समय बदलता है >
वह आदमी जो अपने 'मन के भीतर' ही रहा करता था, घर के बाहर वाले कमरे या ड्राइंगरुम तक आते- आते बदल जाया करता था , आज वही भीतर का आदमी बाहर निकल आया हैं अपने मूल स्वरूप में ।कोई आवरण नही, कोई लुका छिपी नहीं । जैसा उसका स्वभाव, जैसा व्यवहार, जैसी सोंच घर के भीतर , जैसा संस्कार मिला, उसी रूप मे वह खड़ा है समाज मे । जाति धर्म, ऊंच-नीच,गरीब -अमीर ,,कट्टर - मुलायम आदि आदि । आज जो स्थिति है, नामुमकिन न सही बहुत मुश्किल लग रहा है उसे सम्भालना, क्योंकि अब बलात्कार, हत्या,माॅब लिंचिग से हो रही हत्याओं के समर्थक भी सीना तानकर खड़े हो गए हैं । गुनहगारो को माला पहनाया जा रहा है, निर्दोष अपराधी बन सजा काट रहा है,ज्ञानी शिक्षित की खिल्ली उडा रहे तैयार की गई विशेष भीड़ । राजनीति, अर्थव्यवस्था , सामाजिक संगठन, टीवी सीरियल, मीडिया ( गोदी) सब वैसा चल रहा है जैसा पूंजीवाद चाहता है । ** अब हमें इंतजार करना होगा उस दिन का जब जनता अपने विवेक से पूछेंगे कि बड़ी दिखती बहुत छोटी सी जिंदगी को वे थोपी गई नफरत के कारण मार-काट, खून-खराबा में गंवा देंगे या कि सुख शांति से मानवीय मूल्यों के साथ बिता देंगे । समय बदलता है । इतिहास गवाह है।जय हिन्द !