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Wednesday, April 12, 2023

नींबू का पेड़

                       
     इस समय मैं अपने प्रिय पार्क में हूं। कभी यहां से बहती रही एक नदी । एक दो पुराने मकानों पर ' रिवर  साइड '( नदी तट पर ) लिखा हुआ मिलता है । धीरे-धीरे नदी ने अपना रास्ता बदल लिया था कभी । कछार बना रहा बहुत दिनों तक । बीसवीं सदी में पचास-साठ के दशक में नगर निगम ने इस जगह पर दो-ढाई सौ वर्ग गज जमीन पर मकान बनवा कर सस्ते में मात्र सात-आठ हजार में बेच कर इस जगह को आबाद किया था । तीन-चार कॉलोनियां बनायी गयी थी। यहां से न्यायालय पास होने के कारण यहां जमीन की कीमतें बढ़ते-बढ़ते कहां से कहां पहुंच गई है । आज कोई मकान बेचता है तो उसे दो-ढाई करोड़ मिल जाता है। ज़्यादातर मकानें गिराकर दुबारा बनाये गये हैं । एक से एक ख़ूबसूरत मकान है इस एरिया में। जिनलोगों ने मकान खरीदा था आज उनकी तीसरी-चौथी पीढ़ी रह रही हैं जो काफ़ी सम्पन्न हो गये हैं ।  बड़े-बड़े वकिल, जजेस,  रिटायर्ड आईएएस, आईपीएस,कई बड़े बिजनेसमैन रहते हैं यहां । इस एरिया में छोटे बड़े कुल चार पार्क हैं, उनमें से सबसे बड़ा और सबसे ख़ूबसूरत पार्क है मेरा यह पार्क । बेशुमार पेड़ हैं बाउंड्री वॉल के चारों ओर । जिस किसी ने पेड़ लगाए थे बड़ी प्लैनिंग के साथ लगाये थे।
आम के दो पेड़, लीची के एक, जामुन के एक, एक साइड में तीन देवदार, एक नीम के पेड़, देवदार के दो; एक साइड में एक आंवला , दो गुलमोहर,अमलतास, अमरुद के चार ,नारंगी के दो , दो छोटे-छोटे नींबू के पेड़ और हैं दो बड़े-बड़े नींबू के पेड़ ।
बांउड्री के बाहर चारों ओर रहने वालों ने एक ' रेसिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन' बना रखा है जो पार्क की ख़ूबसूरती , फल-फूलों का हिसाब रखते हैं । 
        पार्क के अंदर-बाहर जगह-जगह लिखा हुआ है " फल-फूल तोड़ना मना है। अवज्ञा करने वालों को दंडित किया जाएगा - वेलफेयर एसोसिएशन " । पार्क के बाहर दो फाटक के पास नोटिस बोर्ड जमीन पर गाढ दिया गया है जिस पर लिखा है " पार्क के पास रहने वाले निवासियों द्वारा पार्क का रखरखाव किया जाता है इसलिए बाहरी लोगों का प्रवेश वर्जित है -- वेलफेयर एसोसिएशन "। जब भी इस पर मेरी नज़र पड़ती मुझे तकलीफ़ होती।
         सारे फल-फूल कहां जाते हैं मैंने जानने की कोशिश नहीं की। कभी-कभार सुनने में आता है कि फल-फूलों के हिसाब को लेकर वेलफेयर एसोसिएशन की मीटिंग में तू-तू मैं-मैं हो गई थी।
          किन्तु बडे-बड़े नींबू के दो पेड़ों को देखकर मुझे कौतूहल होता है कि इसके फल पेड़ों पर जस के तस क्यों लगे रहते हैं ? ये फल बच्चों के खेलने वाले छोटा फूटबाल का आकार ले लेता है । हरा रंग पीला होकर गिर जाता है, फिर सूख जाता है किन्तु कभी कोई हाथ नहीं लगाता। 
   मैंने जानने की कोशिश की कि ये कौन सा पेड़ है, किस तरह के फल निकलते हैं ? 
