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Sunday, August 8, 2021

कविता- पहाड़ और नदी

                 पहाड़ और नदी

वही है मेरा देश जहां है एक पहाड़
और है एक नदी

चलो ना मेरे संग !

पहाड़ की देह से चढ़ती है
अंधेरी रात और नदी से उतरती है भयंकर भूख ।

चलो ना मेरे संग !

इतने दिनों तक जो सहते आ रहे हैं अत्याचार/ कौन हैं वे ?
मुझे नहीं मालूम लेकिन वे मुझे बुला रहे हैं ।

चलो ना मेरे संग !

मुझे मालूम नहीं किन्तु वे जानते हैं मुझे
मुझे बुलाकर कहते " हम हैं सताए हुए " ।

चलो ना मेरे संग !

मुझसे कहते हैं वे : " पहाड़ और नदी के बीच
भुखमरी और यंत्रणा से त्रस्त है
अभागी तुम्हारी कौम
नहीं चाहते वे अकेले संग्राम करना
मित्र ! तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहे हैं वे "।

लाल गेंहू का क्षुद्र एक कण
आह ! कितना प्यार करता हूं मैं तुम्हें 
प्रियतमा मेरी !
संग्राम कितना ही कठीन क्यो न हो
जिन्दगी कितना ही कठीन क्यो न हो
तब भी तब भी तुम रहोगी मेरे पास ।

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* मूल पोलिश कविता : पाब्लो नेरुदा
* बांग्ला अनुवाद : असित सरकार 
* हिन्दी अनुवाद : सुभाष चन्द्र गांगुली


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