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Wednesday, June 14, 2023

कहानी: पोता


"पोता बड़ा या नाती? कर्कश स्वर में लम्बी-चौड़ी कद-काठी के दादाजी ने तीन वर्ष के पोते अमन को प्रश्न किया। प्रश्न को समझने की कोशिश की मुद्रा में अमन दादाजी का मुंह ताकता रहा।

दादाजी ने अपना प्रश्न दुहराया।

थोड़ी देर बाद उन्होंने दूसरा प्रश्न किया-'पहले पोते का नम्बर आता है या नाती का?... बोल पोता बड़ा है या नाती? बोल बात तो कर सकता है ना? 

वैसे ही अमन दादाजी की भारी भरकम आवाज़ से कदाचित सिहर उठता है, उन्हें देख कन्नी काटता, अब वह ज़रा सा भयभीत होकर अवाक् दृष्टि से दादाजी को देखने लगा।

अमन का हाव-भाव देख दादाजी को गुस्सा आया। उन्होंने पुनः दूसरे ढंग से उसी प्रश्न को 'दुहराया जो उनके मन को कुछ दिनों से कचोट रहा था। उन्होंने पूछा- 'बोल में अच्छा आदमी हूँ या तेरा नाना?' 

-'नाना। नाना। अमर ने तपाक से उत्तर दिया फिर 'नाना' 'नाना' कहके उछलने लगा। दरअसल उसे नाना की याद आ गयी।

दादाजी को और बुरा लगा। उन्होंने कहा-'मैं जो तुमसे इतना प्यार करता हूँ मैं अच्छा आदमी नहीं हूँ? गंदा हूँ?' 

-'गंदा, गंदा' बोलकर अमन पीछे पलटा फिर इधर-उधर घूमते-दौड़ते 'गंदा' 'गंदा' रट लगाता रहा मानो उसे एक नया खेल मिल गया हो। अब वह खुशमिज़ाज, मस्त बच्चा दिखने लगा।

दादाजी को अब सचमुच में गुस्सा आ गया। उनका चेहरा लाल-पीला होता गया। वे कुछ ऊँची आवाज़ में बोलने लगे-'पाँच दिन के लिए आकर नाना चला गया वह ज़्यादा प्रिय हो गया और मैं जो रोज़-रोज़ भाग कर अपने पोते से मिलने आ रहा हूँ, टॉफी देता हूँ, कपड़ा-लत्ता देता हूँ में कुछ नहीं? मैं गंदा हूँ?... अमन बीच मैं बोल पड़ा-'गंदा' 'गंदा' 'गंदा', दादाजी बोलते गए 'बुद्ध कहीं के तू इस घर की औलाद है, इस खानदान के परिचय से तेरा परिचय है, तेरा परिचय मेरे नाम से है, मेरे बेटे के नाम से है, नाना-बाना का कोई नाम नहीं लेता.. बाप-दादा का नाम लेगा तभी तुझे वैध संतान माना जाएगा। याद रख पहले पोता, नाती नहीं, पहले दादा नाना नहीं।'

दादाजी ने अपनी भड़ास निकाली, जिसे सुनाना था सुना दिया। उधर अमन अपनी ही धुन में मगन था। कभी कागज पर लकीरें खींचता, कभी दौड़कर माँ को छूकर आता तो कभी बारजे पर बैठे कबूतरों से बातें करता।

दादाजी एकबारगी उठ खड़े हुए फिर अमन की कलाई पकड़कर बोले-'पता नहीं तेरे नाना ने तुझे कौन सा पाठ पढ़ाया, कौन सी घुट्टी पिला दी कि तू बेईमान बन गया है... बेईमान । 

अमन ने अपनी कलाई छुड़ा ली फिर ऊँची आवाज़ में बोला- मैं बेईमान नहीं, मेरा नाम अमन है, अमन।'

-नहीं तू बेईमान है, बेईमान ।' 

-'मैं अमन हूँ। मेरा नाम अमन है। अमन वर्मा, याद रहेगा ना। पूरी ताकत के साथ अमन ने कहा।

दाँत पीसते हुए दादाजी बोले- 'मुझे तेरा नाम याद रहेगा मगर तू याद रख पहले दादा फिर नाना, पोता बड़ा होता है नाती नहीं। फिर उन्होंने आहिस्ता से अमन को एक तमाचा जड़ दिया। अनचाहे तमाचा चेहरे की जगह गर्दन पर पड़ गया और कुछ जोर से पड़ने के कारण अमन फर्श पर गिर पड़ा। गिरते ही वह फूट-फूट कर रोने लगा। फिर चीख उठा- 'मम्मी! देखों, दादाजी ने गिरा दिया... दादाजी ने मुझे मारा।'

