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Monday, May 8, 2023

बहू का स्वार्थ


         जाड़े का मौसम । दोपहर का वक्त़। मीठी-मीठी सर्द हवा और सुनहरी धूप तन-मन को सुकून दे रहा है। पार्क लगभग खाली है ।
        मैदान के चारों ओर क्यारियों में खिले रंग- बिरंगे फूल देखते ही बनता है।‌‌ मैं इधर देखूं या उधर समझ में नहीं आता कि मैं किधर देखूं । कितना मनभावन ! पार्क के बीचों-बीच एक लैम्प पोस्ट है, पूरा पार्क तो क्या एक किलोमीटर दूर तक एक दर्जन हैलोजेन लाइटें रोशनी बिखेरती हैं । इस समय एक नीलकंठ ( नीले कंठ एवं नीले डैनों वालवाला पक्षी। ) आकर लैम्प पोस्ट पर बैठा । बड़े दिनों के बाद इस पक्षी का दर्शन हुआ । टीवी टावर और मोबाइल टावर के लगातार फैलते रहने से ढेर सारे पक्षियों का दर्शन दुर्लभ हो गया है।
नीलकंठ के बैठते ही एक आदमी कहां से तेज डगों से चलकर लैम्प पोस्ट से थोड़ी दूरी पर रुक गया फिर दोनों हाथों से पक्षी को नमस्कार किया । इसकी गर्दन नील होने के कारण सामान्य मान्यता है कि नीलकंठ महादेव का प्रतीक है ।
दूसरी छोर पर झूला और झाड़ी के पीछे से निकल आई एक महिला। लगता है कि आज उसके साथ वह वृद्ध व्यक्ति जिनका हाथ पकड़ कर वह महीनों से ले आती रहीं, टहलाती रही, नहीं आये हैं । उसके साथ दो-ढाई साल का बच्चा जिसका नाम है सोनू ,मुझे देखते ही दूर से नन्हे-नन्हे पांवों से दौड़कर मेरे पास आता है, कभी हाथ पकड़ कर टहलाता तो कभी मेरे पास बैठ कर मेरी गल-मुच्छों पर हाथ सहलाता । अपना पोता तो नहीं है, नाती है पर वह भी सात समंदर पार रहता है, बच्चे के कोमल स्पर्श से मुझे अद्भुत सुखानुभूति होती है । शायद हर दादा-दादी, नाना- नानी को भी सुख की अनुभूति इसी तरह होती होगी। सोनू फिर मेरे पास दौड़ा चला आ रहा है । 
सोनू की मम्मी ने अत्यंत भक्तिभाव से  नीलकंठ को नमन किया ।
नीलकंठ वहां से उड़कर विशाल आंवला वृक्ष पर बैठ गया।
साल में एक बार कार्तिक महीने में आंवले लगने पर महिलाएं उस वृक्ष की पूजा करती हैं। वेदों में प्रकृति की पूजा पर विशेष बल दिया गया है क्योंकि प्रकृति हमारी मां है।
सोनू अब मेरे पास आ पहुंचा । हाथ पकड़ कर मुझे उठाने लगा । 
मैं उठने के मूड में नहीं था चूंकि मैं कहानी ढूंढने आया था, ध्यान लगाकर सारी चीजों को याद करना चाहता था मगर सोनू अपने इरादे में अडिग था । बच्चे के आगे ‌‌‌‌हार मानना ही था सो उठ गया उसकी हाथ थामे । वह जिधर ले जाना चाहता था, मैं उधर ही चलने लगा ।
इधर-उधर घुमाकर सोनू मुझे झाड़ी के पीछे जहां उसकी मां बैठी थी, ले गया । खड़ी होकर सोनू की मां ने मेरा चरण स्पर्श कर स्वागत किया। फिर बोली -"अंकलजी  बैठिए। आपको बाबूजी बहुत याद कर रहे थे। आप काफ़ी दिनों से दिखाई नहीं दिए । मैंने सोनू से कहा था वह आपसे कह दे मगर बदमाश आपको पकड़ कर ले आया ।"
मैंने कहा -" नहीं नहीं सोनू बहुत प्यारा बच्चा है ।"
-" अंकलजी यह लड़का दिनभर नकदम किए रहता है।"
मैंने हंसते हुए कहा--" ये तो अच्छी बात है । बच्चे जितना उछल-कूद करेंगे उतना ही हेल्थ ठीक रहेगा। ...कहां है आपके बाबूजी ?" 
-"आज नहीं आयें, बोलें इच्छा नहीं है । अंकल पहले आप बैठ जाइए न !"
मै बेंच पर बैठ गया । सोनू झूला झूलने लगा । मैंने पूछा -" बाबूजी आपके कौन हैं ? पिता या ससूर ?"
