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Wednesday, September 29, 2021

लघु कहानी- स्पीड टैक्सी


ट्रेन से उतरकर ज्योंहीं मैं प्लेटफार्म के बाहर निकला कईयों ने मुझे घेर लिया , सभी ने एक स्वर से पूछा --" बाबू टैक्सी ?" 
बड़ी फ़जियत , किससे बात करुं ! मैंने सिर हिलाकर ना का संकेत दिया ।
वे  मेरे पीछे पीछे चलते रहे और मैं अपना गर्दन हिलाता रहा । कुछ दूर बाद एक-एक करके सब खिसक गये मगर एक आदमी तब भी पिछलग्गू था, गिडगिडाता रहा । मैंने उससे कहा  --" नेताजी मार्ग चलना है ।"
--" डेढ सौ रुपए लेंगे ।" उसने कहा ।
---" क्या डेढ़ सौ रुपए ?" मैंने कहा।
---" बाबू इससे कम में कोई नहीं जाएगा ।"
----" मेरे भाईसाहब यही रह रहे हैं बीसों साल से उन्होंने बताया है कि चालीस पैंतालीस लगेगा ।"
----" अरे वो तो लाइन वाली टैक्सी में । धूप में अभी पचास मिनट खड़े  रहेंगे फिर टैक्सी मिलेगी । मेरी स्पीड टैक्सी है, तुरंत पहुंच जाएंगे ........ बाबू कहां धूप में खड़े रहेंगे ! खूबसूरत आदमी, रंग जल जाएगा । धूप में घूमने की आदत भी नहीं है आपकी ......"
इतनी देर में हम सड़क तक पहुंच गये । देखा सचमुच एक विराट लम्बी लाइन लगी हुई थी । लाइन देख मेरा पसीना छूटने लगा ।
असहाय महसूस कर मैंने उस टैक्सीवाले को देखा । मुस्कराकर उसने कहा --" देख रहे हैं न ? बीस रुपए कम दीजिएगा आइए ।"
---"तब भी बहुत ज्यादा है ।"
---" बाबू पचास मिनट लाइन में खड़े रहेंगे तो धूप में सौ रुपए की एनर्जी लास होगी, समय भी बर्बाद होगा । पचास मिनट किसी की जिंदगी में मायने रखता है ।"
उसकी बातों से मैं हिप्नोटाइज्ड-सा हो गया । उसने मेरे हाथ से दोनों एटैची ले ली ।
मैं उसके पीछे-पीछे सड़क की दूसरी ओर टैक्सी तक पहुंच गया ।
उस आदमी ने मुझे टैक्सी पर बिठाया, मेरा सामान अंदर रखा। मैंने देखा ड्राइवर की सीट पर दूसरा आदमी बैठा हुआ था । उस आदमी ने बीठाकर कहा-- "बाबू जल्दी से पचास रुपए दीजिए । "
---" क्यों ?" मैंने पूछा ।
--" दीजिए ना ! जल्दी कीजिए । "
मैंने रुपया दे दिया । उसने कहा--" बाकी अस्सी रुपए ड्राइवर को दे दीजिएगा ।"
              
ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दिया । रास्ते में मैंने उस आदमी के बारे में ड्राइवर से पूछा । उसने बताया " वह आदमी दलाल था । टैक्सी का बिल पचास साठ तक चढ़ेगा, रास्ता खाली हो तो कम, भीड़ या जाम हो तो ज्यादा होगा । वह मात्र बीस रुपए ज्यादा ले रहा है और उसके लिए उसे कभी कभार  पच्चिस तीस मिनट खड़े रहना पड़ता है, सवारी मिलने में बहुत दिक्कत होती है ......उसी रुपए से उसका गुजर बसर होता है । ।"
मैंने पूछा --" उसने पचास रुपया एडवांस क्यो लिया ?"
ड्राइवर ने कहा --" वह पचास रुपए ब्रोकर सर्विस चार्जेज है । ब्रोकर्स एसोसिएशन संस्था द्वारा यह सेवा प्रदान किया जाता है । यह संस्था चार लोग द्वारा चलाया जाता है ।"
--" यानी कि वह सर्विस एजेंट है ? सस्था की नौकरी करता है ?" 
--" जी । सही पकड़े है । "
--" यानी कि वह पचास रुपए अपने मालिक को दे देता है ? "
--" जी । कानून तोड़वाने में जो लोग मदद करते हैं वे लोग ले जाते हैं । उसके बीस कटने के बाद जो तीस बचते हैं, उसके दो ढाई सौ हिस्से होते हैं ।  किसी किसी के हिस्से में पांच पैसे तक आते है। एक एक पैसा का हिसाब सही रखा जाता, एक बाबू है , ईमानदारी से काम होता है......बेलागन पाइंट पर ड्यूटी लगवाने के लिए मोटी राशि दी जाती है । "
--" ये सब मुझे मालूम नहीं है, अंदर खाने की बात है । किसे दिया जाता, कितना दिया जाता है, ये सब बड़े लोगों की बात है......  आप क्या पहली बार महानगर में आए हैं ?"
--" नहीं पहले भी आया था ।"
--" बचपन में ?"
--" जी । कैसे पता ?"
--" चल जाता है पता । चालीस साल से यही कर रहा हूं । "
थोड़ी देर तक चुप रह कर उसकी बातों पर सोचते रहने के बाद मैंने फिर पूछा --"ऐसा गैर कानूनी काम क्यों करते हैं लोग ? "
---" दादा जिंदगी की गति बढ़ गई है। सभी लोग तेज़ रफ़्तार से चलना चाहते हैं । स्पीड पोस्ट की देखा-देखी स्पीड टैक्सी  चली है। आखिर आपको भी तो घर पहुंचने की जल्दी थी न? और हमने आपको गति दी है । इसीलिए न आपको ' स्पीड टैक्सी' पसंद आयी है ना ? आप जैसे स्पीड पसंद लोगों के कारण सही ढंग से चल रही है ये व्यवस्था , कितने सारे लोगों के पेट भर रहे हैं.... लीजिए आ गया है आपका घर । दो पैसे बचाने के चक्कर में अभी तक बीच लाइन में ही दो अटैची लेकर खड़े रहते । हाथ में अलग दर्द होता । जिनके पास पैसा है वे सब इसे ही पसंद करते हैं । गाड़ी रोक कर उसने दोनों अटैची उतार दी । मेरे बड़े भाईसाहब फाटक खोल कर मुझसे बात करने लगे थे । 
ड्राइवर ने कहा बाबू जल्दी करिए । मैं जेब टटोल रहा था, पांच सौ का नोट निकाला, उसने कहा," है तो फुटकर, फुटकर दीजिए , जल्दी कीजिए, इतना टाइम लगाने से कैसे चलेगा, सवारी लेनी है जल्दी कीजिए ।"

सुभाष चन्द्र गांगुली
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पत्रिका ' स्वातिपथ ' अंक अक्टूबर--दिसम्बर 1998 में प्रकाशित।



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