Search This Blog

Monday, May 30, 2022

कविता- भारत माँ की गोद में


घड़ी घड़ी में देखता घड़ी,

थोड़ी दूर है ना खड़ी,

कविता बनकर नाच रही जिंदगी,

हर मोड़ कविता देख रहा हूँ 

कल तक छोटी लगने वाली दुनिया,

आज लगने लगी अचानक बड़ी ।

बादल अभी घिरे नहीं,

बिन बादल बरसात देख रहा हूँ 

ख़त्म हो रहा है सफर

बस अलविदा कहने वाला हूं, 

क्षितिज पार करते करते  

भारत माँ की ही गोद में 

खुद को देख रहा हूँ।

 

-सुभाष चन्द्र गाँगुली

30/05/2022