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Tuesday, August 22, 2023

मालिक

सुबह-सुबह कॉल बेल बजती, ग्राउंड फ्लोर के कमरे में सो रही बेटी सरिता उठकर फाटक का ताला खोल देती, महरी मालती भीतर आकर हाथ-पैर धोकर किचन में चाय का इंतजाम करती। चाय खौलाते खोलाते वह किचन में लगा स्विच दबाती जिससे ऊपर मिसेस पंत के कमरे में लगी घंटी बज उठती। मिसेस पंत स्कूल जाने की तैयारी करने लगती और मिस्टर पंत बिस्तर पर लेटे-लेटे चाय व अख़बार की प्रतीक्षा करते।

मालती चाय के साथ-साथ मिसेस पंत के लिए स्कूल का टिफिन भी तैयार करती और जब दोनों तैयार कर लेती तब वह फाटक के पास जाकर देखती, अख़बार पड़ा हुआ दिखता तो उसे उठा लेती, अगर नहीं दिखता तो वह सरिता के कमरे में झाँकती। सरिता अगर अखबार पढ़ती नज़र आती तो मालती उससे माँगती और फिर एक ट्रे में चाय, बिस्किट और अख़बार लेकर और कभी सिर्फ चाय व बिस्किट लेकर ऊपर मिसेस पंत के कमरे में दाखिल होती। मिस्टर पंत बेड टी लेते और चश्मा पहनकर अखबार देखते। यह रोज का किस्सा था।

कदाचित अखबार न देख मिस्टर पंत पूछते-'अभी तक अखबार नहीं आया मालती कभी कहती 'जी नहीं। कभी कहती दीदी पढ़ रही है; दीदी नहीं छोड़ रहीं।

'नहीं छोड़ रही है सुनते ही मिसेस पंत दनदनाती नीचे उतरती फिर बेटी से माँग कर या कभी छीन कर ले जाती। जबरदस्ती करने पर सरिता अख़बार दे देती किंतु बड़बड़ाती 'क्या जरूरी है कि पापा ही सबसे पहले अखबार पढ़े और हम लोग सबसे बाद में? थोड़ी देर बाद पढ़े तो क्या बिगड़ जायेगा ?"

मिसेस पंत उसे अनसुनी कर देती बल्कि यूँ कहूँ कि वह बेटी के मुँह नहीं लगती।

उस दिन नींद टूटते ही मिस्टर पंत ने पत्नी से पूछा-'अखबार नहीं आया?'- मालती ला रही होगी? पत्नी ने कहा, -पे कमीशन की रिपोर्ट छपी होगी, आज ही छपनी चाहिए देखना है क्या मिला, कितना फायदा हुआ, सरकार ने कुछ दिया भी है या ऐसे ही...'

'अच्छा देखती हूँ' कहके मिसेस पंत नीचे उतरी फिर लौटते समय मालती को

सहेज आयी कि जैसे ही अखबार आये ऊपर पहुँचा दे।

चाय लेकर जब मालती जाने लगी तो उसने देखा सरिता अखबार में डूबी हुई है उसने अखबार मांगा तो सरिता ने देने से इन्कार कर दिया। दाँये हाथ में ट्रे थामे बायें हाथ से मालती ने पूरा अखबार खींच लिया और तेज डगों से ऊपर पहुँची। पीछे-पीछे गुस्से से लाल सरिता ऊपर पहुँचकर अपना गुस्सा झाड़ा-'मम्मी ! आपने इसे इतना सिर चढ़ाया कि इसने मेरे हाथ से अखबार छीन लिया... अच्छा नहीं लगता इसका बेहूदापन समझा दीजिए।'

-'तो क्या ? कौन सी आफत आ गयी ? मालती तुमसे कितनी बड़ी है तुम पाँच साल की थी जब वह आयी थी। ऐसे कहा जाता है? तुम्हारे पापा को पढ़ना रहता है यह रोज-रोज कहना क्यों पड़ता है ?' मिसेस पंत ने तार सप्तक में कहा। - 'क्या जरूरी है कि हम सब रोजाना बासी अख़बार पढ़े? हमें भी कभी-कभार

खास ख़बर का इन्तजार रहता है, हम पाँच मिनट पढ़ ले तो क्या बिगड़ जायेगा ?"

सरिता तर्क में जीतना चाहती थी।

मिस्टर पंत स्तब्ध। क्या बोले बोले भी या चुप रहे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर बोले 'ठीक है पढ़ ले बाद में दे जाना ।'

मालती हक्की-बक्की बल्कि कुछ सकपकायी सी दरवाजे के कोने में खड़ी माँ-बेटी की बातें सुनती हुई। सरिता अपनी बातें माँ को सुनाती मगर उसकी क्रोध भरी आँखे मालती की ओर रहती। बगल वाले कमरे के दरवाजे को ढकेल कर मिसेस पंत ड्रेस पहनने में जुट गई।

नीचे उतरते हुए सरिता ने अपना सवाल दुहराया- 'रोज पापा पहले अखबार पढ़े यह कहाँ का नियम है। कहाँ लिखा है? उन्हें दफ्तर जाना रहता है तो हमें भी तो कालेज जाना रहता है, मैं तो थोड़ी देर में ही निकल जाऊँगी। पता नहीं कहाँ का नियम है। आपके हर नियम केवल लड़कियों के लिए। भईया के लिए कोई नियम नहीं, उसके लिए सब छूट है।'

सरिता के सवाल का जवाब मालती ने दिया-पता नहीं कॉलेज मा आप का लिखा पढ़ी करत ही इत्ती अकिल नाही है कि घर का मालिक को पहिले अख़बार पढ़े चाहि, चाहे फल हो या परसाद हो कुच्छी हो हर चीज पहिले मालिक को ही दे चाही। लड़कियन से ही घर मा शान्ति रहत हैं। नियम मान के चलवो तो तोहरे घर मा शांति बनी रही। मालिक का सनमान देइवो तो तुमहू सनमान से रहो।' -अब मुँह बंद रखों, बहुत बोल चुकी। याद रखना तुम नौकरानी हो, मालकिन नहीं।'

गुस्से से लाल सरिता बिना नाश्ता किए समय से पहले ही सायकिल उठाकर घर से निकल गयी।

मिसेस पंत मालती को समझाती रही कि दीदी बड़ी हो गयी है, जमाना बदल रहा है, सरिता की बातों का वह बुरा न माने।


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