग कर दिया है और वह सज्जन किताब में पेज मार्क रखकर भीतर जाने लगे । झट से मैं भी पहुँचा और बांग्ला में कहा- " दादा एकटा छाता चाई कोलकातार स्पेशल छाता।"( दादा एक छाता चाहिए कलकत्ते का स्पेशल छाता )। 
भीतर जाते-जाते उन्होंने उत्तर दिया--" ठहरो आता हूँ "। 
मैंने जोर से फिर बांग्ला में कहा-- " दादा छाता स्पेशल छाता, जेन्ट्स छाता चाई ।"( दादा स्पेशल छाता, जेन्ट्स छाता चाहिए) । चलते-चलते वह रुक गए, मुझे घूरकर देखा और हिन्दी में उत्तर दिया " गम खाओ आता हूँ। "

मेरे बगल में दो लोग खड़े थे एक ने मुझे सिर से पैर तक देखा फिर पूछा-- "आपने बांग्ला सीखा है क्या?" 
मैंने कहा-- " जी नहीं मैं बंगाली हूँ ।"
 उसने कहा-- " मगर लगते नहीं, न उच्चारण से और न ही चेहरे से । आपका उच्चारण साफ़ नहीं है ।" मुझे अटपटा लगा, क्रोध भी आया लेकिन मैंने संयम से उत्तर दिया-- " संभवतः बंगाल के बाहर जन्म-कर्म  के कारण । मै जन्म से इलाहाबाद में रहता हूँ । अधिकतर हिन्दी बोलना पड़ता है। हिन्दी में काम भी करता हूँ । " 
उसने कहा- " तभी तो आपके उच्चारण में हिन्दी का असर है।" 
मैंने कहा--" दरअसल जब मैं हिन्दी बोलता हूँ मेरे दोस्त मुझे टोका करते हैं कि मेरे उच्चारण में बंगला का असर है। जब मैं इंग्लिश में पढ़ता  हूं लोग कहते हैं कि अंग्रेजी धाकड़ है किन्तु उच्चारण से पता चलता है कि आप बंगाली हैं। आपही बताइए मैं क्या करूँ ? कहाँ जाऊँ ? " 
वे दोनों जोरों से हँसने लगे। उनको हँसते देख मैंने मुस्कराकर कहा-- " हिन्दुस्तानी लग रहा हूँ ना ?" मुझे अप्रसन्न देख वे चुप हो गए। अब मैंने उन्हें छेड़ना चाहा--" आपकी हिन्दी बहुत ख़राब है । उच्चारण छोड़िए , लिंग का अता पता नहीं । खैर हिंदी बोलते रहिए, फिल्म देखते समय वाक्यों पर ध्यान दीजिएगा जल्दी सीख लेंगे । "

एक ने कहा- "मेरा घर बिहार में है, बल्कि हम दोनों ही बिहारी है, घर में मैथली बोलते हैं, गाँवों में भोजपुरी और अवधी हाई स्कूल तक अंग्रेजी पढ़ा था। तीस साल से यहाँ रहता हूँ हम टैक्सी चलाते हैं, बांग्ला भी आ गया इसलिए हमारी स्थिति और ख़राब है। अब वे मुझसे बांग्ला में बोलने लगे। व्याकरण और उच्चारण संबंधी त्रुटियों के बावजूद मैं भरपूर आनन्द ले रहा था यह सोचकर मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही थी कि वे दोनों भाषा के धनी हैं और दोनों मेरी मातृ भाषा बोल रहे थे, मैंने सोचा थोड़ी बहुत गलती चल जाती है। भाषा का मुख्य काम है सम्प्रेषण, सम्वाद। भाव को व्यक्त करना और इस मामले में वे दोनों अच्छे थे।
               वह दुकानदार कई छाता ढो लाये। सबसे पहले जो पहुँचा था उसे दिखाने लगे । मैंने बांग्ला में कहा-- " दादा आमार (मेरा ) छाता?" उन्होंने कहा-- " गम खाओ बुड्ढा आदमी एक-एक करके दिखाता है । मेरे बगल में खड़े एक टैक्सी चालक ने पूछा--" सुनील गंगोपाध्याय की कहानियाँ कैसी लगती है ? "अच्छी" मैंने झूठ बोला । दरअसल मैंने उनकी दो-चार कहानियाँ ही पढ़ी थीं जिसे मैं भूल भी गया था । आगे उसने पूछा--" क्या ख़्याल है आपका शक्ति चट्टोपाध्याय को ज्ञानपीठ एवार्ड नहीं मिलना चाहिए ? क्या सुभाष मुखोपाध्याय से कम अच्छी कविताएं है उनकी ? " 
मैं क्या कहता ? मैंने किसी की भी कविता नहीं पढ़ी थी पर मैंने उसे इस बात का आभास नहीं. होने दिया और आहिस्ता से कहा--"आप ठीक कह रहे हैं।"

दुकानदार ने मुझे देखकर कहा-- "लो देख लो" कौन सा पसंद है ? जोन सा पसंद है ले लो। मैंने बांग्ला में कहा- "दादा खूब भालो छाता दिन (दीजिए)। एक छाता हाथ में थमाकर उन्होंने कहा-- "लें इसे रख लें, खूब अच्छा छाता है, सस्ता भी है. मात्र एक सौ दस रूपया का है । उनकी अशुद्ध हिन्दी खटक रही थी और मुझे गुस्सा भी आ रहा था । मैंने अब हिन्दी में कहा-- "दादा मैं बंगाली हूँ, आपसे बांग्ला में बोल रहा हूँ और आप तब से गलत-सलत हिन्दी में जवाब दिए जा रहे हैं । वह नाराज़ हो गए, चश्मा नाक के नीचे उतारकर आँखें उठाकर बोले--" बांग्ला बोलने का शौक है तो मेरे घर में आओ मेरा घर श्याम बाजार में ही है । अभी दुकान बंद होगा ये लो मेरा कार्ड, घर का पता है। घर पर खूब बात करेंगे, बांग्ला में। इ मार्केट है, महानगर का मार्केट । यहाँ दूर-दूर से लोग आते हैं। मार्केट में सिर्फ़ हिन्दी चलेगा ।" शर्म से मेरा सिर झुक गया । अब मैं जल्द से जल्द भागना चाहता था। मैंने वही छाता उठा लिया और एक सौ दस रूपये दे दिया । 
उन्होंने पाँच रुपया वापस देकर कहा--" बाहर से आये हो कनशेसन दे रहा हूँ । याद रखना। 
चलते-चलते मैंने कहा--" दादा आपसे मिलकर बेहद खुशी हुई। आपको याद रखूँगा । सचमुच अगर हिन्दुस्तान के हर मार्केट में आप जैसे समर्पित लोग हो जाए और मार्केट में सिर्फ़ हिन्दी बोलें तो हिंदी की प्रगति निश्चित हो जाएगी । पूरे राष्ट्र में एकता, सद्भावना, प्रेम बढ़ेगा । नमस्कार  चलता हूं ।"

-सुभाष चंद्र गांगुली
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प्रकाशित: 
* तरंग " संयुक्तांक : ७१-७२"
* हिन्दी साहित्य सम्मेलन, इलाहाबाद के ' राष्ट्रभाषा सन्देश ' में प्रकाशित।
* साहित्यिक आयाम, अमर उजाला में ।

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