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Wednesday, June 16, 2021

कविता- द्वन्द्व


एक हाथ कहता 
कर्म करो
दूसरा कहता 
भरोसा रखो
एक पैर कहता
आगे बढ़ो
दूसरा कहता
पीछे रहो
एक नयन कहता
गौर करो
दूसरा कहता
नज़र अंदाज़ करो
एक कान कहता
तुमने सुना
दूसरा पूछता 
क्या कहा ???
एक दूजे के 
द्वन्द्व में
छूट गयी जिंदगी
मझधार में । 

© सुभाष चंद्र गाँगुली 
("भारत माँ कीगोद में" काव्य संग्रह से, प्रथम संस्करण: 2022)

5 comments:

  1. अखिल हिंदुस्तानी डिफॉल्ट नाम ले रहा है सरजी।

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  2. हौसला अफजाई करने के लिए धन्यवाद आपका अखिल जी।‌

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