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Wednesday, January 11, 2023

कहानी- बुड्ढे को मरने दो


उस रोज अपने मोहल्ले में चम्पा की शादी थी।

शादी घर में दूर-दूर से रिश्ते-नाते आये हुए थे। सुबह से स्टीरियो फुल वॉल्यूम में बज रहा था। घर के बाहर खुली जगह लड़के-लड़कियाँ गाने के साथ-साथ तालियों पीट कर डान्स कर रहे थे।

उधर सामने बगल वाले घर में नब्बे वर्ष के वृद्ध दादाजी की हालत बहुत खराब थी। मौत दरवाज़े पर दस्तक दे चुकी थी। वे अन्तिम साँसें ले रहे थे। बाहर के रिश्तेदारों, शहर के परिचित लोगों को तबियत ख़राब होने की ख़बर दे दी गयी थी, फिर भी परिवारजन हिम्मत नहीं हारे थे। दादाजी को बचाने का पुरजोर कोशिश कर रहे थे। डॉक्टर नर्स घर पर थे। दादाजी को आक्सीजन दिया जा रहा था।

पड़ोस का शोरगुल पड़ोसी को रास नहीं आ रहा था। दादाजी ने भी दो-दो बार विरक्ति प्रकट किया था। घर की बहू ने एक बार रिक्वेस्ट किया था कि साउन्ड बन्द कर दे। मगर उन लोगों ने अनसुना कर दिया था। आखिरकार दादाजी के पोते और कई लोगों ने मिलकर स्टीरियों बन्द करने का अनुरोध किया।

कहने की देर नहीं कि लड़की का भाई चीख कर बोला 'नहीं बन्द होगा।' उसके ना बोलते ही दादा जी का पोता भड़क उठा। बहस होने लगी। लड़की का भाई झगड़ने लगा। डान्स करने वाले लड़के भी झगड़े में शामिल हो गये। काँव-काँव में किसी को किसी की बात सुनाई नहीं दे रही थी। भीड़ देखकर भीड़ बढ़ने लगी। बाजा बजाने वाला भी स्टीरियो बन्द कर भीड़ में खड़ा हो गया। तब कहीं समझ में आया मामला क्या है। पाँच-सात मिनट बाद ही दादाजी के पोते निराश होकर वापस घर के भीतर चले गये। उनके साथ भीतर से निकले अन्य दो लोग तमाशा देख रहे थे।

फिर लड़की का भाई, नाचने गाने वाले बच्चों तथा एकत्रित भीड़ आपस में ही उलझ गए। सबकी राय अलग-अलग थी। किसी ने कहा बाजा बजाना चाहिए किन्तु साउन्ड धीरे कर दिया जाए। एक ने कहा 'अभी बन्द कर दिया जाए बाद में बजाना।' एक ने कहा 'दिन भर के लिए बन्द रखो रात को जब बारात आयेगी तब बजा लेना किसी ने कहा 'अमे यार छोड़ो पास पड़ोसी के दर्द का ख्याल रखना चाहिए फिर वे तो पूरे मोहल्ले के दादाजी हैं। एक बूढ़े ने कहा, 'हमारे टाइम में ये सब शोर मचाने वाले बाजे नहीं थे, शहनाई बजती थी शान्ति से शादियों होती रही। जितना-जितना पैसा होता जा रहा है, दिखावा बढ़ता जा रहा है।' बुड्ढ़ा बीमार या जवान बीमार, कौन मरा कौन जी रहा किसी को फर्क नहीं पड़ता। कितना बुरा वक्त आ गया। 'हे राम'

इस बूढ़े की बात सुन कर लड़की के भाई गुस्से से बोला- 'स्टीरियो किसने बन्द किया? बजाओ नहीं थमेगा कौन रोज-रोज शादी होती है। धूमधाम से शादी होगी. ...बुड्ढे को मरने दो!"

लगभग आधा घण्टा अनावश्यक हो हल्ला हुआ। पता नहीं क्यों लोग गुस्सैल और झगड़ालू होते जा रहे हैं। असहिष्णुता बढ़ रही है। अपने बचपन में मैंने ऐसी घटना न घटते देखा था और न ही सुना था बल्कि मुझे याद है एक बार ऐसा हुआ था कि दुर्गा पूजा मैदान के पास एक बुजुर्ग महिला का देहान्त हो जाने के कारण एक दिन दिन भर लाउडस्पीकर नहीं बजा था, रात को नाटक भी नहीं खेला गया था। ऐसा ही कहीं न कहीं हुआ करता था।

दोपहर बारह बजे दादा जी ने प्राण त्याग किया। दो बजे तक अर्थी उठने की बात हुई। चूंकि दादा जी प्रतिष्ठित व्यक्ति थे तथा उस मोहल्ले के पुराने वाशिन्दे थे, उनकी मौत की ख़बर आग की तरह फैल गई और देखते-देखते सैकड़ों लोग श्रद्धान्जलि के लिए आ पहुँचें। भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी। छोटा सा मैदान पूरा भर गया। कहाँ शादीघर, कहाँ स्टीरियो डान्स कुछ अता-पता न था।

दादाजी के पोतों ने अपने प्रिय दादाजी की अन्तिम यात्रा को स्मरणीय बनाने के लिए ताम-झाम किया। दादाजी के शव को एक खुले वाहन पर रखा गया। मिनटों में फूलों और फूल मालाओं से लाश ढक गया। गाजे-बाजे के साथ राम-नाम सत्य है, हरि का नाम सत्य है नारों के साथ शव यात्रा शुरू हुई। अपार जनसमूह लम्बी कतार में पीछे-पीछे चलने लगा। बीच-बीच में आहिस्ता-आहिस्ता चलती मिनी ट्रक के ऊपर से दो लोग फल-फूल, मखाने, बतासे, खजूर, चौअन्नी, अठन्नी, एक रूपए के सिक्के लुटाते रहे। लूट की चीजों को बटोरने की होड़ में लड़को बच्चों में आपस में छीना झपटी, हाथापाई भी होती रही।

दाह-संस्कार सम्पन्न होते ही मैं अपने घर के लिए रवाना दिया। मेरा घर दादाजी के मकान से कुछ ही 'दूर था। रात आठ बजे का समय था। गली में प्रवेश करते ही अजीब सा सन्नाटा देख में सिहर उठा। शादीघर में किसी प्रकार का हलचल नहीं, कुछ झालर जरूर जल रहे थे मगर गाना-बजाना गायब। एक कुत्ता बार-बार जबड़ा फैलाकर रोने जैसा आवाज निकाल रहा था जिससे एक लड़का इतना चिढ़ रहा था कि वह बार-बार ढेला मारकर उसे भगाने की कोशिश कर रहा था। कुल मिलाकर अजीब सा गमगीन वातावरण था जनमानव शून्य कोलाहल विहीन निस्तब्ध कफ्यू-ग्रस्त रातों की तरह लगने वाली एक रात।

अकुलाहट से मेरे दिल की धड़कने तेज हो गयी। तेज उगों से में चम्पा के घर पहुंचा। मैंने घंटी बजायी। एक अपरिचित व्यक्ति बाहर निकले। उससे मालूम हुआ कि चम्पा के पिता को ब्रेन हैमरेज हो गया था। गम्भीर हालत में उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। आईसीयू में रखा गया था। थोड़ी देर पहले उन्होंने दम तोड़ दिया था। उनकी उम्र मात्र पैंतालीस वर्ष थी।

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
( "मोक्षदायिनी" कहानी संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2021)

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