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Tuesday, November 9, 2021

लघु कथा- इल- मैनर्ड


दोपहर का वक्त । कपड़े की दुकान में में एक माडर्न दिखती युवती अपने ढाई तीन साल के बेटे के साथ दाखिल हुई । महिला का नाम मुझे मालूम नहीं है। इस कथा के लिए उसका नाम रखता हूं वंशिका । और उसके बेटे का नाम रखता हूं अंकित । अल्ट्रा माडर्न दिखती वंशिका हरियाली तीज के लिए साड़ी खरीदने आयी है। 
साड़ियां देखते-देखते वह फाइन, बेटर क्वालिटी, हायर रेंज, गॉडि, लाइट शेड, टच आदि जिन अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग सामान्यतः कपड़ों की दुकानों में होती है वही सारे शब्द अंग्रेज स्टाइल से बोलती । कदाचित अपने बेटे को नो ओ नो, शिट बोलती है । बोलते समय कन्धों को उचकाती और कभी कभार बायें हाथ की उंगलियों को  खुले बालों पर फेरती ।
अंकित  कब तक स्थिर रहता ? वह हिलता- डुलता, दुकान में इधर से उधर आता जाता । कभी कहीं खड़ा रहता तो कभी मम्मी के पास बैठता, वो भी साड़ी खींचता, देखता । और वंशिका उसे कहती 'डोन्ट डू सिली', 'कीप क्वायट', ' जस्ट सीट डाउन 'कह कर अपने पास बिठाती । 
जब अंकित एक साड़ी पकड़ कर खींचता और सिल्क साड़ी सरसर नीचे गिर जाती तो वंशिका उसे जोर से अंग्रेजी में ही डांटती । दुकान में मौजूद सब लोग उधर देखते और उन सबकी निगाहें देख कर वंशिका झेंप जाती है और अंकित को तरेर कर देखती ।
अंकित सहम जाता है । वंशिका आहिस्ते से कान उमेठ देती । 
अंकित झूंझलाकर चीख उठता । फिर जोर से रोने लगता । वंशिका ने कहा ह्वाट नानसेंस । कीप क्वायट ।
सेल्समैन कहता "अरे मैम रहने दीजिए, बच्चा है, मैं उठा लूंगा । लो बच्चा टाफी खाओ ।"
अंकित लपक कर ले लेता । उसे देख वंशिका और क्रुद्ध होकर। जोर से कान उमेठ कर हिन्दी में कहती " नालायक तुझे समझाया था न कि बाहर कायदे से रहा करो । इल मैनर्ड कहीं का ।"

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