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Thursday, May 10, 2012

अनाज बचाओ ...कोई भूख से मर रहा है....


महात्मा गाँधी ने कहा था कि अगर आप अपनी खुराक से एक रोटी अधिक खाते हैं तो वह चोरी है, क्योंकि वह किसी और का हिस्सा है।

कुरान' में कहा गया है कि रात को सोने से पहले यह देख लें कि आपका  कोई पड़ोसी भूखा तो नहीं सो गया।

यह नेकी नहीं, मानव धर्म है। भोजन करने का अधिकार हर एक प्राणी को है उसे बर्बाद नहीं होने देना चाहिए। इसी कारण से अनेक लोग पशु-पक्षी, जानवरों को दाना-पानी देते रहते हैं।

इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि जब ज़रुरत से दो-तीन गुना ज़्यादा फसल पैदा हो तब हमारे पास रखने की जगह न हो, बोरी न हो इत्यादि अस्वीकार्य कारणों से हम राजनिती करें और फसल को बर्बाद होने दें।

जब मैं इण्टरमीडिएट में था मैंने हिंदी से अँग्रेजी में एक पैसेज का अनुवाद किया था। वह कुछ इस प्रकार था - एक किसान चावल के बोरे ऊँट पर लाद कर कहीं जा रहा था। चलते-चलते वह ऊँट को चावल खिलाता जा रहा था। मुमकिन है कि चावल के दाने लगातार सड़क पर गिरेंगे ही।
वह आदमी दर-दर रुकता नीचे उतरता, चावल बटोरता। फ़जीयत तो थी ही, उसे रास्ता पूरा करना भी कठिन लगने लगा। उसने ईश्वर से विनती की- हे ईश्वर! हमें इतना अनाज न दो। हम लोग मात्र दो प्राणी है। हमें ज़रूरत भर का अनाज दिया करो। तभी उसे आकाश से दिव्यवाणी सुनाई दी- तुम अनाज की कीमत समझते हो, उसका कदर करते हो इस कारण से अगली मर्तबा तुम्हें दो गुना अनाज दुँगा। तुम गरीबों को बाँट देना ताकि कोई भूखा न रहे।

मुझे याद है कि 'हरित क्रांति' से पहले हमारे देश में लाल-लाल छोटे आकार के गेँहू आते थे, रोटी भी लाल लगती थी, उसे प्राप्त करने के लिए राशन की दुकानों में घंटों लाइन लगानी पड़ती थी। 'राइट टू फ़ूड' बिल की ख़बर से मैं प्रसन्न हूँ किंतु जब टी-वी पर अनाज को अवहेलित तथा सड़ते हुए देखता हूँ, मर्माहत, भावुक हो जाता हूँ। कदाचित खाना खाते वक्त टी- वी में देखा अनाज का दृश्य आँखों के सामने आ जाता है तो रोटी का  टुकड़ा गले में फँसने लगता है, निगलने में तकलीफ़ होती है।

\जिन दिनों लाल रोटी खा रहा  था, लगातार तीन वर्ष देश सूखे के चपेट में था। बाबू जगजीवन राम जी के कृषिमंत्री बनते ही मूसलाधार बारिश हुई थी, अच्छा फसल आया था, फिर तो 'हरित क्रांति' आयी, कृषि एक उद्योग बना, कृषि ने बेहद प्रगति की, आज जो अनाज की बाढ़ है वह वर्षों की मेहनत का नतीजा है जिसका कदर हमें करना चाहिए।

देश में पानी की कमी होती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण हम फिर सूखे के चपेट में आ सकते हैं। अनाज सोने से भी मूल्यवान है।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज भी हमारी खेती बारिश पर आश्रित है, इतनी अनाज के बावजूद आज भी ईश्वर के बेशुमार संतान हमारे देश और पूरी दुनिया में भूख मारकर सो जाते हैं, दो वक्त की रोटी बहुतों के लिए सपना है।

- सुभाष चन्द्र गाँगुली

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