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Wednesday, June 29, 2022

कहानी- अफसर बेटा



आज सुबह-सुबह मोहल्ले में ख़बर फैल गई कि
बच्चूसिंह दर्जी के घर से बदबू निकल रही है , सड़क में घुमने वाले कुत्ते इकट्ठे होकर बारी-बारी भौंक रहे थे । सुबह से हल्की-फुल्की बारिश और हवा के चलते सड़ांध दूर-दूर तक फैल रही थी ।
किसी पड़ोसी ने फोन कर थाने में रिपोर्ट दर्ज़ कर दी है । ख़बर दिए हुए दो घंटे हो गए हैं।
सभी लोगों का मानना है कि बच्चूसिंह दर्जी और उसकी बीवी भीतर मृत पड़े होंगे । पुलिस आए दरवाज़ा खुले तो फिर पता चले ।

सड़क के कुत्ते रुक-रुक कर भौंक रहे हैं जो कदाचित रुदन जैसा लग रहा है । 
मोहल्ले के कुछ लोग कौतूहलवश घर से क़रीब सौ गज दूरी पर मजमा लगाएं हुए हैं । किसी ने मास्क लगा रखा था, कोई रुमाल या उंगलियों से बार-बार नाक बंद कर रहा था । 
बच्चूसिंह  मोहल्ले का सबसे पुराना आदमी और सबसे पुराना दर्जी भी । दो छोटे-छोटे कमरों का बहुत पुराना मकान, सामने थोड़ा सा ढका हुआ चबुतरा जहां बैठकर वह काम करता, और पीछे खाना पकाने के लिए थोड़ी सी जगह । हंसमुख, मिलनसार स्वभाव और कम  पैसों में अच्छा काम करने के कारण उसे ग़रीबों का काम खूब मिलता, धंधा ठीक-ठाक चलता । 
बच्चूसिंह तीन लड़के और एक लड़की के पिता थे । वह चाहता रहा बच्चे पढ़-लिख कर आगे बढ़ें लिहाज़ा उसने चारों बच्चों को  स्कूल भेजा, ट्यूशन लगाया मगर एक के सिवा सब छोड़-छाड़ कर बैठ गये । बेटी की शादी कर दी । दो बेटे कुछ न कुछ काम पर लग गये फिर शादी के बाद दोनों घर छोड़कर चले गए । 
एक बेटा जिसका नाम सुनिल था पढ़ाई-लिखाई में अच्छा था । पिता ने कहा था कि वह जितना पढ़ना चाहे वह पढ़ें । खर्च सम्भालने के लिए वह दर्जी अधिक से अधिक काम करता,नया पुराना जो भी काम मिलता करता, उसके काम में उसकी पत्नी भी हाथ बंटाती ।
तमाम कोशिशों के बाद बेटे को नौकरी मिली, विभागीय इम्तहान देने के बाद नौकरी के तीन साल बाद वह कार्यालय में अदना सा अधिकारी भी बन गया ।
बच्चूसिंह की खुशी का ठिकाना न था । वह बड़े गर्व से कहा करता " मेरा लाडला बेटा बड़ा आदमी बन गया । हम एक ग़रीब दर्जी हमारे घर में अफसर बेटा ! भगवान ने हमारा प्रार्थना सुन लिया । इससे ज़्यादा सुख और क्या होगा !"
थोड़े दिनों के बाद बेटे ने कोर्ट में शादी कर ली और सीधे आफिसर्स कालोनी के फ्लैट में रहने लगा । 
बच्चूसिंह जहां एकतरफ अफसर बेटे की तारीफ़ करते नहीं अघाते वहीं अफसर बेटे ने माता पिता भाई बहन किसी से कोई सम्बन्ध नहीं रखा ।

              समय और परिस्थितियों ने बच्चूसिंह दर्जी को उम्र से ज्यादा बूढ़ा और लाचार बना दिया था। आंखों से साफ़ - साफ़ देख नहीं पाता, दुर्बल हो जाने के कारण कैंची चलाने में कठिनाई होती  ।
इस कारण से उसे अब बहुत कम काम मिलने लगा और जो भी मिलता उसे भी जल्दी से नहीं कर पाता जिस कारण से धीरे-धीरे ग्राहकों की संख्या कम होती गई । पत्नी की मदद से कुछ छोटे-छोटे काम पायजामा, ब्लाउज़ पेटिकोट आदि बनाकर दो बूढ़ों को दो जून का खाना भी नसीब़ न होता ।
            कुपोषण, भूखमरी के चलते बच्चूसिंह  की पत्नी टीवी की मरीज़ बन गई। खांसी के साथ साथ मुंह से खून भी आने लगा । घर पर छोटा-मोटा सामान जो बिक सकता था, बेचकर बच्चूसिंह ने पत्नी को सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया । अस्पताल ने बारह दिन बाद छुट्टी कर दी । डाक्टर ने कहा मरीज़ को अच्छा भोजन, फल, अंडे दें , पूरा-पूरा आराम दें ठीक हो जायेगी ।

