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Sunday, August 8, 2021

कविता- भूल जाना चाहता हूं

         भूल जाना चाहता हूं

अगर कोई मुझसे पूछे कहां था अब तक मैं
तो मुझे कहना ही पड़ेगा" ऐसा ही होता है " 
सुनानी होगी पत्थर के नीचे छिपी/
माटी की कहानी ,
सुनानी होगी उस माटी की कहानी
बेहद धैर्य से / जिसने दे दी थी आहुति अपनी :
पंछी ने क्या खोया मालूम नहीं मुझे,
मुझे तो बस यही मालूम
पीछे एक समुद्र छोड़ आए हैं , 
और मेरी बहन फूट फूट कर रो रही थी,
न जाने क्यों अनजान हैं सारे रास्तें
न जाने क्यों गूंथा हुआ है दिन दिन से
न जाने क्यों उतर आती है / 
गहन रात्रि मेरे चारों ओर ?
न जाने क्यों बिछी हुई हैं इतनी सारी लाशें !
अगर कोई मुझसे पूछे कहां से आया हूं मैं
तो मुझे सुनानी होगी /
टूटी-फूटी असबाबो की कहानी,
सुनानी होगी दिल दहलाने वाली/
उन बर्तनों की कहानी,
धूल में मिल जाने वाली महान लोगों की कहानी
और शोकाकुल हृदय की कहानी ।

हरेक बात नहीं बनती स्मृति
वह पीला कबूतर अविस्मृत है जिसकी स्मृति
अश्रु बनकर आंखों से लुढ़कते हैं वैसे /
गले में उंगली डालने से लुढ़कते हैं जैसे, 
टप-टप  टप-टप पत्तो से कुछ रिसते जैसे,
वे उपज हैं हमारे दुक्खो के
वे अंधेरा हैं हमारे बीते हुए कल के ।

जो कुछ असंभव है हमें अच्छा लगता,
अच्छा लगता चालाक चंचल पंछी दोयल
अच्छा लगता है गुच्छ के गुच्छ वॉयलेट 
कितनी अनोखी तस्वीर है वह /
जिसमें से निकलती हो मिठी यादें
और  कई क्षण एक साथ ।

मगर रहने दे दांतों के उस पार न जाना ही बेहतर
बेवजह क्यो करे प्रहार 
उन निष्ठुर कठोर चर्मो पर ?
भलिभांति मालूम है क्या होगा उनका उत्तर ।

न जाने कितनी मौतें समुद्र तट को/ 
चीरने वाली सूरज की किरणें,
नाव की दीवार से मिली सिर की चोटें
और चुम्बन जो रह गये थे
अधूरे हाथ के अवरोध से
और ऐसे ही न जाने क्या कुछ /
 मैं भूल जाना चाहता हूं
हमेशा हमेशा के लिए,
भूल जाना चाहता हूं ।


अनुवाद : सुभाष चन्द्र गांगुली
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* मूल पोलिश कविता -- कवि पाब्लो नेरुदा
* बांग्ला ; पाब्लो नेरुदा की श्रेष्ठ कविताएं --अनुवादक - असित सरकार
* बांग्ला से हिन्दी अनुवाद --- सुभाष चन्द्र गांगुली


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