      मैंने जाना कि अधिकतर लोगों को पता ही नहीं क्या है किन्तु काफ़ी लोगों ने कहा था कि ये जंगली पेड़ हैं, इसका फल नहीं खाया जाता, मेरे एक मित्र जो अल्मोड़ा में रहता है ने कहा था कि यह पहाड़ी पेड़ है, खट्टा होता है, पहाड़ पर रहने वालों के लिए ठीक है, वे नमक, धनिया, मिर्चा, मूली के साथ खाया जाता हैं । किन्तु इसका फल यहां वालों को नुक्सान करेगा । फिर किसी ने कहा था यह 'चकोतरा' है बहुत ज्यादा खट्टा होता है,अमूमन लोग खाते नहीं ।
              मेरी जिज्ञासा बनी रही । अच्छे-अच्छे पेड़ों के बीच ये जंगली पहाड़ी अनुपयोगी पेड़ किसी ने क्यों लगाया होगा !
जाड़े में एक दिन मैं धूप लेने पार्क पहुंचा। 
बड़े नींबू के एक पेड़ के पास एक औरत बेंच पर बैठी थी । वो पेड़ों में लदे बड़े-बड़े नींबुओं को बड़े चाव से देख रही थी। मैं वहां रुक गया ।‌‌‌‌‌ मुझे देख वह सकपका गई और फिर नज़रें हटा ली। मैंने पूछा -" ये किस चीज का पेड़ है जानती हो ?"
उसने बांग्ला में उत्तर दिया " दादाजी ये नींबू का पेड़ है ।"
----" नींबू का पेड़ ? खाया जाता है क्या ? कुछ लोग इसे ' चकोतरा ' कहते हैं, यहां रहने वाले ज़्यादातर लोग इसे ' जंगली ' कहते हैं ।"
----"  ये बंगाल, बिहार में खूब पाया जाता है, इसका नाम है' बाताबी नींबू '। शरत काल में जब दुर्गा पूजा उत्सव का टाइम होता है तब फलता है, दो-ढाई महीना मिलता है । पीलिया रोगी के लिए यह रामबाण है। इसे खाने से कमजोर लिवर वालों का लिवर ठीक रहता है । इसे खाने से ब्लडप्रेशर कन्ट्रोल में रहता ।"
---"अच्छा इतना उपयोगी ?"
--" इससे दवा भी बनता है ।"
--" अच्छा !!"
--"तुम कहां की हो ? बांग्ला तो ठीक बोल लेती मगर बोली बांग्लादेश की है । बांग्लादेश की हो ?"
--"जी नहीं मैं इस देश की हूं । मेरे परदादा चट्टोग्राम से आये थे आजादी से पहले। शरणार्थी बनकर जब ' बंगाल' का विभाजन हुआ था और फिर यहीं के हो गए थे। मैं चौथी पीढ़ी की हूं ।"
-"जो बोली तुम बोल रही हो वह कहां की बोली है ? बंगाल की ?"
-" जी नहीं ये चट्टोग्राम की बोली है । चट्टोग्राम अब बांग्लादेश में है । हमारे घर के बड़े बुड्ढे लोग यही बोली बोलते हैं । हमारा भी इसका अभ्यास है । थोडा-थोडा हिन्दी बोल लेती हूं । " ( उसने सारी बातें चट्टोग्राम और बांग्ला भाषा मिश्रित में की थी )
---"बंगाल में कहां रहती हो ?"
---" नैहाटी में ।"
--" यहां कैसे ?"
  --"पूजा पंडाल बनाने । पति साथ में है । दुर्गा पूजा उत्सव के लिए ढेर सारे लोग आते हैं  ।"
--" हां हां हर साल हम देखते हैं ढेर सारे लोग आ जाते हैं शहर में, पूजा से पहले ।"
---" कहां-कहां से आते हैं सब ? "
---" पंडाल के लिए बांसबेरिया, नबोद्वीप, नैहाटी कृष्णनगर, हुगली से आते हैं । ढाकी वाले वर्धमान में एकत्र हो आते हैं, पूजा से पहले । वहीं पहुंच कर लोग ले आते हैं । लाइटिंग के लिए चन्दननगर मशहूर है। और मिदनापुर से पुरोहित आते हैं । मगर बाबू आप इतना क्यो पूछ रहे हैं? "
--" ऐसे ही अपनी जानकारी के लिए और लोगों को जानकारी देने के लिए। बहुत से लोग जानना चाहते हैं, पूछते हैं । "
--" तुम्हरा क्या नाम है ?"
--" अनिता नस्कर । शादी से पहले हम सरकार लिखते थे ।"
--"अच्छा।"
--" बाबू आप फौज में है या पुलिस में ?"
