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Friday, August 6, 2021

कविता- बेटे की तमन्ना


उसे मालूम नहीं
कि उसकी तस्वीर मेरी डायरी में है,
बीस बरस से है ।
उसका बचपन उसकी यादें
कैद है मेरी आत्मा में ।
कहने को तो वह मेरा बेटा नहीं है,
मेरी आत्मा किन्तु उसे बेटा मानती है ।
मेरा अपना कोई बेटा नहीं है
मेरी दो दो बेटियां हैं,
उन्हें ढेर सारा प्यार देता हूं मैं,
उनकी शादी के लिए पाई पाई जोड़ता हूं 
विदाई के लिए खुद को तैयार करता हूं,
हरेक दिन खुद को तैयार करता हूं,
मगर व्यर्थ हो जाता है मेरा सारा प्रयास ।
प्रायः एक तूफान उठता है मेरे मन में
बेटियों को तो मेरे मकान से चले जाना है
चले ही जायेंगे वे ,
बेटे और बेटी का यह अंतर
मेरे हृदय को झकझोर देता है
अभेद्य वेदना छिन्न- भिन्न कर देती है मुझे ।
मेरी आत्मा मेरे तन से निकल कर,
डायरी की तस्वीर पर अटक जाती है ।
वह लड़का जिसे मैं बेटा मानता हूं
मुझे बहुत चाहता है ,
मुझे यकीन है कि वही बनेगा
मेरे बुढ़ापे का सहारा ।
प्रायः मैं एक सपना देखता हूं,
मेरा बेटा मेरे सिरहाने बैठा हुआ है
मेरे सूखे होंठों पर जल डाल रहा है,
मेरी चिता पर मुखाग्नि दे रहा है 
उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे हैं ।
मेरी डायरी में जब्त उस बेटे को
जो अब जवान हो चुका है ,
 मैं जानने नहीं देता 
मेरे मन में क्या है ,
उसे जानने नहीं देता
कि उसे कितना प्यार मैं करता ।
उसे मालूम नहीं है
उसके लिए क्या कुछ रख छोड़ूंगा,
उस डायरी में सबकुछ दर्ज है ।
उसे मैं कुछ नहीं जानने देता,
भय है मुझे उसे खो देने का ।
आखिर यही क्रूर सच्चाई उगलने के कारण
तमाम पिताओं ने खो दिया हैं न बेटों को ?
आखिर बेटे भी पराये हो जाते हैं ना ?
बेटे की अतृप्त तमन्ना
आखिरी सांस तक बनी रहेगी ।
मैं  बेटे को मरते दम खोना नहीं चाहता,
कोई भी पिता अपने बेटे से
अलग नहीं होना चाहता , 
" बेटा बेटा बेटा, मेरा बेटा !"
मैं चीख रहा था ।
            
             ( 2)

नींद टूटी तो देखा
मेरी आंखों के सामने दोनों बेटियां खड़ी थी
दूर दूर से अपने अपने ससुराल से आयी थी ।
बेहोशी हाल में मुझे दो दिन पहले ही
अस्पताल में भर्ती किया गया था ।
एहसास हुआ मुझे 
बेटीयां क्या होती है
बेटा-बेटी में भेद करना , थी मेरी मूर्खता ।
डायरी को गंगा में बहा दिया। 


सुभाष चन्द्र गांगुली 
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' काव्य गंगा ' दिल्ली में प्रकाशित जुलाई 1997 मे  तथा लघु पत्रिका ' साहित्य पारिजात ' फरवरी 1998 में प्रकाशित ।
 Revised on 8/8/2021





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