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Monday, August 9, 2021

कविता- सम्बोधन


मुझे मेरे नाम से जानना
धन्धे से नहीं
मुझे मेरे नाम से बुलाना
धन्धे से नहीं
यह धमकी नहीं
सिर्फ चेतावनी है ।

यह महज इत्तेफाक है
कि तुम जिस परिवार में जन्मे
वहां तुम्हारे लिए पलना था
चांदी का चम्मच था
पीठ के नीचे था मखमल,
और जहां मैं जन्मा
वहां मेरे लिए टाट था
प्लास्टिक का चम्मच था
और पीठ के नीचे था खटमल ।

किन्तु मित्र ! यह मत भूलना
जिस प्रक्रिया से तुम आये हो
उसी प्रक्रिया से मैं भी आया हूं :
वही माटी, वही हवा ,वही जल था
जो धरती ने तुम्हें दी थी
वही मेरे लिए भी थी
जाओ पूछो अपनी मां से
क्या वह उसी तरह नहीं छटपटायी थी
जिस तरह से मेरी मां छटपटायी थी ?
पूछो क्या उसने उसी तरह दूध नहीं पिलाया था
जिस तरह मेरी मां ने मुझे पिलाया था ? 
और हां क्या उस दूध के एक एक घूंट का रंग
मेरी मां के दूध के रंग से अलग था ?
मां से पूछो उसके लिए संतान क्या होती ?
पूछो अपनी मां से उसके लिए संतान क्या होती ?
पूछो संतान को गाली देने से उसे कैसा लगता है ?
मैं निर्बल हूं माना, 
कुछ नहीं कर सकता मगर
तुम्हें गाली देकर तुम्हारी मां को 
दुःखी तो कर ही सकता हूं न ?

तुम्हें तुम्हारी मां की शांति के लिए कहता हूं
मुझे मेरे धंधे से सम्बोधन न देना
मेरे लिए जातिसूचक शब्द का प्रयोग न करना
बेवजह मेरे मुख से गाली न निकलवाना 
मुझे मेरे नाम से जानना
मुझे मेरे नाम से बुलाना
और हां नाम के साथ 
श्रीमान / मिस्टर / जी लगाना न भूलना ।

सुभाष चन्द्र गांगुली
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3 अगस्त , 2021

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