--" कहीं नहीं। मैं अध्यापक था। क्या मैं पुलिस लगता हूं ?"
--" जी । बड़ी-बड़ी ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌मूंछे जो हैं ।" 
---" हर बड़ी और मोटी मूंछों वाला फ़ौजी या पुलिस में हो यह जरूरी नहीं है। अच्छा हम चलते हैं, बहुत दिनों के बाद बांग्ला बोलने का मौका मिला सो तुमसे बोल लिया, मन खुश हो गया।  इस शहर में पहले अनेक बंगाली रहते थे, धीरे-धीरे नौकरी-चाकरी के चक्कर में महानगरों में या विदेशों में चले गए। अब तो उंगलियों पर है । अच्छा चलता हूं । तुमलोग हमेशा खुश रहो, कुशल रहो ! "
                  थोड़े दिनों के बाद मैं बीमार पड़ा, गम्भीर हालत में अस्पताल पहुंच गया । ग्यारह दिन बाद छुट्टी मिली। ढेर सारी हिदायतें दी गई ।
बेटी कोलकाता से आ गई और देखभाल करने के लिए हमें ले गयी ।
              वहां कामवाली बाई को जब पता चला कि मेरा लिवर काफ़ी डैमेज हो गया है और मैं नियमित दवाइयां ले रहा हूं तो वह एक दिन दो बड़े-बड़े नींबू ले आयी और बोली " काकू ये तुम्हारे लिए ले आयी हूं । इसे रोज एक खाया करो लिवर ठीक हो जाएगा ।"
-" यह क्या है देखे-देखे ! अरे यही फल तो हमारे पार्क में होता है । वहां किसी को मालूम ही नहीं है कि ये खाने की चीज़ है और उपकारी है ।"
वो बोली " यह लिवर ठीक रखने के लिए बहुत लाभकारी है । जो लोग स्वस्थ रहते हैं वे भी खाते हैं, उन्हें जान्डिस नहीं होता । ये फल जाड़े में ही मिलता है लगभग दो महीने । "
--" थैंक यू । आज पहला दिन तुम काटकर खिलाओ देखे कैसे खाया जाता है ।"
एक दिन कामवाली बाई एक अखबार कटिंग लाकर इस फल के बारे में पढ़ने को कहा - " चीनी लोग क्या तोड़कर इकट्ठा कर रहे हैं? ( बाताबी नींबू के पेड़) क्लू- बहुत ही शानदार स्वाद और खुशबू वाला फल है।
 हमारे यहां ये हमेशा बेकद्री का शिकार रहा मगर अब चीन से सुंदर पैकिंग में आकर 200 रुपये का एक बड़े मॉल्स में बिक रहा है,मैं पिछले साल 10 रुपये का एक लाया था । इस साल मिला नहीं। जैसा कि पता चला ये चकोतरा है जो प्रायः लड़कियों के स्कूलों के पास, इमली, बेर,अमरख, कैथा आदि के साथ बिकता देखा जाता रहा है।बेहतरीन खुशबूदार फल है, मीठा होता है । नींबू प्रजाति का सबसे बड़ा फल है।"
              मैं दवाइयां तो लेता ही रहा इस नींबू का भी सेवन किया जब तक मिला ।  महीनों बाद स्वस्थ होकर मैं घर लौट आया ।
हफ्त़ा-दस दिन बाद पार्क जाना हुआ । अभी दुर्गापूजा होने में दो माह बाकी था। पंडाल बनने का काम शुरू हो चुका था । पार्क के अंदर चारों ओर किनारे-किनारे पैदल चलने के लिए पगडंडी बनी हुई है। चार राउंड चलने पर एक किलोमीटर हो जाता है । दो राउंड चलने के बाद तीसरे राउंड में मैं धीरे-धीरे चलते-चलते एक एक पेड़ को निहारने लगा। अचानक मेरी निगाहें थम गईं । अरे ! नींबू के पेड़ कहां गए ? यहीं पर तो थे ! हां इसी बेंच के पीछे । नहीं दोनों नहीं है । अब वहां दो अन्य पेड़ बड़े हो रहे हैं।
   बेंच पर बैठे-बैठे मैं कभी पेड़ों को देखता तो कभी पंडाल बना रहे ऊपर बल्ली पर बैठे मजदूरों को देखता।
            किसी न किसी भाव ('कनसेप्ट ') पर हर साल पंडाल बनाया जाता है। पिछले साल बना था दक्षीणेश्वर, उससे पहले बना था रामकृष्ण परमहंस का गांव ' कामारपुकुर ', इस साल सुना है ' विवेकानंद मेमोरियल' बनेगा । इस साल दुर्गा पूजा का स्वर्ण जयंती समारोह है ।'
              मैं बैठें-बैठे सोच रहा था कि सारे के सारे पेड़ अपने स्थान पर है किन्तु नींबू के पेड़ क्यों उखाड़ दिए गए ?
