Search This Blog

Friday, October 8, 2021

लघु कथा- एक जिन्दा था

गंगा नदी के ऊपर लम्बे ब्रिज पर यात्रियों से ठसाठस भरी टेम्पो ( तीन पहिया वाहन) ओवरटेक करने के चक्कर में, एक  ट्रक से टकरा कर पच्चीस-तीस फिट नीचे कछार पर जा गिरा । जोर का धमाका हुआ । धमाके की आवाज़ सुनकर सारे लोग उधर दौड़े जिधर हादसा हुआ था ।
चारों ओर अफरा तफरी मच गई । थोड़ी देर के लिए आवागमन बाधित हुआ। देखते देखते सड़क पर लम्बा जाम लग गया ।
कोई देखने के लिए रुका तो कोई जाम की वज़ह से रुका रहा ।
इस बीच ट्रकवाला तेजी से चलाकर भाग निकला और लगभग दो किलोमीटर दूर स्थित टोल टैक्स वसूली अवरोध को भी पार कर गया ।
कछार पर गिरे हुए लोग दर्द से कराह रहे थे, कुछ लोग चीख रहे थे और मदद की गुहार लगा रहे थे।टेम्पो पर सवार ज़्यादातर लोग छिटक कर इधर उधर गिर पड़े थे । टेम्पो धू-धू कर जल रहा था ।  ड्राइवर समेत दो लोग टेम्पो के नीचे दब गए थे । वे बुरी तरह झुलस गए थे । अन्य लोगों की हालत गंभीर थी, दो लोगों के चेहरे जख्म़ और ख़ून से विभत्स हो गये थे । शायद वे भी आंखिरी सांस ले रहे थे ।
ब्रिज के पश्चिमी छोर पर ढलान से उतरकर ऊबड़-खाबड़ मैदान और दलदल में लगभग आधा किलोमीटर चलकर पांच छः लड़के घटनास्थल पर पहुंचे ।
किसी ने पर्स निकाला, किसी ने जेब-थैला टटोल कर जो कुछ मिला निकाल लिया, किसी ने अंगूठी उतार ली तो किसी ने घड़ी उतारी ।
एक घायल जवान आदमी के गले से एक लुटेरा जब सोने का चेन खींच रहा था तब उसने लुटेरे की कलाई पकड़ ली । लुटेरे ने बड़ी मुश्किल से ख़ुद को छुड़ाया फिर उसके मुंह और पेट पर लातें जमा दी, घायल के मुंह से खून निकलने लगा और उसने दम तोड दिया ।
एक अन्य लुटेरे ने एक की पहचान कपड़ों से कर, कपड़ों के भीतर रूपए पैसे जो कुछ था लूटा, वह मरा हुआ था, पहले उस पर थूका फिर शव पर उछल कूद किया ।
ब्रिज के ऊपर से कुछ लोग लूटेरों को लाचार और असहाय होकर देख रहे थे  । बीच-बीच में कोई न कोई रोष प्रकट कर रहा था । 
एक चायवाले ने हादसे की सूचना थाने में दे दी । 
लगभग आधे घंटे बाद नीचे कछार पर पुलिस आती हुई दिखाई दी।
अचानक दो लोगों ने ऊपर से ही चीत्कार किया - " भागों भागों पुलिस पुलिस आ रही है  ...... भागों पुलिस..... " और मिनटों में सारे लूटेरे उत्तर दक्षिण की ओर से भाग निकले ।
ऊपर से किस किस ने लूटेरों को पुलिस के आने की सूचना दी थी, पता न चला । वे  भीड़ में से थे और भीड़ में खो गए । 
किसी ने कोशिश भी नहीं की जानने की कि वे कौन थे । 
पता चला वे किसी पार्टी का वर्कर था, और जिन लूटेरों को  पुलिस आने की ख़बर दी थी वे लूटेरे भी उसी पार्टी के वर्कर थे ।
ब्रिज के ऊपर भारी संख्या में जो एकत्र हो गए थे वे उफ्फ !  उफ्फ ! चू ! चू ! करके दु:ख व्यक्त कर रहे थे लोग । अब मदद की गुहार नहीं सुनाई दे रही थी और भीड़ छंट रही थी धीरे धीरे-धीरे ।
इतने में अचानक एक पुलिस वैन आकर ब्रिज पर जहां से टेम्पो गिरी वही खड़ी हो गई। 
