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Wednesday, June 14, 2023

कहानी: बेटी


दफ्तर के लिये तैयार होकर बनर्जी बाबू नीचे उतरे और बेटी रानी से बोले "खाना लगाओं।"

-"अच्छा, बैठिये।” कह कर रानी किचन में चली गई। बरामदे में खड़े-खड़े बनर्जी बाबू अखबार देखने लगे। रानी अचानक ऊपर चली गई फिर बनजी बाबू की नज़र बचा कर किचन में घुस गई। चीनी, चावल, आटा, तेल आदि कुछ सामान ऊपर के कमरे में रखना पड़ता था। रानी क्या लाई होगी? बनर्जी बाबू ने सोचा? एकाध मिनट बाद रानी की दीदी भी दनदनाती हुई नीचे उतर कर किचन में पहुँच गई। फिर बड़े वाले कमरे से फ्रिज खोलकर एक कटोरी निकाली और वह भी पिता की नज़र बचा कर किचन में चली गई।

क्या बात है दस मिनट बीत गए, मगर अभी तक खाना नहीं परोसा गया क्या कर रही है ये लड़कियाँ? आज कुक नहीं आई। हर शुक्रवार वह संतोषी माता का व्रत रखती है शुक्रवार छुट्टी। सुबह स्कूल जाने से पहले मिसेज बनर्जी खाना बना कर गई थी फिर देर होने का कारण?

बनर्जी बाबू सोच रहे थे कि किचन में जाएं या न जाएं कि दोनों बहनों की दबी जुबान में बहस सुनाई दी। बनर्जी बाबू के किचन में पहुँचते ही दोनों बहने एक साथ बोल पड़ी-"बैठिये, अभी ला रही हूँ।'

बड़ी बेटी चूल्हे पर एक ओर रोटी सेक रही थी और रानी दूसरे चूल्हे को बगल में खड़ी थी। रानी रूँआसी थी। बनर्जी बाबू ने पूछा- क्या बात है?" बड़ी में जवाब दिया- "माँ ने रानी से कहा था चावल पका लेना, दाल और सब्जी रखी है पर वह सजने-धजने में लगी रही। आपके निकलने के बाद हम लोगों को भी सी०जी०एच०एस० जाना है मगर वह अभी से सजने लगी-फिज में आटा था। में रोटी बना रही हूँ। जल्दी ही जाएगी।"

दीदी की बातों से खिन्न होकर रानी बोली-"मैं भूल गई" थी ना, कहाँ सज रही थी?" बनर्जी बाबू बोले- "कोई बात नहीं रोटी खा लूंगा" कह कर बनर्जी वायू किचन के बाहर निकले ही थे कि रानी रोने लगी। बनर्जी बाबू का दिल धक्क से धड़का। उन्होंने पैरों को वापस खींचा और पूछा- "क्या हुआ? बात क्या हुई?" रानी तब भी रोये जा रही थी। उन्होंने ऊँची आवाज़ में कहा- “क्या हुआ? कुछ कहोगी भी?" फिर बड़ी बेटी से पूछा- "तुमने डॉटा है क्या?" रोते-रोते रानी बोली-"इतनी देर में चावल पक जाता। दीदी ने भात बनाने नहीं दिया। मूंग की दाल और दो मेल की तरकारी है। सारे आइटम भात से खाने के हैं आप रोटी के साथ कैसे खायेंगे? - माँ ने कहा था पर मैं भूल गई थी।”

बनर्जी बाबू भावुक हो उठे। उनकी आँखे नम हो गई। उन्होंने सोचा, अब रानी की सम्वेदना को कुचल कर दफ्तर नहीं जाया जा सकता, दिन भर मन में अशांति बनी रहेगी। मगर मीटिंग ?-मीटिंग सीटिंग चलती रहेगी। कौन सी आफत आ जाएगी। अगर वे मीटिंग में न पहुँचे? बाकी लोग तो रहेंगे ही और अगर उनका रहना उतना आवश्यक है तो बड़े साहब उनके पहुँचने का इंतज़ार कर लेंगे या मीटिंग बाद में रख लेंगे। दफ्तर में देर से पहुँचने का कोई बहाना ढूंढ लिया जायेगा। आधे दिन का सीएल अप्लीकेशन दे दिया जाएगा।

बनर्जी बाबू ने कहा- "नहीं, रानी ठीक कह रही हैं। सारे आइटम भात से ही खाने वाले हैं। मैं भात खाकर ही जाऊँगा, तुम बनाओ। मुझे ख्याल नहीं था, अभी-अभी याद आया है कि मीटिंग तो कल है।"

बनर्जी बाबू भात खाकर दफ्तर पहुँचे। उन्होंने अपनी कहानी सहकर्मी मित्र हरीश जी को सुनाई। सुनते-सुनते हरीश जी भावुक हो उठे और कहानी खत्म होते ही बोले -"पिता से इतना प्यार कोई बेटी ही कर सकती है। वही रख सकती है उनकी पसंद का इतना ध्यान....

आज मेरे पास भी दो बेटियाँ होती! सोनोग्राफी से जब पता चला था कि कोख में लड़की है तो मैंने एवारर्शन करवा दिया था...एक ही लड़का है... बीस वर्ष का. ...हरीश जी की आँखों से दो-चार बूँदे गालों पर लुढ़क गए।


- सुभाष चंद्र गाँगुली 
( "मोक्षदायिनी" कहानी संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2021)

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