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Thursday, June 9, 2022

कविता- काम

हवा का काम है
चलना
उसे क्या पता
किसके लिए खुशबू
और किसके लिए बदबू
कब कहां ढो ले जाती।
नदी का काम है
बहना
उसे क्या पता
किधर-किधर से बहती है
उसे क्या पता
किसके लिए वह सुख
किसके लिए दु:ख
का कारण बन जाती है ;
सूरज का काम है
ऊर्जा देना
उसे क्या पता
किसके लिए वह
देवता बन जाता है
और किसके लिए आग
उगलता है ;
माटी का काम है
जीवन देना
उसे क्या पता
किसके लिए वह धात्री है
और किसके लिए वह स्वर्ग है
किसके लिए वह कब
नर्क बन जाती है ;
कवि का काम है
सत्य के साथ रहना
उसे क्या पता
किसके लिए वह प्रिय
किसके लिए क्यो अप्रिय 
कब बन जाता है।

सुभाषचंद्र गांगुली
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10/5/2000

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