--"वे मेरे ससुरजी हैं । फौज में सिपाही थे । पांच साल पहले रिटायर हुए थे ।"
-"क्या नाम है आपका ? कहां रहती हैं ?"
-" मेरा नाम है प्रिया, यहीं अलकापुरम में 'त्रिपथगा ' अपार्टमेंट में अपना एक छोटा सा फ्लैट है। मेरा मायका धनवाद में है ,ससुराल उन्नाव में है।"
-" पति क्या करते हैं ?" 
-" सोनू के पापा भी आर्मी में हैं, सुबेदार मेज़र । उन्हे ज़्यादातर नॉन फैमिली स्टेशन में पोस्टिंग मिलती है । जब फैमिली स्टेशन मिलता है तब वे हम सबको ले जाते हैं । वैसे सालभर में एक बार लम्बी छुट्टी लेकर घर आ जाते हैं ।"
--" उन्नाव में कहां ? अपना घर है ?"
- " उन्नाव जिले के तहसील ' बांगरमऊ ' के अंतर्गत एक गांव में बाबूजी के नाम एक छोटा सा पक्का मकान है । दस बिघा खेत था । बाबूजी एकलौता बेटा थे। उनके पिता ने उन्हें उत्तराधिकारी बना दिया था । हमारी एक ननद है, उसकी शादी गांव में एक किसान परिवार में हुई थी।‌ बाबूजी बहुत अच्छे आदमी थे, उन्होंने दो बिघा जमीन अपनी बेटी के नाम कर दिए थे ।"
-"‌ बाबूजी के कितने बेटे हैं ?"
-"दो बेटे। सोनू के पापा छोटे हैं । बड़ा बेटा किसान हैं ।"
-" मतलब कि दो भाइयों के चार-चार बिघा खेत हैं । सोनू के पिता के नाम जो खेत है उसका देखभाल कौन करता है ? आप के जेठ जी ?"
-" जी नहीं । बाबूजी ने 'अधिया' दिया है ।"
-" हिसाब-किताब कैसे रखा जाता है, आपलोग जाते हैं क्या ?" 
--" नहीं । जिसे खेत दिया गया है वह ईमानदार आदमी हैं। जब खेत लहलहाता है या जब सूखा पड़ता है वह विडियो कालिंग करके दिखा देता है । समय-समय जानकारी देता रहता, रुपए भी ऑन लाइन भेज देता है । सोनू के पापा जब छुट्टी पर आते हैं तब एक-दो दिन के लिए 'बांगरमऊ' हो आते हैं ।"
--" बांगरमऊ में अब मोटा-मोटी सब सुविधाएं उपलब्ध हैं । अच्छा स्कूल-कालेज, बाजार, डॉक्टर । अस्पताल के लिए उन्नाव है ही बगल में । कानपुर भी दूर नहीं । आपका अपना मकान है, खेत है, गांव में खुली हवा छोड़कर यहां क्यो आ गयीं ?"
--" क्या बताऊं घर की बातें बताने में भी बुरा लगता है !"
-" नहीं-नहीं तब रहने दीजिए । मैंने तो यूंही पूछ लिया था।"
-" नहीं आप पिता तुल्य हैं , वैसे छिपाने वाली कोई बात नहीं । मेरे पिताजी धनवाद कोल माइंस में काम करते थे । उस समय मेरी उम्र उन्नीस साल थी । मै पिताजी के साथ उनके एक मित्र के बेटे की बहूभात में गयी थी । वहीं पर बाबूजी ने मुझे पसंद किया था । दो दिन बाद शादी की बात पक्की कर मेरे हाथ में शगुन दे गये थे । "
-" वाह इन्टरेस्टिंग ! क्या दामादजी ने नहीं देखा था ?"
-" देखा था न ! बाबूजी  व्हाट्स ऐप पर वीडियो कॉल कर दिखा दिए थे और बात भी करा दिए थे।"
-" कितने दिनों के बाद शादी हुई थी ?"
-" दो महीने बाद ।"
-" मात्र दो महीने बाद ?"
-" जी । मैंने तो बीए में एडमिशन ले लिया था, मैं शादी के लिए एकदम तैयार नहीं थी ।‌‌‌‌‌‌‌‌ पिताजी ने कहा कि यह रिश्ता घर चलकर आया है, लड़का अच्छा है, घर-दुआर सब अच्छा है ईश्वर की कृपा है, कोई डिमांड नहीं है । ईश्वर की यही इच्छा है, अकारण ठुकरा देना ठीक नहीं होगा । बाद में लड़का मिलने में दिक्कत हो सकती है ।"
-" रोचक कहानी है। बाबूजी अच्छे इन्सान है, दामाद भी अच्छा, तो परेशानी किस बात की 
   थी ?"
