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Sunday, October 18, 2015

कविता- मौत आती मेरे पीछे





मौत आती  मेरे पीछे
ज़िन्दगी मेरे पीछे पीछे।।

अगर कहीं मैं जी गया
कहीँ बुढ़ापा देख लिया
नाना बनकर कहानियाँ सुनाई
बचपन कहीँ मेरा लौट आया।
मौत आती मेरे पीछे
ज़िन्दगी मेरे पीछे पीछे।।

आतंकवादी  मेरे पीछे
गोले हथगोले मेरे पीछे
कट्टरपंथी मेरे पीछे
कट्टा- पत्थर मेरे पीछे।
मौत आती मेरे पीछे
ज़िन्दगी मेरे पीछे पीछे।।

नन्हे - बूढ़े चले संग संग
बारूदी सुरंग करे रंग भंग
मैं बेचारा जग का प्यारा
फूलो से भी डरा डरा
अपनों से ही अब टक्कर
कैसा है ये अब चक्कर।
मौत आती मेरे पीछे
ज़िन्दगी मेरे पीछे पीछे।।

काश कहीँ मैं जी गया
हरी का नाम कुछ जप लिया
क्या कुछ जाने मैंने खोया
मरकर जी कर न पाया
ईश्वर अल्लाह की साया
शीतल तरुवर मनोरम छाया।
मौत आती मेरे पीछे
ज़िन्दगी मेरे पीछे पीछे।।


© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)
___________________
लेखापरीक्षा प्रकाश-- अप्रैल- जून 1992

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