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Friday, May 18, 2012

कविता- आज रात लिख सकता मै

दुनिया कि सर्वाधिक करुण पंक्तिया।
लिख सकता मैं --
तारों से जगमग है आज की रात,
चमक रहे हैं ग्रह-नक्षत्र दूर दिगन्त,
लहरा रहा है संगीत हवा के संग मस्त-मस्त। 
आज रात लिख सकता मैं बेहतरीन मार्मिक पंक्तियाँ, 
कितना गहरा प्यार किया था मैंने उससे, 
कितना गहरा प्यार किया था उसने मुझसे।
ऐसी ही मनोरम एक रात
घण्टों बैठे थे हम, हाथ में डाले हाथ
और विशाल अनन्त आकाश के नीचे बैठे बैठे 
भर दिया था चुम्बन मैंने उसके पूरे चेहरे पर्।
कभी करती थी मुहब्बत वह मुझसे बेपनाह्।
वृहद, विस्तीर्ण, भावुक, आकर्षक उन नयनों से
प्यार न हो- यह मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन भी है।

आज रात लिख सकता मैं 
दुनिया कि सर्वाधिक मार्मिक पंक्तिया-
सिर्फ इसी बात पर कि वह मुझे नहीं मिली, 
खो दिया मैंने उसे हमेशा के लिए अति निर्ममता से।
हाय ! कितनी लम्बी है आज की रात उसके बिना, 
घासनुमा मेरे हृदय में 
कविता के बोल ओस जैसे झर रहे हैं;
मगर क्या फ़र्क पड़ा, अगर मेरा प्यार उसे बाँध न सका ?
मेरे लिए तो बस, इतना पर्याप्त है कि वह मेरे क़रीब नहीं है। 
दूर, बहुत दूर, जाने कौन गीत गा रही है?
उसकी जुदाई से मेरा हृदय विदीर्ण हुआ है । 
अपलक मेरी निगाहें ढूँढ़ती हैं उन बाहों को :
मेरा पूरा वजूद, मेरा अस्तित्व ढूँढ़ रहा है उसे,
किन्तु हाय ! मेरे समीप नहीं है आज वह् ,
ठीक वैसी ही है आज की रात,
ठीक वैसा ही उद्भासित है वह विराट वृक्ष, 
पर हम दोनो मौजूद नहीं है वहाँ। 

नहीं रहा मेरा अब उससे कोई वास्ता यह सच है, 
मगर कभी बेहद प्यार किया था मैंने उसे, यह भी सच है;
बेताब है मेरी इन्द्रियाँ इस आबोहवा में उसे पाने के लिए। 

किसी और की अमानत है आज वह, 
किसी और की हो चुकी है अब वह् ।
उसका कण्ठ-स्वर, उसकी आँखे 
सब ठीक वैसे ही होंगे उनके लिए
चुम्बन के पहले, जैसे थे ये वे मेरे लिएमेरा और उसका अब कोई सम्बन्ध नहीं है यह सच है।
वस्तुतः कितना गहरा प्यार कर सकता था मैं !
प्यार कितना क्षणिक  और अविस्मृत 
स्मृति कितनी स्थायी !

चूँकि ऐसी ही तारोंभरी रात में
वह थी पूर्ण्तः मेरे आगोश में,
मेरा हृदय भरा नहीं उसके बिछोह से।
शायद उससे मिली वेदना का यही मेरा अन्तिम क्लेश है,
शायद उसके नाम यही मेरी अन्तिम कविता है। 


-- पाबलो नेरूदा -पोलिश कवि
-- भावानुवाद:  सुभाष चन्द्र गाँगुली
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*  ' भाषा सेतु ' अहमदाबाद के अंक 22 जनवरी- मार्च 1998 में प्रकाशित ।
* "समुच्चय " इलाहाबाद 1999 में प्रकाशित

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