-" अंकल ! मेरे पिताजी बहुत साधारण नौकरी करते थे, वेतन कम था, शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थे । हमलोग दो बहन एक भाई है। बाबूजी का कोई डिमांड नहीं था फिर भी पिताजी जितना कर सकते थे, किए थे ।"
-" तो इस कारण से सतायी गयी थी ? किसने सताया था ?"
-" पहले सास सताती थी फिर इसी बात पर जेठानी सताने लगी थी । जेठानी के घर से काफ़ी रुपए मिले थे, सामान गहने भी मिले थे । मुझे बात-बेबात ताने उलाहने दिया करते "ग़रीब बाप की बेटी खाली हाथ चली आई है ऊपर से नखरें दिखाती है । सात जन्मों का फल है जो इतने बड़े घर में आ गई ।‌‌‌‌‌‌‌‌ इतने बरस बीत गए एक बच्चा भी नहीं दे पायी !" 
    
--"क्या बाबूजी कुछ नहीं बोलते थे ?"
--" कहते थे न ! तभी तो उतने दिनों तक मैं वहां रह पायी थी । वे मेरे पक्ष में खड़े रहते थे । उन्होंने मुझे अपनी ही बेटी मान लिया था । मेरे विरुद्ध कुछ भी सुनने को तैयार नहीं रहते थे। अक्सर इसी कारण मांजी से अनबन हो जाता था । सोनू के पापा जब-जब घर आते अपने कानों से घरवालों की बात सुनकर कहते -" दुःखी मत होना । सब ठीक हो जाएगा । भगवान के घर देर है अंधेर नही। " फिर उन्होंने वन बीएचके फ्लैट खरीदकर हमें ले गए । थोड़े दिनों के बाद मुझे मायके पहुंचा दिए थे । सोनू का जन्म वहीं हुआ था । "
--" बहुत अच्छा । आख़िरकार भगवान ने प्रार्थना सुन लिया ।"
--"  अंकल घर छोड़ने के बाद मुझे सबलोगों की बात बहुत याद आती रही मगर बाबूजी को मैंने बहुत ज़्यादा मिस किया । अक्सर बाबूजी का फोन आया करता। मेरे माता-पिता से वे मेरा हाल- चाल नियमित लिया करते थे ।
--" अच्छा ! बहुत भाग्यशाली हैं आप !"
--"जब मैं बेटे को लेकर उन्नाव में बाबूजी को दिखाने गई थी तो उन्होंने मेरे हाथ पकड़ कर इशारे से कहा था कि वे मेरे साथ रहना चाहते हैं । मैंने इनसे कहा कि मैं ले जाना चाहती हूं, उन्हें सेवा-सुश्रुषा की ज़रूरत है।  बाबूजी को, उनके बेटे ने हामी भर दी । हम अपने साथ ले आएं ।"
--" क्या हुआ था आपके ससुरजी को ?"
 --" पैरालिटिक अटैक हुआ था, बड़ी मुश्किल से उठ पाये थे, अभी भी बात नहीं कर पाते ।"
--"तभी मैंने दो-तीन बार हाथ जोड़कर नमस्कार किया था किन्तु वे केवल हाथ उठाये थे ।"
--" वैसे डॉक्टर बोल रहे थे कि थोड़े दिनों में साफ़-साफ़ बोलने लगेंगे ।"
--"अच्छा हम उठते हैं। भगवान सबको ऐसी बहू दें, आजकल ऐसी बहुएं मिलती कहां । "
--" अंकलजी ! उनके साथ रहने में मेरे ख़ुद का भी स्वार्थ है ।"
--" स्वार्थ ! वह क्या ?"
--" सोनू को दादा का भरपूर प्यार मिलता है, और मुझे बल मिलता है कि मैं अकेली नहीं हूं । अकेली रहती हूं तो अपने लिए खाना पकाने की इच्छा नहीं होती । सोनू डेढ़ साल तक दूध पर था, उसके लिए खाने की चिंता नहीं रहती, दिनभर टीवी सीरियल और पिक्चर, और मोबाइल ; कभी कुछ पका लेती, कभी कुछ मंगवा लेती । अब हमें नियम से रहना पड़ता है, बुजुर्ग आदमी समय से नाश्ता, समय से खाना, बिस्तर लगाना, बिस्तर उठाना, उनके साथ-साथ मेरा लाइफ भी डिसिप्लिन्ड हो गया है !" 
--" अच्छा लगा तुम्हारी दलील । बेटी चाहे जिस स्वार्थ से तुमने ससुर को साथ रखा, सेवा करती हो, बाबूजी का भरपूर आशीर्वाद तुम्हें मिल ही रहा है, तुमको मेरा भी भरपूर आशीर्वाद । 



© सुभाषचंद्र गांगुली 
31/03/2023
( 'कहानी कहानियां पार्क की'' के अंतर्गत 18/03/2023 से शुरू 20/04/2023को खत्म हुआ)
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