पुलिस देख ज़्यादातर लोग दायें-बायें देख खिसक गये । आठ दस लोग भाग न सकें और पुलिस ने उन्हें घेर लिया । पूछताछ करने लगीं।
पुलिस ने एक एक से पूछा । लोग उत्तर देते गये ।
------ " पता नहीं । मैं वहां था । आवाज सुनकर आया था । एक ने कहा।
----" सर मैं तो अभी अभी आया । "दूसरे ने कहा।
-----" मेरे सामने कुछ हुआ नहीं । " तीसरा बोला।
एक ने कहा " तखत़ पर बैठा चायवाले ने थाने में फोन किया था उसे मालूम है ।" 
चायवाले ने कहा " मैं तो इतना दूर बैठा हुआ हूं , मैंने कुछ नहीं देखा, अपने काम से फुर्सत नहीं साहेब ......."
------" तुम्हींने फोन किया था और साले तुमको मालूम नहीं ?" 
-----" साहेब हमने फ़ोन जरूर किया था आवाज़ सुनकर हम डर गये थे । रेलिंग टूट कर टेम्पो नीचे गिरी थी यही जानते है हम । "
जहां रेलिंग टूटी थी उससे थोड़ी दूर पर फुटपाथ पर बैठे एक मछली वाले को पूछने पर , उसने कहा " मुझे कुछ नहीं मालूम । मैंने गौर नही किया।"
मछली वाले और चायवाले को पुलिस पकड़ कर ले गयी । बोले "चल वहीं बयान देना । " ंं
बहुत देर तक आवागमन बाधित था । वाहनों को ब्रिज के बाहर रोक दिया गया था । तीन चार किलोमीटर लम्बा जाम लग गया था। उसका असर पूरे शहर पर पड़ था । पूरे शहर में जगह-जगह जाम लगा हुआ था ।
मगर आराम से क़रीब डेढ़ घंटे बाद एक दमकल गाड़ी घंटा बजाता हुआ, उसके पीछे कूड़ा ढोने वाला एक छोटा ट्रक और सबसे पीछे एक क्रेन  ब्रिज पर आते देखा । सभी लोग अचरज होकर उधर ही देखने लगे।
नीचे कछार का दृश्य दर्दनाक था । टेम्पो पूरा-पूरा जल चुका था । ढांचाभर रह गया था । और उसी के बगल में दो लोगों के शरीर कंकाल होकर पड़
 हुए थे । सारे लोगों के चेहरे विभत्स हो चुके थे । दूर से कौन मृत कौन जीवित पहचान पाना मुश्किल था । खून जो बहे थे अब काले पड़ चुके  थे । 
पांच छः कुत्ते घटना-स्थल पर पड़े हुए शरीरों को थोड़ी दूर से देख सूंघ कर दूर हट गये थे.......रह रह कर वे रो रहे थे ।
दमकल कर्मियों और क्रेन की सहायता से एक एक आहत और मृत शरीर को उठा कर ट्रक पर रख दिया गया । 
ट्रक के आगे सीटीनुमा हार्न बजाती हुई पुलिस की जीप और फिर बाकी वाहन चल निकले आहिस्ता आहिस्ता । अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था ।
ट्रक में फेंके गए लोगों में से एक ने हाथ हिलाकर अलविदा का संकेत दिया । 
उस दृश्य को देखकर भीड़ विचलित हो उठी किन्तु सभी स्तब्ध हतप्रभ ।गाडियां आगे चलती गयी ।
एक बूढ़ा पूरी ताकत से चीख उठा " एक जिन्दा था...... एक जिन्दा था ......" 
उसकी चीख अनसुनी रह गई । उसकी आवाज कौओं के कांव कांव, गाड़ियों की आवाज में खो गई ।

सुभाष चन्द्र गांगुली
--------------------------
' लघुकथा अंक '--' अविरल मंथन'अंक १५ में 'चीख' शीर्षक से
सितम्बर २००१ में प्रकाशित ।
सम्पादक--राजेन्द्र वर्मा ३/२९ विकास नगर, लखनऊ
 

No comments:

Post a Comment