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Tuesday, May 8, 2012

कविता- डर





भीड़ से नहीं
भीड के सूनेपन से
डर लगता है

सूरज से नहीं
ओजोन के छेद से
डर लगता है

हथियारों से नहीं
लावारिस खिलौनों से
डर लगता है

काटों से नहीं
फूलों के हार से
डर लगता 

नक्षत्रों से नहीं
नक्षत्रों के ठेकेदारों से
डर लगता है

इन्सान  से नहीं
इन्सानियत के ठेकेदारों से
डर लगता है

महँगाई से नहीं
नेताओं के भाषणों से
डर लगता है

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

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