अमन की माँ चम्पा तनफनाती हुई किचन से निकल आयी, अमन को गोद में उठाकर घूँघट संम्भालती हुई बोली-'बहुत देर से बकवास किए जा रहे हैं आप, अस्सी के क़रीब उम्र है, मगर इतना ज्ञान नहीं हुआ कि किससे क्या बात करनी चाहिए...इतने छोटे बच्चे से जाने क्या-क्या बके जा रहे हैं... उसे क्या पता पोता क्या होता है और नाती क्या। बच्चा तो बच्चा होता है, यह भी नहीं मालूम आपको.... वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ आजकल पोता और नाती में कोई भेद नहीं मानता, संतान चाहे बेटे की हो या बेटी की, मा-बाप के लिए दोनों समान है। कानूनन भी लड़का लड़की दोनों बराबर । 

ससुरजी ने अपना आपा खो दिया-'बहू। यही सिखाया तुम लोगों ने मेरे पोते को... तुम्हारे बाप का कोई बेटा नहीं है तो उसने यह मंत्र दिया तुम्हें और तुम्हारे बेटे को? अपना पोता होने से रहा तो अब नाती को हथियाना चाहता है।' 

चम्पा का चेहरा तमतमा उठा। उसने कहा- मेरे पूज्य ससुरजी मैं कोई गंवारू, अनपढ़, बेजुबान छोरी नहीं हूँ कि आपकी बेसिर पैर की बातों पर आँसू बहाऊँ। लखनऊ शहर की प्रतिष्ठित परिवार की पढ़ी-लिखी लड़की हूँ. आप तो मंदिर- वंदिर  जाते हैं, पूजा-पाठ करते हैं, प्रवचन सुनते हैं। जात-पात, ऊँच-नीच सब मानते हैं, संस्कारों के बारे में भी खूब ज्ञान बघारते हैं तो आपको इस बात का भी ज्ञान होगा कि जो पिता कन्यादान नहीं कर पाता उसके हाथ का जल शुद्ध नहीं माना जाता. ...आप लड़कियों को इतनी हीन दृष्टि से देखते हैं इसीलिए ऊपर वाले ने आपके घर लक्ष्मी नहीं भेजी, ऊपर वाला अपात्र को दान नहीं देता। आप अपनी जीवन भर के लिए गंदी, दकियानूसी सोच मेरे बेटे पर न घोपिए कच्चा घड़ा है... रही बात मेरे पिताजी की तो सुनिए दो बेटियों के बाद उन्होंने ऑपरेशन करवा लिया था, अगर उन्होंने फैमिली प्लैनिंग न करवायी होती तो उनके भी सात-आठ बच्चे होते, हो सकता मेरे भी चार-पाँच भाई रहते। लड़के जन्में तो इसमें आपका कोई कमाल नहीं है।" 

ससुरजी का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वे चीख उठे-बहू तुम हदें पार कर रही हो। उम्र में मैं तुम्हारे बाप से ढेर बड़ा हूँ, तुम्हें मर्यादा में रहकर बात करनी चाहिए। कुछ नहीं तो सामने वाले की उम्र का लिहाज तो करना ही चाहिए। तुम्हारे बाप ने इतना भी नहीं सिखाया?'

चम्पा ने अपना आपा खो दिया। उसने उसी तेवर में कहा-'बाबूजी मैं आपसे कह देती हूँ अब अगर आपने मेरे पिता के बारे में उल्टा सीधा कहा तो... जब से व्याह के ससुराल आयी हूँ जाने कितनी मर्तबा आपने पिताजी के बारे में भला-बुरा कहा। मेरे पिताजी यूनिवर्सिटी में इंगलिश के प्रोफेसर हैं, उनका काफी मान-सम्मान है, आप उनके सामने कहीं नहीं ठहरते। आपके मन की भावनाओं को ये अच्छी तरह से समझते हैं, इसी कारण से वे कभी भी मेरे यहाँ नहीं आते रहे। शादी हुए ग्यारह साल बीत गए, इस फ्लैट को लिए हुए छह साल अमन भी तीन साल का हो गया है मगर पिताजी ने यहाँ न आने के लिए हमेशा कोई न कोई बहाना ढूंढ लिया। आप ही के बेटे ने कई बार आग्रह किया था तब जाकर वे आने के लिए तैयार हुए थे। इतनी बार दामाद ने न कहा होता तो शायद वे कभी नहीं आते। और उसकी वजह हैं आप, आपकी दकियानूसी सोच।

ससुरजी बोले- बहुत पाँच चलने लगी है तुम्हारी को आज मैं बेटे से तुम्हारी शिकायत करता हूँ। तुम्हें नसीहत देने की जरूरत है। 

