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Tuesday, May 8, 2012

कविता- हाल अपना ठीक है


ओजोन में छेद है
धर्मो में मतभेद है
देहरी में मनभेद है
महँगाई का खेद है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

दाल बिना थाल है
माछ बिना बंगाल है
तेल बिना तरकारी है
नाही कुछ दरकारी है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

बिना चरित मिनिस्टर है
बिना गणित एस्ट्रोलाजर है
बिना ईमान अफसर है
बिना वेतन डाक्टर है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

बिना पुछे कवि है
बिना पूजे रवि है
छाया ही छवि है
छवि ही विप्लवी है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

मन में तो डर है
तन किंतु निडर है
अपना ही देश है
अपने ही लोग है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

कानों में रुई है
जुबाँ पे सुई है
आँखो पे पट्टी है
धोखे की टट्टी है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

अयोद्धा का हिस्ट्री है
रामसेतू बना मिस्ट्री है
कैसी हुई सृष्टि है
किसकी कुदृष्टि है
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि ।

छक्कों की बौछार है
विराट की जय जयकार है
नेता सारे भगवान हैं
वाकई हम सब महान हैं
हाल अपना ठीक है
हरि बोल बोल हरि । ।


कोरोना महामारी है
वैक्सीन की मारामारी है
ऑक्सीजन की कालाबाजारी है
चोरी है सीनाजोरी भी जारी है 
हाल अपना ठीक है
हरी बोल बोल हरी । ।


             © सुभाष चंद्र गांगुली *              
    _________________________
Written in 1997
Revised twice. Latest in 2021

4 comments:

  1. A gr8 reflection of the contemporary Indian society as a whole .... Its a very good piece of work, Sir !

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  2. Thank you, I am inspired by such comment... it gives me impetus to go ahead.

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  3. indeed a good poem, big issues in simple words.

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