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Saturday, August 7, 2021

कविता- संतुष्टि


कभी कभी ख्याल आता
मुझसे ज्यादा  खुशनसीब है
वह गरीब,
वह कभी भुट्टा कभी खीरा
और कभी मुंगफली बेचता,
उसे बिच्छू डंक मारता
उसके बदन से ज़रा सा खून नहीं निकलता
उसके बदन पर खटमल सैर करता
उसे बिल्कुल पता नहीं चल पाता,
सामान झटक कर चील उड़ान भरता
वह सिर उठाकर मन ही मन मुस्कराता
वह गरीब कभी सत्तु खाकर
कभी रोटी प्याज,कभी दाल भात
तो कभी खाली पेट सो जाता है
फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान रहता
क्योंकि मुस्कराने के लिए
उसे सभ्य समाज से ट्रेनिंग नहीं लेनी पड़ी
जीवन की गूढ़ रहस्य जानने के लिए
उसे दर्शनशास्त्र का अध्ययन नहीं करना पड़ा
फिर भी उसे दर्शनशास्त्र का ज्ञान है
क्योंकि जीवन को उसने देखा है
बड़े करीब से देखा है
तभी शायद वह सबकुछ सहता है
तभी शायद उसके चेहरे पर संतुष्टि दिखती है।


सुभाष चन्द्र गांगुली
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12/41997
Revised on 7/8/2021

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