                अत्यंत निरुपाय होकर बच्चूसिंह अफसर बेटे की कालोनी में जा पहुंचा । ख़बर मिलने पर चौकीदार से अफसर ने कहा " बूढ़े से कहो बाहर चाय की दुकान पर जाकर बैठे, अभी हम आते हैं थोड़ी देर में।
थोड़ी ही देर बाद अफसर बेटा मोटरसाइकिल से बाहर निकल आया, सड़क पर पैर टेक कर एक मिनट बात कर लिया फिर चलते चलते बच्चूसिंह से कहा " दुबारा कालोनी में न आइएगा । प्रेस्टिज पंचर कर देते हैं ।"
अगले दिन से अफसर बेटे के घर से एक टिफिन खाना आने लगा। । साहब का चपरासी सायकिल से ले आता, बच्चूसिंह डिब्बा खाली कर धोकर उसी बैग में रख देता ।
यह सिलसिला महीने भर भी नहीं चला था कि एक दिन शाम हो गई खाना नहीं खाया । जब लगातार चार दिनों तक टिफिन नहीं आया और बच्चूसिंह को पास पड़ोस से मांग कर जो मिला खाना पड़ा तब वह एक दिन फिर आफिसर्स कालोनी में पहुंच गया । 
गार्ड ने जब घर पर खबर दी तो मेमसाब ख़ुद ही चल कर आ गई। 
फाटक के दूसरे छोर पर जाकर बोली " चार दिन ख़ाली डिब्बा लौटाया आपने, रुपए नहीं थे। अस्सी रुपए पहले दीजिए फिर आगे की बात।"
" इतनी कठोर न बनो बेटी ! परिवार चलाने, बेटे को लायक बनाने के फेर में अपने लिए दो रुपए नहीं बचा पाए। तुम्हारी सास को टीवी हो गया है....."
-" आपने जिन लोगों के लिए किया उनके पास जाकर गिडगिडाये, मैं तो ठहरी बाहरी, पति के आदेश का पालन करुंगी । और हां उनके दफ़्तर में न जाइएगा, यहां भी नहीं, फोन पर बात करिएगा। प्रणाम बाबूजी !"

मरता क्या न करता , फिर वह अपना ही तो खून है, उसकी मां मरने वाली है, नहीं किसी की बात नहीं सुननी है, बच्चूसिंह निकल पड़ा और पहुंच गया सीधे दफ़्तर। आर्डली ने पर्दा हटाकर कहा " साहब एक बुजुर्ग आदमी आपसे मिलना चाहता है, कह रहे हैं कि वो आपके बाप हैं।"
--"बाप नहीं बड़का बाप। भेजो अंदर, और सुनो जब तक ये नहीं चले जाते किसी को अंदर न आने देना। "
--" जी हुजूर ।"
बच्चूसिंह अंदर दाखिल हुआ। देखते ही बेटे का पारा चढ़ गया --" मना करने पर भी बात नहीं सुनते । ज़रा सा भी स्टेटस नहीं समझते । बताइए क्यो आये हैं ? क्या चाहिए ?"
-" बहू ने टिफिन देना बंद कर दिया है। "
-" कर्जा चुक्ता करिए फिर ले जाइए।आपही ने सिखाया था मुफ्तखोरी नहीं करनी चाहिए । टिफिन में सौ रुपए का खाना जाता है, आपसे बीस लिया जाता है । इतना तो कमा ही लेते हैं आप । और भी तो बेटे ने हैं मांगिए उनसे भी।न सबसे कहते हैं आपने ये किया वो किया, मेरे लिए खूब किया, बदनाम करते फिर रहे हैं शर्म नहीं आती ज़रा भी। कौन सा अलग काम किया, हर बाप करता है, मैंने मेहनत की, मेहनत का फल मिला । लीजिए सौ रुपए और सुनिए दुबारा मेरी नाक कटवाने न आइएगा ।"
--" अच्छा बेटा गलती हो गई है हमसे । क्या बताऊं अनपढ़ गंवार हूं बूढ़ा भी हो गया हूं समझ में कुछ आता नहीं । माफ़ करना अफसर बेटा अब गलती नहीं होगी खूब फूलों तरक्की करो, भगवान तुम्हें सबकुछ दें । "
-" उसी भगवान से अपने लिए क्यो नहीं मांग लेते । अच्छा चलिए अब ढेर काम है ।"
बच्चूसिंह की आंखों से आंसुओं की धार बहने लगे । वह चेहरा घुमाकर बाहर निकल आया ।
आर्डली के हाथ सौ रुपए का नोट देकर बोला-"‌‌ मेरे चले जाने के बाद तुम्हारे साहब को दे देना। वे मेरे हाथ में ज़बरदस्ती ठूंस दिए थे ।"
फिर तेज डगों से चलकर सीढ़ी से नीचे उतर गया।

आसमान साफ़ होने लगा था। धूप निकलने लगी। पुलिस जीप से उतरी । दरवाजा तोड़ा गया। उफ्फ ! भयंकर बदबू । जी मिचलाने लगा। पुलिस ने तलाशी शुरू की। भीड़ छंटने लगी।
थोड़ी सी तलाशी के बाद एक सुसाइड नोट मिला। उस कागज पर लिखा था -" हम-दोनों इच्छा से मरने का प्लान बनाया। कोई उपाय नहीं। हमारे परिवार के किसी को परेशान न किया जाए । हमारी आखिरी इच्छा है कि अफसर बेटा सुनील हमारे लाशों को न छुए और अब से कहीं भी वह किसका बेटा है लिखें या बोले ना ।"

© सुभाषचंद्र गांगुली
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Re written on 22--29 /06/2022
* पत्रिका रैन बसेरा, अहमदाबाद
05/1996 मैं तथा * पत्रिका
' पत्रकार सुमन ' प्रतापगढ़ में
1997 में प्रकाशित ।



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