चम्पा बोलती गयी जब देखिए तब अमन को डाँटते हैं आप पोते को इतना कोई डाँटता है भला। गुस्सा मेरे पिता पर है या मुझ पर मगर निकालते हैं मेरे बेटे पर... न जाने कितनी बार अमन ने आपसे रिमोट कंट्रोलवाली कार माँगी, आपके पास रूपए की कमी नहीं है, सैकड़ों रूपए इधर-उधर बाँटते फिरते हैं मगर पोते को एक रूपए की टॉफी थमाकर सोचते हैं बहुत कर दिया, पोता आपका पालतू हो जाएगा, दुम हिलाकर आपके आगे-पीछे घूमेगा और उसके नानाजी को देखिए जिस दिन वापस जा रहे थे नाती के कहने की देर नहीं हुई कि उन्होंने पर्स झाड़कर पच्चीस सौ रूपए निकाल दिए, अपने पास रास्ते के लिए मात्र सौ रख लिए थे। रास्ते में पैसे की कमी के कारण असुविधा न हो इसलिए मैंने पाँच सौ रूपए जबरदस्ती वापस कर दिये, वे नहीं ले रहे थे, मैंने कहा आप मनी आर्डर कर दीजिएगा। मनी आर्डर आता होगा। अब तक मोटर कार आ गयी होती मगर मेरा ही मार्केट जाना नहीं हुआ, ऐसे ही अमन नाना को याद नहीं करता। नानाजी पाँच दिन में अमन को जितना प्यार दे गये उतना प्यार आप इतने दिनों में नहीं दे पायें।'

चम्पा की जुबान चालू थी। वर्षों का जमा गुबार खाली हो रहा था। आँसू की धार भी बह रही थी- ससुरजी अब धीरे-धीरे, शान्त भाव से डगों को बढ़ाते हुए फाटक तक आ पहुँचे। दो कदम आगे बढ़कर चम्पा ने विनम्रता से कहा- बाबू जी ! बाबूजी! रुकिए... बाबूजी! आइ एम सॉरी...बाबूजी ज़रा सुनिए ना...बाबूजी !...

ससुरजी पीछे पलटकर बोले-'अब सुनने और कहने के लिए बचा ही क्या बहू" ।ससुरजी फाटक से निकल गए। 

चम्पा फाटक पर खड़े-खड़े आँसू बहाती रही, बिलबिलाती रही।

करीब डेढ़ घंटे बाद सास का फोन आया तो पता चला अमन के दादाजी घर नहीं पहुँचे। चम्पा ने कहा वे तो बहुत देर हुआ निकल गये। शायद रास्ते कोई मिल गया होगा। फिर एक घंटे बाद सास का फोन। अब चम्पा चिन्ता में पड़ गयी। मात्र दस मिनट का रास्ता किधर चले गये? फिर भी ढांढस दिलाती हुई सास से बोली, 'पहुँच जाएंगे, चिन्ता की क्या बात। कोई मिल गया होगा। घर पहुंच जाए तो मुझे खबर कर दीजिएगा। चिंता लगी रहेगी।'

समय गुजरता गया। दिन ढल गया। साँझ भी उतर आयी। दादाजी निखोज । जहाँ कहीं भी आना जाना था, पुराने यार-दोस्त जहाँ वर्षों से आना-जाना भी न था सभी जगह पता लगाया गया। अमन के पिता, चाचा इधर-उधर घूम-घाम कर घर लौट आये। जहाँ जहाँ खबर की गयी थी अब वहाँ से भी फोन आने लगे।

सबसे ज़्यादा हैरान-परेशान हो गयी चम्पा वह अपनी सुध-बुध खो बैठी। ससुरजी उससे रूठ कर घर से निकले थे उस बात की जानकारी पति को देने का क्या अंजाम हो सकता है इस कल्पना से वह सिहर उठती, गला सूखने लगता। चुप रहने में ही उसने अपनी भलाई समझी। 

साँझ भी ढल गयी। रात के करीब आठ बजे घर पर अमन के पिता और चाचा पिता को ढूंढने की तरकीब पर माथापच्ची कर रहे थे कि तभी दादाजी गम्भीर मुद्रा में आ पहुँचे। दोनों बेटे एक साथ जवाब-तलब करने लगे। पिता ने डाँट लगायी चुप रहो मैं तुम्हारा बाप हूँ या तुम लोग मेरे बाप हो?  बेकूफी करते हो मैं कोई बच्चा हूँ जो इधर-उधर दस जगह पूछताछ करते हो।'

दो मिनट बाद अपार्टमेन्ट का गार्ड एक बड़ा पैकिंग बॉक्स लेकर दाखिल हुआ। पैकिंग खोली गयी। एक बड़ी मोटर कार निकल आयी।

दादाजी ने अमन से कहा, 'देखो, क्या लाया हूँ। रिमोट कंट्रोलवाली मोटरकार है। मँहगी है। तुम सायकिल जैसा पैडल मार कर भी चला सकते हो।' कार देख अमन कूदने लगा।

दादाजी ने कार के भीतर अमन को बिठाते हुए पूछा- 'दादाजी अच्छा आदमी है या गंदा? 

अमन ने हाजिर जवाब दिया- 'गंदा गंदा।' 

अमन का सारा ध्यान मोटरकार पर था। वह गाड़ी चलाने की कोशिश में जुट गया। चम्पा की आँखे नम थी।

दादाजी की बाँछे खिल उठी।

- सुभाष चंद्र गाँगुली 
( "मोक्षदायिनी" कहानी संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2021)

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