              अचानक एक मज़दूर आकर हाथ जोड़कर खड़ा हो गया फिर चरण स्पर्श किया ।
---" तुम्हें मैंने पहचाना नहीं ।"
----" अनिरुद्ध नस्कर । अनिता नस्कर का पति ।
पिछले साल आपने अनिता से नींबू के पेड़ के बारे में बात की थी । याद आया ?"
---" हां हां याद है। अनिता किधर है ? आज आई नहीं ?"
             वह रो पड़ा । रोते-रोते बोला --" अब वह कभी नहीं आएगी । मार डाला गुंडों ने । "
---" मार डाला ? क्यो ? कब ? कैसे ? क्या हुआ था ?"
---" बाबू यहां जो ' बाताबी नींबू ' के पेड़ थे वह दो दिन एक एक नींबू तोड़कर घर ले गयी थी । मेरे बेटे को कोरोना हो गया था तब से लिवर कमजोर हो गया था........ अनिता के मरने के पांच महीने बाद बेटा भी हमें छोड़कर मां के पास चला गया।"

       वह और भावुक हो गया । बोला -" तब यहां पंडाल बनना शुरू भी नहीं हुआ था । एक दिन  दोपहर को वो अकेली आयी थी । दो नींबू तोड़कर एक छोटी थैली में भर चुकी थी..." कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगा फिर कहा-" बोलो आगे बोलो ।"
उसने कहा-" पता नहीं उसी समय कहां से दस-बारह लड़के उसके पास पहुंच कर बोलें " तुम ससुरी बंग्लादेशी चोरी करती हो ? "
डांट-फटकार कर झोला छीन लिया फिर वह भीड़ हमलावर हो गई । वे अनिता को मारते-मारते बोले-" साली रोहिंग्या बांग्लादेश से आई है, गंदगी फैला रही है । एक मजदूर ने जो बांस बल्ली की रखवाली कर रहा था कई  बार कहा कि वह बंगाली है, बंग्लादेशी नहीं है किंतु किसी ने उसकी बात ही नहीं सुनी । अनिता थर-थर कांप रही थी । किसी तरह भाग निकली । किसी ने पीछे से उसे धक्का मारा, वह आठ सीढ़ी नीचे फुटपाथ पर जा गिरी थी । वे सब लात घुसा मारकर भाग गए थे। घंटों पड़ी थी वह सड़क किनारे । ख़बर पाकर हम जब पहुंचे तो वह मर चुकी थी।"
--" थाने में रिपोर्ट लिखवाई थी ?"
-- " पुलिस ने जन्म प्रमाण-पत्र मागा था ।"
--" मैंने कहा हमलोग काम पर निकलते हैं प्रमाणपत्र साथ नहीं रहता । आप रिपोर्ट लिखिए सर जांच करिए । वो बोला सबूत है तुम्हारे पास ?
मैंने कहा एक मजूर ने देखा था मगर वह कह रहा है कि वह किसी को नहीं पहचान पाएगा सब एक जैसे लग रहे थे, सब लाल लाल गमछा सर पर बांधे हुए थे । पुलिस ने हमें डांट कर भगा दिया। बोला भाग नहीं तो तेरे को अंदर कर दूंगा । तुने ही मारा होगा । "
मैं लगभग सदमे में पहुंच गया । मैंने कहा"ईश्वर अनिता की आत्मा को शांति दे !" 
--"‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ बाबू पहले हम भी ईश्वर को बहुत मानते थे ।" 
वह फूट-फूट कर रोने लगा। उसका रुदन थमने का नाम नहीं ले रहा था । 
थोड़ी देर और मैं रुकता तो शायद मैं भी रो पड़ता।


© सुभाषचंद्र गांगुली 
31/03/2023
( 'कहानी कहानियां पार्क की'' के अंतर्गत 18/03/2023 से शुरू 20/04/2023को खत्म हुआ)
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