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Sunday, June 19, 2022

कविता : बाग़


न जाने किसने दूषित कर दिया है :
मेरे तन से ज्यादा प्यारे इस  बाग़ को !
न जाने क्यों कैसे गुम हो रही है ख़ुशबू
न जाने क्यों लगने लगे फूलों के रंग बदले-बदले : 
बेशुमार जंगली पेड़ उग आए हैं अनचाहे
बेशुमार फूलों का हार भी नहीं दे पाती है ख़ुशबू ।
पेड़ों को मजबूती प्रदान करने के लिए
मैं नियमित निराई-गुड़ाई करता हूं,
नित्य नया खाद ढूंढ लाता हूं :
जहां भी जो कुछ अच्छा दिखता उठा लाता हूं:
जाने किस चीज की जरूरत है मेरे बाग़ को: इतना तो मालूम है मुझे
कि कहीं न कहीं,कभी न कभी
वो खाद जरुर मिलेगा मुझे
जो लौटा लायेगा मेरे बाग़ की हरियाली
जंगली पेड़ों के जड़ों को नाश कर देंगी
और फिर खिल उठेंगे रंग बिरंगे फूल
फिर मिलेगी एक ही खुशबू नाना रंगों के मेल से ।

सुभाषचंद्र गांगुली
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- सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ की गोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

4 मार्च 1997
' जनप्रिय ज्योति ' त्रैमासिक 2000
म प्रकाशित ।

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